छुट्टी की छुट्टी
है न एक अजीब सी पहेली छुट्टी की छुट्टी। पूरे दिन सप्ताह और महीने भर की शरीर और मन को थका देने वाली कार्यशैली से थोड़ी राहत लेकर फिर से ऊर्जस्वित होने के लिए बड़ी ही उम्मीद से छुट्टी की अर्जी दी और मंजूर भी हो गया। फटाफट हमने मंजूरी मैसेज को घर भी फॉरवर्ड कर दी। घर के बच्चे ,बुजुर्ग ,हमसफ़र ,और अन्य सदस्य सबने अपने - अपने तरीके से तैयारियां भी शुरू कर दी समय साथ बिताने की लिस्ट भी बननी शुरू हो गए। प्रत्येक दीन की मनपसंद मेन्यू ,घूमने का स्थान ,साथ मिलबैठकर खाना और ढेर सारी बातें करने के सपने उड़ान भरने लगे। जैसे -तैसे वो दिन भी आ गए धडक़ने तेज हो चली और फिर अचानक से किसी आकस्मिक घटनाओ का हवाला देकर सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद होने की घोषणा होती है और जो छुट्टी पर हैं भी उनकी भी छुट्टी तत्काल प्रभाव से रद की जाती है।
वाकई लगता है की इंतजार भरी खुशियों पर तुषारापात हो गया हो !सारी की सारी योजनाएँ धरी की धरी रह जाती है। इन परिस्थितियों में भी आत्मसंतोष का बोध से सब कुछ सामान्य सी बात लगने लगती है जब यह गौरव् की बात लगने लगती है की मुझे किसी विशेष परिस्थिति के लिए बनाया गया है। जिसका कर्तव्य बोध के सामने बाकी की सारी जरूरतें फीकी लगने लगती है। अभी -अभी की ही तो बात है बहुत कुछ खोकर बड़ी मुश्किल से हम सबने मिलकर सम्भाला है अपने देश को इस वैश्विक महामारी (कोविड -19 ) से अब हमे किसी भी कीमत पर अपना पाँव पसारने नहीं देना है।
जब यह जज्बा हमारे अंदर आ जाती है तो चीजें स्वतः ही आसान लगने लगती है हम सहर्ष स्वीकार लेते हैं इस छुट्टी की छुट्टी को। जाने -अनजाने इंतजार करती नई पीढ़ी में देश प्रेम और मानवता की भावना का बीजारोपण भी हो जाता है।
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