सावन की फुहार सखियों की गुहार
अरे चलो चलो घटा घमंड घिर आई गलियो से आने वाली सामूहिक हँसी हा हा हा ही ही ही की ठहाकों से मचल उठा मेरा चंचल मन का मोर। वो वर्षा की पहली बूंदें जब तपती धरती पर गिरती तो उसकी सोंधी महक से तन वदन आह्लादित होकर वादलों की शोर में कहीं खो जाती। सावन की हरी - हरी चूड़ियों की खनक पास के बगीचें में हस्त निर्मित झूलों पर सखियों संग वैवाहिक जीवन का पहला सावन की आपसी चर्चाएं माहौल को आकाश में निकले इंद्रधनुष के रंगों के साथ ताल में ताल मिलाकर और भी रंगीन बना देती।
गलियों से होते हुए नगरों ,महानगरों तक की इस लम्बी यात्रा के बदलते परिदृश्य में अगर कुछ नहीं बदला तो वो है सावन की आहट और हरी -हरी चूड़ियों की खनखनाहट ,वर्षा की रिमझिम फुहारों के बीच हर -हर महादेव की गूंज ,मंदिरों की घंटी और वेलपत्र और फल -फूल से सजी सामूहिक थालियाँ। हाँ थोड़ी झूलों पर कजरी की शोर में कमी आ गई है। उसकी जगह facebook ,whatsapp ,instagram पर अपनी -अपनी तरह से सजना -सवरना और video upload करना ने ले ली है। चलो कल ,आज और कल में सामंजस्य बनाये और खुशियों में आनंद -विभोर हो जाये।
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