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मानकीकरण /प्रमाणीकरण चिह्न

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मानकीकरण चिन्ह विभिन्न वस्तुओं तथा खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता स्तर को सुनिश्चित  करने के लिए एक प्रमाण का प्रारूप होता है। भारत सरकार ने अलग-अलग वस्तुओं के लिए अलग-अलग मानक तैयार किये हैं। इन मानकों को निर्धारित करने तथा मानकीकरण चिन्ह देने का कार्य दो संस्थाओ द्वारा किया जाता है।  विपणन निरीक्षण निदेशालय /Directorate of Marketing of Inspection .  BIS - भारतीय मानक ब्यूरो /Bureau of Indian Standard . ISI - भारतीय मानक संस्थान/ Indian Standard Insititute .   भारतीय मानक संस्थान को ही अब भारतीय मानक ब्यूरो कहा जाता है।इसी संस्थान के नाम पर ISI   का प्रमाणन चिन्ह रखा गया है। इस संस्था को किसी भी पदार्थ अथवा प्रणाली के लिए मानक स्थापित करने का अधिकार है। किसी भी निर्माता को अपने उत्पादन पर ISI चिन्ह लगाने की अनुमति तभी दी जाती है जब उत्पादन की पूरी प्रक्रिया BIS के मानको के अनुरूप तैयार की गई है।  ISI के अंतर्गत लगभग सभी भोज्य पदार्थ ,बिजली के उपकरण, बर्तन तथा सौन्दर्य प्रसाधन को शामिल किया गया है।इसके अतिरिक्त अन्य वस्तुओ पर दी जाने वाली प्र...

उपभोक्ता मंच /Consumer Forum

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आइये सबसे पहले हम जानते हैं की उपभोक्ता कौन है? सामान्य शब्दों में वह कोई भी व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिए सामान अथवा सेवाएँ खरीदता है वह उपभोक्ता कहलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता है। चाहे वह महिला हो या पुरुष, बच्चे, युवा, वृद्ध, शिक्षित, अशिक्षित, शहरी, ग्रामीण, निर्धन, धनी कोई भी हो सकता है।  प्रो. मार्शल -" उपभोक्ता वह व्यक्ति  है जो उपभोग के सच्चे अर्थ को समझकर उपभोग करता है।  " उपभोक्ता शिक्षा क्या है और इसकी जरूरत क्यों पड़ी।  उपभोक्ता शिक्षा हमे अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक करता है। जब हम कोई वस्तु बाजार से खरीद कर लाते हैं और हमारा उदेश्य की पूर्ति नहीं होता है तो हमे अपने ठगे जाने का एहसास होता है। तब हम सोचने लगते हैं की हमने क्या गलतियाँ की है। इसी समस्या के समाधान के लिए उपभोक्ता शिक्षा की जरूरत पड़ी। यह हमें क्रय संबंधित निर्णय लेना सिखाता है जैसे -क्या खरीदना है ?कहाँ से खरीदना है ?कब और कैसे खरीदना है ?कितना खरीदना है ? यह तभी सम्भव् है जब हम उपभोक्ता के अधिकार और कर्तव...

आहार चिकित्सा /Diet Therapy

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  आहार चिकित्सा क्या है ? सामान्यतः शरीर को सुचारु रूप से चलने के लिए संतुलित आहार की जरूरत होती है। परन्तु जब किसी कारणवश हमारा शरीर बीमार हो जाता है। तब बिमारियों के रोकथाम तथा स्वास्थ्य लाभ के उदेश्य से सामान्य आहार को रोगी के अवस्था एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित करके आहार को एक कारक के रूप में प्रयोग करना ही आहार चिकित्सा कहलाता है।  आहार चिकित्सा की शुरुआत कब और कैसे हुआ।  आहार चिकित्सा की अवधारणा ईसा पूर्व 460 -370 के बीच एक युनानी चिकित्स्क हिप्पोक्रेट्स ने दी थी। उन्होंने रोगी और रोग के प्रकृति अनुसार आहार में परिवर्तन करके स्वास्थ्य लाभ लेने पर विशेष बल दिया था। जिसका अनुसरण आज भी बड़ी विश्वसनीयता से की जाती है। परन्तु इसके विशेष महत्व को विश्व प्रसिद्ध परिचारिका फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने 1854 में युद्ध में आहत सैनिको के सेवा करते समय समझा, महसूस किया और यह भी प्रमाणित किया की चकित्सा में चिकित्सक, औषधी, परिचरिका के साथ ही स्वास्थ्य लाभ कराने में आहार का विशेष भूमिका है। इसी  के आधार पर डाइटीशियन /Dietitian की नियुक्ति होने लगी।  आहार चिकित्सा के प्...

Traditional Embroidery of India भारत की पारम्परिक कढ़ाईकला

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  Traditional Embroidery of India भारत की पारम्परिक कढ़ाईकला  आज हम यहाँ पर मुख्यतः 7 प्रकार के कढ़ाई के बारे में चर्चा करेगें।  पंजाब की फुलकारी।  लखनऊ की चिकनकारी।  कश्मीर की कसीदाकारी।  बंगाल का कांथा।  हिमाचल प्रदेश का चम्बा कढ़ाई।  कर्नाटक का कसूती।  राजस्थान का लोक भारत ,धार्मिक और कोर्ट कढ़ाई।   1 . पंजाब की फुलकारी      इस  मोटे या खदर के सफेद कपड़े पर रंगीन रेशमी धागे से ज्यामितीय (रेखीये ) आकृति का प्रयोग करके बनाये जाने वाले फूलों का डिजाइन फुलकारी कही जाती है।इसमें मुख्य रूप से डवल रनिंग स्टीच और चेन स्टीच का प्रयोग किया जाता है।इसके कई प्रकार होते है।  जैसे - चोप - इसमें लाल रंग के चादर पर रंगीन रेशमी धागे से बीच में फूलों के डिजाइन बनाये जाते हैं और चारों  कोने पर काले रंग से वही डिजाइन छोटे आकर में  बनाये जाते है। मान्यता ये है की नानी अपने नातिन को यह भेंट स्वरूप उपहार देती हैं तो नजर से बचने के लिए काले रंग  का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है। सुभर -  ...

Thesis Writing Format

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शोध ग्रंथ लिखने का एक चरणवद्ध प्रक्रिया है। जिसका प्रथम चरण है Synopsis . Synopsis -- Synopsisकिसी भी Research Work का "Blue -Print "होता है। इसे मैपिंग ऑफ़ प्रॉब्लम /Mapping of Problem भी कहा  जाता है। जिसमे भविष्यगामी अनुसंधान के मार्ग को सरल एवं सुगम्य बनाने की दृष्टि से प्रत्येक पद को सुव्यवस्थित एवं पूर्व विचारित  ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।  Hypothesis   /परिकल्पना -- शोध प्रक्रिया का दूसरा चरण होता है परिकल्पना का निर्माण करना। जो किसी समस्या के  समाधान का अवधारणा प्र्स्तुत करता है। इसकी सहायता से ही नए सत्य की खोज की जाती है।   तीसरे चरण में आता है विभिन्न स्रोतों से (प्राथमिक &द्वितीय )प्राप्त आकड़ो व् जानकारियों को लिपिवद्ध करना।  शोध ग्रंथ के प्रथम पृष्ठ पर अध्ययन का शीर्षक,विश्वविद्यालय का नाम &लोगो (प्रतीक चिन्ह ), शोधकर्ता और निर्देशक का पूरा नाम पता और योग्यता, शोध का वर्ष ेइन सबको शुद्ध और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है।  अंदर के पृष्ठों पर सबसे पहले प्रमाण पत्र उसके बाद कृतज्ञता ज्ञापन ...

RESEARCH/ अनुसंधान

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रिसर्च /Research दो शब्दों के मेल से बना है। Re +Search  Re =Agin  Search =Explore  इसका सरल शब्दों में अर्थ यह है की किसी निर्धारित लक्ष्य का जब तक सही उत्तर न मिल जाय तब तक खोजते रहना। अर्थात "बार -बार खोजना। " अनुसंधान हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा है। जिसकी बुनियाद जाने अनजाने बचपन में ही पड़ जाती है। जब हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तरह तरह के कोशिश कर रहे होते हैं। जैसे -अपनी ऊचाई से ऊपर की वस्तुओं तक पहुंचने की कोशिश,दोस्तों के साथ पार्टी का सफल आयोजन का प्लान बनाना,अपनी बातों को मनबाने के लिए नए नए बहाने ढूँढना,पारिवारिक और सामाजिक आयोजनों को मितव्ययता के साथ सफलता पूर्वक समापन करना इत्यादि। यही आदतें आगे चलकर एक सफल अनुसंधानकर्ता के गुण में परिवर्तित हो जाता है।  अनुसंधानकर्ता के गुण /Qualities of a Researcher    जिज्ञासा प्रवृति /Curiosity  स्वतंत्र विचार /Independent Thinking  सशक्त कल्पना शक्ति /Pawerful Imagination  योग्यता /Knowledgeability  धैर्य /Perseverence  अनुसंधान की विधियाँ /Methods of Res...

कार्य सरलीकरण/ work simplification

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वर्तमान के इस व्यस्तम और भाग दौड़ भरी जीवन में संतुलन बनाते हुए जीवन को सरल व् आनंददायक बनाने में कार्य सरलीकरण की वैज्ञानिक विधियों   का  महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज हम इसे विस्तार से जानते हैं।   कार्यसरलीकरण है क्या ? कार्य करने के ऐसे तरीके जो किसी काम को सहजता और सरलता से कम समय व् श्रम का प्रयोग करते हुए बेहतर परिणाम के साथ पूरा कर   सके। कई विद्वानों ( ग्रौस , क्रैंडल , निकिल & डार्सी , लिंडरमन , मुंडेल & आर्मस्ट्रांग , विभर & थॉमस , इलेन नोवेल्स )  ने अपने - अपने तरीके से घरेलू कार्य करने की विधियों का अध्ययन किया। सबका सार यही है की कार्य सरलीकरण में समय एवं शक्ति दोनों को मिश्रित रूप से व्यवस्थापन किया जाता है। उसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं की    जब किसी कार्य को पूरा करने के लिए उसकी मात्रा , समय और   शक्ति का निर्धारण कर   दिया जाता है तब उसी काम को कम से कम समय   व् शक्ति ...