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सावन की फुहार सखियों की गुहार

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अरे चलो चलो घटा घमंड घिर आई गलियो से आने वाली सामूहिक हँसी हा हा हा ही  ही ही   की ठहाकों से मचल उठा मेरा चंचल मन का मोर। वो वर्षा की पहली बूंदें जब तपती धरती पर गिरती तो उसकी सोंधी महक से तन वदन आह्लादित होकर वादलों की शोर में कहीं खो जाती। सावन की हरी - हरी चूड़ियों  की खनक पास  के बगीचें में हस्त निर्मित झूलों पर सखियों संग वैवाहिक जीवन का पहला सावन की आपसी चर्चाएं माहौल को आकाश में निकले इंद्रधनुष के रंगों के साथ ताल में ताल मिलाकर और भी रंगीन बना देती।   गलियों से होते हुए  नगरों ,महानगरों तक की इस लम्बी यात्रा के बदलते परिदृश्य में अगर कुछ नहीं बदला तो वो है सावन की आहट और हरी -हरी चूड़ियों की खनखनाहट ,वर्षा की रिमझिम फुहारों के बीच हर -हर महादेव की गूंज ,मंदिरों की घंटी और वेलपत्र और फल -फूल से सजी सामूहिक थालियाँ। हाँ थोड़ी झूलों पर कजरी की शोर में कमी आ गई है। उसकी जगह facebook ,whatsapp ,instagram पर अपनी -अपनी तरह से सजना -सवरना और video upload करना ने ले ली है। चलो कल ,आज और  कल में सामंजस्य बनाये और खुशियों में आनंद -विभोर...

पंजाब की फूलकारी

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     मोटे या खदर के सफेद कपड़े पर रंगीन रेशमी धागे से ज्यामितीय (रेखीये ) आकृति का प्रयोग करके बनाये जाने वाले फूलों का डिजाइन फुलकारी कही जाती है।इसमें मुख्य रूप से डवल रनिंग स्टीच और चेन स्टीच का प्रयोग किया जाता है।  इसके कई प्रकार होते है।  जैसे - चोप - इसमें लाल रंग के चादर पर रंगीन रेशमी धागे से बीच में फूलों के डिजाइन बनाये जाते हैं और चारों  कोने पर काले रंग से वही डिजाइन छोटे आकर में  बनाये जाते है। मान्यता ये है की नानी अपने नातिन को यह भेंट स्वरूप उपहार देती हैं तो नजर से बचने के लिए काले रंग  का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है। सुभर -   ये भी लाल रंग के चादर पर ही बनाये जाते हैं। इसमें अंतर ये है की इसके बीच में पांच नमूनों वाली डिजाइन बनाये जाते हैं और वही नमूने छोटे आकर में चारों  कोने पर भी बनाये जाते हैं। यह माँ अपनी बेटी को फेरे के समय उपहार स्वरूप  भेंट प्रदान करती हैं।  तिलपत्र - यह सस्ते झिरझिरे कपड़े पर  यत्र -तत्र नमूने बनाये हुए होते हैं। इसे  मालकिन अपने नौ...

मेरी पहली हवाई यात्रा

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पटना से कोलकाता  मंगलवार (10 /04 /2018 ) Spice Jet SG-876 Departure 8:45 am patna Arrival 9:45 am kolkata               Terminal -2 यों तो यात्रा 10 /०४/18  को था पर e -Ticket के माध्यम से टिकट 04 /03 /18 को ही मिल गया था। जैसे ही टिकट Whats up  के माध्यम से मिला मन में एक अजीब सी हलचल पैदा हो गई। वचपन में जब आकाश में जहाज को उड़ते देखती थी तो हमेशा सोचती थी काश मैं भी इसकी यात्रा कभी करती। सो आज एक सपना साकार होने जैसी अनुभूति हो रही थी। एक तरफ कौतुहल थी तो दूसरे तरफ डर क्योंकि हम दोनों की ही पहली हवाई यात्रा थी सो जानकारी किसी को नहीं थी। समाधान मेरी बेटी(रत्नावली ) ने यह दी की Youtube पर पहली हवाई यात्रा नाम से वीडियो आता है उसे देखो डर समाप्त हो जाएगा। मै वैसा ही की लगातार 04 /03 /18 से 09 /04 /18 तक प्रतिदिन एक या दो बार वीडियो देखने लगी सो Airport की औपचारिकताओं से रू -व् -रू होने लगी डर सच में जाती रही। अब जैसे -जैसे समय नजदीक आती जा रही थी तैयारी करने लगी सीमित सामान और उसका निर्धारित वजन।  खैर सब के बीच एक सुच...

नव वर्ष की उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ

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विक्रम संवत 2078 (13 /4 /2021 ) भारतीय संस्कृति का नव वर्ष नई उमीदों और उत्साह के साथ आगाज हुआ है।  पिछले वर्ष की त्रासदी से अभी -अभी हम उबरने ही लगे हैं। हर तरफ (अर्थव्यवस्था ,स्वास्थ्य ,यातायात ,पर्यटन ,भोजनालय )डरी -सहमी कदमों से बाहर होने का प्रयास अनवरत जारी है। कोविड -19 की रोकथाम के लिए वैक्सीन बनाने का जो राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जा रहे थे उसमे कामयाबी के साथ आम जनों तक की पहुँच एक नई ऊर्जा का संचार कर रहा हैं।  वैक्सीन की आपूर्ति को चरणबद्ध तरीके से सफलता पूर्वक वितरण किया जा सके इसका विशेष ख्याल रखा गया है। प्रथम चरण में 60 वर्ष से ऊपर वाले लोगों ,प्रशासन ,स्वास्थ्यकर्मी और सफाइकर्मी को रखा गया है। जैसे -जैसे वैक्सीन की उपलव्धता बढ़ती गई वैसे -वैसे द्वितीय चरण में 45 वर्ष से ऊपर वाले और तृतीये चरण में 18 वर्ष से ऊपर वाले लोगों को मुफ्त में वैक्सीन देने का एलान हो गया जिसकी तारीख 1 /5 /2021 तय की गई। कुछ -कुछ राज्यों में इसकी शुरुआत भी हो गई परन्तु हमारा बिहार फिर से एक वार इंतेजार की श्रेणी में आ खड़ा  हुआ। पर्याप्त डोज नहीं मिलने के कारण...

पारम्परिक वस्त्रों का बदलता स्वरूप

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  भारत सदा से ही सामासिक संस्कृति को सरलता से आत्मसात करती रही है। हमारी संस्कृति कई साम्राज्यों के उत्थान और पतन का प्रत्यक्ष गवाह रहा है। यहाँ अनेक कलाओं जैसे :-चित्रकला, हस्तकला ,वास्तुकला ,संगीत ,और वस्त्र निर्माणकला सदैव से फलती -फूलती रही है। बल्कि यों कहें की अंतराष्ट्रीय बाजार में आकर्षण का केंद्र रहा है।  परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है उसमे कुछ खोने -पाने की अद्भूत तारतम्य होता है। ठीक वैसे ही जैसे वसंत में पत्तों का गिरना और उसपर कोपलों का निकलना सदा से ही निर्माण और निर्वाण का संयुक्त उदाहरण रहा है। अभी -अभी विवाह और शुभ मुहूर्त में शुभ कर्मो जैसे -मुंडन, गृह -प्रवेश ,पारम्परिक पर्व -त्योहारों नवरात्री ,छठ पर्व ,रामनवमी ,रमजान सब मिलाकर उतसवी माहौल बना रहा है। ऊपर से लॉकडाउन का खतरा भी मंडरा रहा है ऐसे में सुरक्षा ,संरक्षण के साथ ही परम्पराओं का निर्वाह एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाता है।  ऐसे अवसरों पर पहने जाने वाले कुछ विशेष वस्त्रो जैसे -रेशमी कुर्ता -पायजामा या धोती,बनारसी ,सिल्क साडी ,कांजीवरम ,चंदेरी ,पटोला ,बांधनी सदा से लोकप्रिय रहा है। कुछ दशकों पूर्व तक...

छुट्टी की छुट्टी

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है न एक अजीब सी पहेली छुट्टी की छुट्टी।  पूरे दिन सप्ताह और महीने भर की शरीर और मन को थका देने वाली कार्यशैली से थोड़ी राहत लेकर फिर से ऊर्जस्वित होने के लिए बड़ी ही उम्मीद से छुट्टी की अर्जी दी और मंजूर भी हो गया। फटाफट हमने मंजूरी मैसेज को घर भी फॉरवर्ड  कर दी। घर के बच्चे ,बुजुर्ग ,हमसफ़र ,और अन्य सदस्य सबने अपने - अपने तरीके से तैयारियां भी शुरू कर दी समय साथ बिताने की लिस्ट भी बननी शुरू हो गए। प्रत्येक दीन की मनपसंद मेन्यू  ,घूमने का स्थान ,साथ मिलबैठकर खाना और ढेर सारी  बातें करने के सपने उड़ान भरने लगे। जैसे -तैसे वो दिन भी आ गए धडक़ने तेज हो चली और फिर अचानक से किसी आकस्मिक घटनाओ का हवाला देकर सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद होने की घोषणा होती है और जो छुट्टी पर हैं भी उनकी भी छुट्टी तत्काल प्रभाव से रद की जाती है।  वाकई लगता है की इंतजार भरी खुशियों पर तुषारापात हो गया हो !सारी की सारी योजनाएँ धरी की धरी रह जाती है। इन परिस्थितियों में भी आत्मसंतोष का बोध से सब कुछ सामान्य सी बात लगने लगती है जब यह गौरव् की बात लगने लगती है की मुझे किसी विशेष परिस्थिति के ...

हमारा अपना बिहार

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आज (22 . 03 . 2021 )हम पूरे 109 वर्ष के हो गए हैं। कहने का तो हम 109 वर्ष के हो चुके हैं परन्तु हमारा गौरवशाली यात्रा हजारों वर्षों पूर्व से ही समृद्धशाली नेतृत्व का साक्षी रहा है। चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा और बिक्रमशिला विश्वविद्ध्यालय की विश्व पटल पर अपनी पहचान हो या धर्म के क्षेत्र में महात्मा बुद्ध ,महावीर जैसे महान आत्मा का जन्म ,कर्म व् निर्वाण स्थल बिहार की धरती से ही विश्व को शांति संदेश का नेतृत्व करना। साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य ,सम्राट अशोक जैसे परम् प्रतापी राजा के नेतृत्व में वैभवशाली साम्राज्य के साथ सफलता पूर्वक सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरोना। इतना ही नहीं आचार्य चाणक्य और गणितज्ञ आर्यभट्ट की पावन भूमि रहा है हमारा गौरवशाली बिहार।  इन सब के बावजूद जब एक 22 वर्षीय (1871-93 )युवा मन को प्रश्नबोधक प्रसंगों से रु व् रु होना पड़ा। बात उन दिनों की है जब 1893 ई o  में डॉ सच्चिदानंद सिन्हा इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस वतन लौट रहे थे। तब एक सहयात्री अंग्रेज वकील ने उनसे परिचय पूछा ,उन्होंने बड़ी ही सहजता से अपने आप को एक बिहारी बताते हुए नाम ...