एक ही अक्षर व से शुरू होने वाले दोनों ही शब्दों में अनन्त समानताएं समाहित है I वसंत को ऋतुओं का राजा यों ही नहीं चुना गया है I सम्पूर्ण पृथ्वी पर विद्यमान जड़-चेतन में नई जान, ऊर्जा, स्फूर्ति भर देने वाले वसंत के आगमन का स्वागत माँ सरस्वती की रस भरी वीना की झनकार भी करती नजर आती है I जिसे हम मानव वसंत उत्सव (रतिकाममहोत्सव )के रूप मे प्रतीकात्मक रूप से रंग गुलाल से शुरुआत करते हुए पूरे महीने भर ऊर्जावान रहकर होली की संध्या वेला में इसका सुखद समापन करते है I जहां नव वर्ष की शुरुआत नव जीवन के बुनियाद के रूप मे स्थापित प्रामाणिक दाम्पत्य के बीच काम रस से सरावोर कर देने वाले ऊर्जा चरमोत्कर्ष पर होता है I हमारा यह वसंत जिस डालियों पर नये-नये कोमल पते फूल के आने से इतराते इठलाते पूरे वर्ष हर्ष उल्लास के साथ रहता है I वही अगले वसंत आते ही बड़े ही सहज भाव से उसपर पूर्ण विराम लगाता हुआ पतझड़ के रूप में भारी मन से विदा दे देता है I साथ ही नई ऊर्जा को संजोये हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए सम्पूर्ण जड़ चेतन को ऊर्जा व उत्साह से भर देता है I
ये सारी समानताए सामाजिक मान्यता प्राप्त विवाह में भी है I जो दो परिवारों के मिलन का संध्या वेला में एक नए परिवार के निर्माण की बुनियाद रखता है I जिसमें मिलने और बिछड़ने की सुखद एहसास को एक खूबसूरत मोड़ से गुजारे जाने की सामाजिक परम्परा रहीं है I जिसे हम विवाह संस्कार का नाम देते हैं I
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