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UGC-CSIR NET/JRF & SRF

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University Grants  commission (UGC) Council of Scientific and Industrial  Research (CSIR) National  Eligibility  Test (NET) Junior Research  Fellowship(JRF) Senior Research  Fellowship (SRF) UGC-NET  एक  मानक  परीक्षा  है  जिसका  दो  स्तर  होता  है I  UGC NET /JRF Exam जिसकी  उम्र  सीमा assistant Professor के  लिए  कोइ उम्र  सीमा  नहीं होती है  जबकी  JRF के लिए  30 वर्ष  निर्धारित  की  गयी  है I यह  एक  वर्ष  में  दो  बार  आयोजित  (जून, दिसंबर) की  जाती  है I  JRF एक प्रतिष्ठित  रिसर्च  फेलोशिप  है  जो  इस  exam में  शीर्षस्थ   (Top rankar) उम्मीदवारों  को  प्रदान  की  जाती  है I रिसर्च  क्षेत्र  मे  करियर  शुरू  करने  के  लिये  यह  पहला  कदम  होता  है I इसमें  य...

वसंत और विवाह

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एक  ही  अक्षर व से  शुरू होने वाले दोनों  ही  शब्दों  में  अनन्त  समानताएं  समाहित  है I वसंत  को  ऋतुओं  का  राजा  यों  ही  नहीं  चुना  गया है I सम्पूर्ण  पृथ्वी  पर विद्यमान  जड़-चेतन में नई  जान, ऊर्जा, स्फूर्ति भर देने  वाले  वसंत  के आगमन का स्वागत माँ  सरस्वती की  रस  भरी वीना की  झनकार भी  करती  नजर  आती  है I जिसे  हम  मानव वसंत उत्सव (रतिकाममहोत्सव )के  रूप  मे प्रतीकात्मक  रूप  से रंग  गुलाल  से  शुरुआत  करते  हुए पूरे  महीने  भर ऊर्जावान रहकर होली की  संध्या  वेला  में इसका  सुखद  समापन  करते है I जहां नव  वर्ष  की  शुरुआत नव  जीवन  के बुनियाद  के  रूप  मे स्थापित  प्रामाणिक  दाम्पत्य के  बीच काम  रस  से  सरावोर कर  देने  वाले ऊर्जा...

श्री अन्न/Millets

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भारत तो  हमेशा से ही  कृषि  प्रधान  देश  रहा  है I यहाँ  की 70%आबादी कृषि  आधारित  व्यवसाय  करते रहे  हैं I जिनके  भूख  मिटाने  के साथ स्वस्थ्य  रखने में पोषक  तत्वों  से  भरपूर मोटे  अनाज  की  महत्त्वपूर्ण  भूमिका  रही है I इसका  वर्णन सिन्धु  घाटी  सभ्यता  के  अध्ययन  क्षेत्र  में  भी  मिलता  है I  भारत  की  अनुकूल  जलवायु, अल्प  सिचाई, कम  श्रम  संसाधन  में  अधिक  उपज होने  के  कारण इसे  बहुतायत मात्रा  मे  उपजाई जाती  और  दैनिक  आहार में सहजता से उपयोग भी किया  जाता था I  कालान्तर  में  इसे  मोटे अनाज, गरीबों  का  अनाज, केवल  भूख  मिटाने  वालेे अनाज  जैसी  संज्ञा  देकर उपेक्षित किया  जाता  रहा विशेषकर हरित  क्रांति  के  समय I नये नये  अनुस...

अमृतरस की अमृतधारा

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22/01/2024 दिन  के 12 बजकर 29 मिनट  से 80 सेकेंड तक का पुण्यतम वेला  का वो  अविस्मरणीय पल का प्रत्यक्ष  अप्रत्यक्ष रूप  से  साक्षी  बनने  का जो  सुअवसर विश्व समुदाय को  मिला  है।  उस भक्तिमय  अविरल  धारा में लोक  जनसैलाब बहता  ही  चला  जा  रहा  है।   ऐसा  हो  भी क्यों  न भारत की सनातनी संस्कृति  के  प्राण  कहे  जाने  वाले वात्सल्य  रस  से  लबरेज रामलला का बाल स्वरूप  का भव्य राम मन्दिर  में  पुनर्स्थापित  होना दिवास्वप्न कहे जाने  वाले स्वप्न का साकार होना  जो  है।   मानव  में प्रकृत्ति प्रदत अंतर्निहित  शक्तियाँ अधिकांशतः सुसुप्त  अवस्था  में होती  है।  इन्हीं  शक्तियों  को  जगाये रखने  के  लिए  भारत  के  पवित्र  भूमि पर समय-समय  पर  दिव्य  शक्तियों का मानव  स्वरूप  में अवतरित...

हमसफर

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  मैं  से हम  तक  की  यात्रा  का  खूबसूरत  पड़ाव  है  हमसफर।  यह यात्रा कई  पड़ावों  से  गुजरता  हुआ अपनी  मुकाम  तक  पहुँचती  है।  जिसमें बचपन  से  लेकर  युवा  वर्तमान  समय  में  प्रौढ अवस्था  तक की  कई  सारी  खट्टी-मीठी  यादों  का  पिटारा  लबालब  भरा  होता  है।  उन्हीं  पिटारे  में धीरे-धीरे एक खूबसूरत  प्यारा सा जगह  बनानी  होती  है  हमसफर  का।  थोड़ी  मुश्किल  सी लगनेवाली ये  टास्क  हमारी  जरा-जरा सी  कोशिश  से कब  हमारे  जीवन  का  हिस्सा  बन  जाता  है हमे  पता  ही नहीं चलता  है।   अब  हम  बिल्कुल तैयार  हैं  अपने अगले पड़ाव  तक  जाने  को  तो  चलो  चलते  हैं एक  खूबसूरत  सफर  पर  ...

उम्मीद/अपेक्षा

देखने  सुनने  में  एक  जैसा  लगने  वाला  शब्दों  के  बीच  मे  एक  बारीक  सा रेखा  है I जिसकी  गहराई  में उतरते  ही  उम्मीद  अपेक्षा  से  अलग  स्वतंत्र अस्तित्व  मे  आ  जाता  है I उम्मीद  जहाँ  किसी  के  मौजूदगी  का एहसास  कराता  है  वहीँ  अपेक्षा सम्पूर्ण  व्यक्तित्व  का ही प्रतिबिम्ब होता  है I उम्मीद  हम  जाने-अनजाने  किसी   से लगा  लेते  हैं  अपेक्षा  सदैव  अपनों  से  ही  होती  है I अपेक्षा  की  सीमाएं  अनंत  होती  है अनवरत  बढ़ती  ही  जाती  है और  अंततः आकाश  के  उल्का पिंड  की  तरह अपनों  से  बिछड़  कर टूटकर  बिखर  जाता  है I                              ...

जीवन की बुनियाद

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सम्पूर्ण जीवन चारों आश्रमों  का चौराहा है। जो चारों  (ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ,और सन्यास )को आपस मे जोड़कर जीवन को सम्पूर्णता प्रदान करती है। धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ जीवन को गति प्रदान करती है। सम्पूर्ण जीवन को १०० वर्ष की इकाई मानकर प्रथम के 25 वर्ष ब्रह्मचर्य, 25 से 50 गृहस्थ,50 से 75 वानप्रस्थ और 75 से 100 को सन्यास धर्म की संज्ञा दी गई है। हम चाहे किसी भी वर्ग  के हों सभी की उतपति का केंद्र विन्दु गृहस्थ आश्रम ही है। इसलिए इसे विशेष विवेकपूर्ण तरीके से जीने की सलाह दी जाती रही है। यहीं सम्पूर्ण जीवन की नीव पड़ती है जो इन चारों पड़ावों से गुजरते हुए  अंततः सम्पूर्णता को प्राप्त करती है। इनमे कई उतार चढ़ाव से दो चार होना पड़ता है।  जिसे सही दिशा देने के लिए  परिपक्क्व माता -पिता  की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।   ;--------------------------------;