Traditional Embroidery of India भारत की पारम्परिक कढ़ाईकला
Traditional Embroidery of India
भारत की पारम्परिक कढ़ाईकला
आज हम यहाँ पर मुख्यतः 7 प्रकार के कढ़ाई के बारे में चर्चा करेगें।
- पंजाब की फुलकारी।
- लखनऊ की चिकनकारी।
- कश्मीर की कसीदाकारी।
- बंगाल का कांथा।
- हिमाचल प्रदेश का चम्बा कढ़ाई।
- कर्नाटक का कसूती।
- राजस्थान का लोक भारत ,धार्मिक और कोर्ट कढ़ाई।
1 . पंजाब की फुलकारी
इस मोटे या खदर के सफेद कपड़े पर रंगीन रेशमी धागे से ज्यामितीय (रेखीये ) आकृति का प्रयोग करके बनाये जाने वाले फूलों का डिजाइन फुलकारी कही जाती है।इसमें मुख्य रूप से डवल रनिंग स्टीच और चेन स्टीच का प्रयोग किया जाता है।इसके कई प्रकार होते है। जैसे -
- चोप -इसमें लाल रंग के चादर पर रंगीन रेशमी धागे से बीच में फूलों के डिजाइन बनाये जाते हैं और चारों कोने पर काले रंग से वही डिजाइन छोटे आकर में बनाये जाते है। मान्यता ये है की नानी अपने नातिन को यह भेंट स्वरूप उपहार देती हैं तो नजर से बचने के लिए काले रंग का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है।
- सुभर - ये भी लाल रंग के चादर पर ही बनाये जाते हैं। इसमें अंतर ये है की इसके बीच में पांच नमूनों वाली डिजाइन बनाये जाते हैं और वही नमूने छोटे आकर में चारों कोने पर भी बनाये जाते हैं। यह माँ अपनी बेटी को फेरे के समय उपहार स्वरूप भेंट प्रदान करती हैं।
- तिलपत्र -यह सस्ते झिरझिरे कपड़े पर यत्र -तत्र नमूने बनाये हुए होते हैं। इसे मालकिन अपने नौकरानी के बेटी के लिए बनाकर देती हैं।
- शिशेदार -यह रेशमी या साटन वस्त्र पर छोटे -छोटे शीशे या अबरख के टुकड़ों से काज स्टीच की सहायता से बनाये जाते हैं।
- कच्छ की फुलकारी -इसके चारों तरफ बॉडर होते हैं और बीच में पशु -पक्षी ,फूल -पत्ती के डिजाइन बने होते हैं।
- नीलक -इसमें नील रंग के खदर कपड़े पर रेशमी पिले रंग के धागे से घरेलू उपयोग में आने वाली वस्तुओं जैसे -पंखा ,छाता ,कंघी इत्यादि के डिजाइन का नमूने बने होते हैं।
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2 . लखनऊ की चिकनकारी
सफेद कढ़ाई -सफेद मखमल के कपड़े पर सफेद रंग की रेशमी धागे से कढ़ाई की जाने के कारण इसे सफेद कढ़ाई (white Embrodery )कहा जाता है।
शैडो वर्क -चिकनकारी की कढ़ाई पीछे की तरफ से हेरिंग बोन (xxxxxxx )स्टीच की सहायता से की जाती है। जो सीधे तरफ छाया के रूप में दिखाइ देती है। इसलिए इसे शैडो वर्क भी कहा जाता है।
चिकनकारी की कढ़ाई में पहले कपड़े पर नमूने को अंकित कर लिए जाते हैं ततपश्चात विभिन्न टांके का प्रयोग कर अलग -अलग डिजाइन बनाये जाते हैं। नमूने प्रकृति और दैनिक प्रयोग के वस्तु का होता है। जैसे -गेहूं की बाली ,चावल का दाने ,पीपल के पत्ते इत्यादि।
चिकनकारी के प्रमुख्य टाँके -
- चपटा आकार /Flat -इसके अंतर्गत भी दो तरह के काम होते हैं। 1. वुखिया (वास्तविक ) --वुखिया से डिजाइन के आउट लाइन ही बनाये जाते हैं। 2 . कटाओ -कटाओ में सफद रंग के धागे से भराई की जाती है।
- गाँठ वाली /उभरी /Knatted - 1 . मुर्गी -ये डिजाइन उभरी हुई गाठनुमा टाँके से बनाई जाती है। 2 . फंदा -ये डिजाइन बटनहोल (काज )टाँके के प्रयोग करके बनाये जाते हैं।
- जालीदार /Netting -
- इन सबके आलावा अन्य टाँके जैसे -टेपचि, बिजली,खटाऊ और पचनी का भी प्रयोग किया जाता है।
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3 . कश्मीर की कसीदाकारी
कश्मीरी शाल में कढ़ाई का काम अलीबाबा ने शुरू किया था।
प्रमुख्य टाँके -हेरिंग बोन ,उलटी व सादी वखिया, चेन स्टीच।
नमूने --फूल -फलों के गुच्छे, चिनार की पत्तियाँ , रंग -विरंगे चिड़ियाँ।
कश्मीर के कुछ कढ़ाईदार वस्त्र -
- पश्मीना -यह कपरा हरकस नामक दुर्लभ बकरी से निकलने वाले ऊन से बनाये जाते हैं। यह बहुत ही मुलायम गर्म और महगीं होती है। इसे तिब्बत के लोग ज्यादा पसंद करते हैं।
- दोशाला -इसे दो शालो को एक साथ मिलाकर बनाये जाते हैं। इसके किनारे रोटी की तरह जुड़े होते हैं।
- कसाबा -इसे चौकोर शॉल में Twell या Basket बुनाई से बुना जाता है। इसे युरोपिये देशों के लोग ज्यादा पसंद करते हैं।
- जमाबर -जमाबर को शिकारगढ़ शॉल भी कहा जाता है। क्योकि इसमें शाल पर ब्रोकेड (सोने -चाँदी )कढ़ाई से वार्डर बनाये जाते हैं और बीच में शिकार करते या होते जानवरों के डिजाइन बनाये जाते हैं।
- दोरुखा -इस प्रकार के शॉल में दोरुखा (दोनों तरफ से एक जैसा )टाँके का प्रयोग किया जाता है। जिससे वस्त्र को उल्टा -सीधा पहचानना मुश्किल हो जाता है।
- गब्बा /फिरनी -ये एक प्रकार के ऊनी के ढीले -ढाले वस्त्र होते हैं जिसे स्त्री -पुरुष दोनों पहनते हैं। यह कंधे से पैर तक एक ही होते हैं।
- कालीन -यह निम्न कोटी के ऊन से जमीन पर बिछाने के लिए बनाये जाते हैं।
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4 . बंगाल का कांथा (कालका )
कांथा बंगाली गृहिणी के मितव्ययी स्वभाव का एक प्रत्यक्ष साक्ष्य होता था। इसका प्रचलन आज भी है।
विधि -पुराने कपड़े पर छपे रंगीन डिजाइन, बटन, लेस, गोटे को हटाकर उसे वेसन के घोल में धो लेते हैं। फिर सबका एक समतल सतह बनाकर किनारे को सिल लेते हैं। उसके बाद बीच में सादे रनिंग स्टीच से विभिन्न कलाकृति को डिजाइन के रूप में बनाते हैं। कांथा को पैच वर्क या पैबंद भी कहते हैं। इसके कई प्रकार होते हैं।
- लेप कांथा -यह एक तरह का बिछावन जैसा होता है।
- ओर कांथा -यह तकिये के कवर पर बनाये जाते हैं।
- दुर्जनि कांथा -यह बड़ा थैला (झोला )पर बनाये जाते हैं।
- सुजनी -यह एक तरह का चादर होता है।
- आरसीलता -यह छोटे -छोटे सामान (ऐनक ,कंघी, चश्मा, मोवाइल )रखने के लिए बनाये गए थैले के ऊपर बनाये जाते हैं।
- वेटन -यह कोई बहुमूल्य सामान या धार्मिक ग्रंथ को ढककर रखने के लिए बनाया जाता है।
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5 .हिमाचल प्रदेश का चम्बा कढ़ाई
चम्बा कढ़ाई को काँगड़ा या पहाड़ी कढ़ाई के नाम से भी जाना जाता है। यह पूजा, विवाह समारोह या कोई भी शुभ कार्य में प्रयुक्त होने वाले थाल - थाली को ढकने के लिए बनाया जाता है। इस पर विभिन्न प्रसगों के परिदृश्यों का चित्रण किया जाता है। प्रसंगो के चित्रण के आधार पर इसका नामकरण भी होता है। जैसे --रासमंडल, रुक्मिणी हरण, समुद्र मंथन, मिजर मेला जुलूस, कुरुक्षेत्र, कालिया, अष्टनायिका इत्यादि।
रोम वासी चम्बा कढ़ाई को सुई पेंटिग भी कहते हैं। सुई को अरि और कथरनी भी कहा जाता है।
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6 . कर्नाटक का कसूती (कन्नड़ )
कसूती कढ़ाई दोसूती कपड़े पर सूती धागे से हाथ से कढ़ाई की जाती है। इसमें ताने -बाने को गिनकर डिजाइन बनाये जाते है। इसमें गाँठे नहीं लगाई जाती है। इसके भी कई प्रकार हैं।
- गवंती -गवंती या गंटू कन्नड़ में इसे गाँठ कहते हैं। इसमें डबल रनिंग स्टीच से उभरा हुआ डिजाइन बनाया जाता है।
- मुर्गी -इसमें Zig -Zag (~~~~ )डिजाईन बनाये जाते हैं।
- नेगी -इसमें रफ्फू टाँके का प्रयोग कर डिजाइन बनाये जाते हैं।
- मेंथी -इसमें क्रास क्रास (xxxx )डिजाइन बनाये जाते हैं।
ईकाल --प्राचीन परम्परा के अनुसार साडी के चारों दिशाओं में वार्डर बने होते हैं।
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7 . राजस्थान का लोक कढ़ाई, धार्मिक कढ़ाईऔर कोर्ट कढ़ाई
राजस्थान की कढ़ाई को हम मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित करेगें साथ ही कई उप वर्गों की भी चर्चा करेगें।
1 . लोक कढ़ाई -इसे हम पारम्परिक या भारत काम के नाम से भी जानतेहैं।
- मोची भारत -इसमें चेन स्टीच से भराई का काम किया जाता है।
- हीर भारत -इसमें छोटे,बड़े, काज टाँके का प्रयोग करके भराई का काम किया जाता है।
- एप्लिक -इसमें सफेद रंग के पृष्ठभूमि वाले कपड़े पर रंगीन कपड़े को किसी आकृति विशेष में काटकर काज या रनिंग स्टीच की सहायता से जोड़ दिए जाते हैं।
- दबका -मोती (Bead )के काम को ही दबका का काम कहा जाता है। जालौर का मोती वर्क लोकप्रिय है।
- पिच्छवी कढ़ाई -उदयपुर के समीप नाथद्वार नामक एक स्थान है जहाँ श्री नाथ भगवान का मंदिर है उन्हीं को केंद्र में रखकर काले रंग के वेलवेट पर श्री नाथ भगवान की आकृति बनाकर धार्मिक कढ़ाई की जाती है।
- जैन कढ़ाई -दिलवाड़ा के जैन मंदिर में चढ़ाई जाने वाली चादर पर जैन कढ़ाई की जाती है। मांडला चादर इसका उदाहरण है।
- गोटा वर्क -
- सलमा वर्क -a जरदोजी -इसमें हीरे -मोती के ज्यादा वर्क होते हैं इसलिए ये महँगे हो जाते हैं यह आम आदमी की पहुँच से दूर उच्च वर्ग तक ही सिमित रह जाता है इसलिए मांग कम हो जाते है। b कामदानी -इसमें हीरे -मोती के काम कम होते है इसलिए ये आम आदमी के पहुंच तक होता है जिससे माँग बढ़ जाती है।
- थ्रेड वर्क -इसमें कढ़ाई धागे से की जाती है।
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