जीवन की बुनियाद
सम्पूर्ण जीवन चारों आश्रमों का चौराहा है। जो चारों (ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ,और सन्यास )को आपस मे जोड़कर जीवन को सम्पूर्णता प्रदान करती है। धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ जीवन को गति प्रदान करती है। सम्पूर्ण जीवन को १०० वर्ष की इकाई मानकर प्रथम के 25 वर्ष ब्रह्मचर्य, 25 से 50 गृहस्थ,50 से 75 वानप्रस्थ और 75 से 100 को सन्यास धर्म की संज्ञा दी गई है।
हम चाहे किसी भी वर्ग के हों सभी की उतपति का केंद्र विन्दु गृहस्थ आश्रम ही है। इसलिए इसे विशेष विवेकपूर्ण तरीके से जीने की सलाह दी जाती रही है। यहीं सम्पूर्ण जीवन की नीव पड़ती है जो इन चारों पड़ावों से गुजरते हुए अंततः सम्पूर्णता को प्राप्त करती है। इनमे कई उतार चढ़ाव से दो चार होना पड़ता है। जिसे सही दिशा देने के लिए परिपक्क्व माता -पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
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