हमारा अपना बिहार




आज (22 . 03 . 2021 )हम पूरे 109 वर्ष के हो गए हैं। कहने का तो हम 109 वर्ष के हो चुके हैं परन्तु हमारा गौरवशाली यात्रा हजारों वर्षों पूर्व से ही समृद्धशाली नेतृत्व का साक्षी रहा है। चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा और बिक्रमशिला विश्वविद्ध्यालय की विश्व पटल पर अपनी पहचान हो या धर्म के क्षेत्र में महात्मा बुद्ध ,महावीर जैसे महान आत्मा का जन्म ,कर्म व् निर्वाण स्थल बिहार की धरती से ही विश्व को शांति संदेश का नेतृत्व करना। साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य ,सम्राट अशोक जैसे परम् प्रतापी राजा के नेतृत्व में वैभवशाली साम्राज्य के साथ सफलता पूर्वक सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरोना। इतना ही नहीं आचार्य चाणक्य और गणितज्ञ आर्यभट्ट की पावन भूमि रहा है हमारा गौरवशाली बिहार। 

इन सब के बावजूद जब एक 22 वर्षीय (1871-93 )युवा मन को प्रश्नबोधक प्रसंगों से रु व् रु होना पड़ा। बात उन दिनों की है जब 1893 ई o  में डॉ सच्चिदानंद सिन्हा इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस वतन लौट रहे थे। तब एक सहयात्री अंग्रेज वकील ने उनसे परिचय पूछा ,उन्होंने बड़ी ही सहजता से अपने आप को एक बिहारी बताते हुए नाम से परिचय करवाया। जबाव के बदले में सहयात्री ने पुनः प्रश्नवाचक वाक्यों में दुहराया की कौन सा बिहार ?मैंने तो भारत में किसी प्रान्त को इस नाम से नही सुना है। 

यही वो सवाल था जो उस युवा मन को उद्वेलित कर गया और उसी क्षण अपना बिहार बनाने का दृढ़ निश्चय ने संकल्प का आकर ले लिया। 

अब स्वतंत्र बिहार बनाने की यात्रा शुरू हुई शुरुआत में विरोध के साथ संघर्ष करना पड़ा परन्तु धीरे -धीरे जन चेतना को जगाकर जनजागृति के सहयोग से लोगो का सहमति अपने पक्ष मे करके आगे बढ़ने लगे। सर्वप्रथम 1908 ई o में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा के द्वारा राजनितिक सम्मेलन का आयोजन करना जिसमें बिहार की स्थपना का प्रस्ताव पेश किया जाना और सभी धर्मो के प्रतिनिधियों का समर्थन मिलना कामयावी की प्रथम सीढ़ी पार करने जैसा था। अब अपने सहयोगियों के साथ और अधिक तेजी से सक्रिय प्रयास किये जाने लगे। हमारी सक्रियता और एकजुटता ने ब्रिटिश सरकार को बिहार को एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा देने पर विवश कर दिया। अंततः वो खुशनुमा दिन आ ही गया जब गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने 22 मार्च 1912 को दिल्ली दरवार में अलग बिहार प्रान्त की विधिवत घोषणा की। 

तब से अब तक बिहार ने काफी कुछ अच्छे बुरे अनुभवों से गुजरा है। कभी देश के फलक पर सबसे अधिक चमकने वाला बिहार कुछ गलत नीतियो के कारण बीमारू राज्य के श्रेणी में भी आ खड़ा  हुआ। अब परिस्थितियाँ कुछ बदली है तो विकास के मापदंड भी बदले हैं। इसी विकास की अविरल धारा बहती रहे इसी उद्देश्य से हमारे माननीय मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार के नेतृत्व में पहली वार 2009 में 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया गया। कई विकासपरक फैसले लिए गए। जैसे :-पंचायतो में 50 %आरक्षण के साथ महिलाओं की भागीदारी ,विद्यार्थियों को पोशाक के साथ साइकिल की सुविधा ,आर्थिक मदद ,कौशल विकास ,सात निश्चय के तहत गली ,नाली ,बिजली ,शौचालय और हर घर नल का जल जैसी बुनियादी जरूरतों को केंद्र सरकार से सहयोग से पूरा करना।और स्वास्थ्य क्षेत्र में संसाधनों की कमी के वावजूद कोविड -19 जैसे वैश्विक महामारी में भी कमोवेश स्थितियों को नियंत्रण में रखकर भी चुनाव जैसी चुनौतियों का सामना करके विधान सभा चुनाव को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने वाला पहला राज्य बना हमारा अपना बिहार।  बहुत कुछ हुआ है बहुत कुछ अभी भी करना बाकी हैजिसके लिए हम सब प्रयासरत हैं। 

आओ सब मिलकर इस बिहार दिवस पर विकास की अविरल धारा यों ही बना रहे इसका संकल्प लें। 

जय बिहार जय बिहार जय बिहार !















 


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