आहार चिकित्सा /Diet Therapy
आहार चिकित्सा क्या है ?
सामान्यतः शरीर को सुचारु रूप से चलने के लिए संतुलित आहार की जरूरत होती है। परन्तु जब किसी कारणवश हमारा शरीर बीमार हो जाता है। तब बिमारियों के रोकथाम तथा स्वास्थ्य लाभ के उदेश्य से सामान्य आहार को रोगी के अवस्था एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित करके आहार को एक कारक के रूप में प्रयोग करना ही आहार चिकित्सा कहलाता है।
आहार चिकित्सा की शुरुआत कब और कैसे हुआ।
आहार चिकित्सा की अवधारणा ईसा पूर्व 460 -370 के बीच एक युनानी चिकित्स्क हिप्पोक्रेट्स ने दी थी। उन्होंने रोगी और रोग के प्रकृति अनुसार आहार में परिवर्तन करके स्वास्थ्य लाभ लेने पर विशेष बल दिया था। जिसका अनुसरण आज भी बड़ी विश्वसनीयता से की जाती है। परन्तु इसके विशेष महत्व को विश्व प्रसिद्ध परिचारिका फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने 1854 में युद्ध में आहत सैनिको के सेवा करते समय समझा, महसूस किया और यह भी प्रमाणित किया की चकित्सा में चिकित्सक, औषधी, परिचरिका के साथ ही स्वास्थ्य लाभ कराने में आहार का विशेष भूमिका है। इसी के आधार पर डाइटीशियन /Dietitian की नियुक्ति होने लगी।
आहार चिकित्सा के प्रमुख्य उदेश्य
- अस्वस्थ्य व्यक्तियों के पोषण स्तर बनाये रखने के लिए उसे पौष्टिक तत्व प्रदान करना।
- शारीरिक क्षमतानुसार भोजन की मात्रा तथा प्रकार निर्धारित करके दोनों में सामंजस्य स्थापित करना।
- रुग्णावस्था में उच्च पोषण स्तर बनाये रखने के लिए शरीर में जिन पोषक तत्वों की कमी हो उनका निरंतर आपूर्ति करते रहना।
- शरीर को पर्याप्त विश्राम प्रदान करना विशेषकर प्रभावित अंगों को जैसे --अतिसार की स्थिति में ठोस व् रेशेदार आहार न देकर पूर्ण तरल आहार देना ,पाचन तन्त्रो के कष्टों को देखते हुए सरल, सौम्य और सुपाच्य आहार देना, पीलिया में वसायुक्त आहार को वर्जित करके यकृत को विश्राम देना, गुर्दे, ह्रदय तथा उच्च रक्तचाप में नमक ,सोडियम की मात्रा कम करना।
1 . उच्च रक्तचाप /High Blood Pressure -
दिए जाने वाले आहार -मलाई रहित दूध, पनीर, दही, जड़ों वाली सब्जियाँ,हरी पत्तेदार सब्जिया,ओट्स, अंडा, लौकी, फल(संतरा, जामुन, केला और आम ), फलों का जूस, मुरब्बा, चुकंदर, लहसुन, अलसी (तीसी )के बीज, अल्पमात्रा में चीनी और वनस्पति तेल इत्यादि।
वर्जित आहार --नमक का कम प्रयोग साथ ही सोडियम, वसा और कैलोरी की भी मात्रा कम लेनी चाहिए। प्रोसेस्ड मांस, मछली ,डिब्बा बंद आहार, ब्रेड, कॉफी, अधिक मसालेदार भोजन।
2 . मधुमेह /Diabetes -
दिए जाने वाले आहार -उच्च प्रोटीनयुक्त आहार सभी दालें , मिश्रित आनाज की रोटी विशेषकर जौ ,बाजरे की रोटी ,हरी सब्जियाँ , अंजीर, खीरा, करेला, टमाटर, दही, छेना, मेथी साबुत या साग। विशेषकर 50 %से कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले आहार दिए जाने चाहिए।
वर्जित आहार --चावल ,आलू, शकरकंद, चुकंदर, चीनी, विशेषकर 50 %से अधिक ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले आहार।
50 %से कम Glycemic Index वाले आहार --सोयाबीन, राजमा, मेथी, ओट्स, मटर, मूँगफली, अखरोट, बादाम, अलसी, सुरजमुखी के बीज, हरी सब्जियाँ, फूलगोभी, ब्रोकली, खीरा, टमाटर, गाजर, सेव, संतरा, चीज।
50 % से अधिक Glycemic Index वाले आहार -चावल, आलू, ओल, कद्दू, खजूर, तरबूज, केला, मक्का,आइसक्रीम,मैदे की ब्रेड, चुकंदर।
3 . पीलिया /Jaundice -
इसमें कम वसायुक्त, उच्च प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार देने चाहिए।
दिए जाने वाले आहार -गन्ने का जूस, अंगूर, संतरा, जौ का पानी, मूली, आँवला, नींबू ,लौकी, कच्चा पपीता, उबली सब्जियाँ, मलाई रहित दूध विशेषकर बकरी का दूध, हॉफ ब्याल अंडा, खिचड़ी, दलिया, दही -चावल।
वर्जित आहार --तले -भुने भोजन, अचार, कॉफ़ी,अधिक नमक, मांस -मछली, चीनी, डिब्बा बंद आहार, शराब।
4 . अतिसार /Diarrhoea -
दिए जाने वाले आहार -ORS घोल, फलों का जूस, साबुदाना पानी वाला, दही, गीला चावल ,सब्जियों का सूप, नींबू पानी ,केला, दलिया, मूँग दाल की खिचड़ी।
वर्जित आहार -तले -भुने भोजन,दालें ,रेशेदार व् पत्तेदार सब्जियां ,दूध, वसायुक्त भोजन।
5 .पेप्टिक अल्सर /Peptic Ulcer - जब आमाशयी रस, श्लेष्मिक झिल्ली के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आ जाता है तो वहाँ जख्म (घाव )बना देता है। आमाशय तथा पक्वाशय (Duodenum )में होने वाला जख्म सामूहिक रूप से पेप्टिक अल्सर कहलाता है।
आमाशय में होने वाला गैस्ट्रिक अल्सर जबकि पक्वाशय में होने वाला ड्यूओडिनल अल्सर कहलाता है जो अति अम्लता (Hyperacidity )से संबंधित होता है।
दिए जाने वाले आहार -थोड़ी -थोड़ी देर पर तरल और नरम आहार देते रहना चहिये। विशेषकर प्रोटीन और विटामिन C युक्त आहार जो की जख्म भरने में सहायक होता है। जैसे -दलिया, खिचड़ी, अंडा, मांस,मछली का सूप या छोटे -छोटे महीन नरम टुकड़े , हरी सब्जियों का सूप , फलों का जूस ,केला इत्यादि।
वर्जित आहार --मिर्च -मसालेयुक्त आहार ,अचार, चाय, कॉफ़ी ,शराब, तम्बाकू, कड़ा भोज्य पदार्थ। साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की भोजन न तो अधिक गर्म हो और न ही अधिक ठंठा।
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