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नव वर्ष की उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ

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विक्रम संवत 2078 (13 /4 /2021 ) भारतीय संस्कृति का नव वर्ष नई उमीदों और उत्साह के साथ आगाज हुआ है।  पिछले वर्ष की त्रासदी से अभी -अभी हम उबरने ही लगे हैं। हर तरफ (अर्थव्यवस्था ,स्वास्थ्य ,यातायात ,पर्यटन ,भोजनालय )डरी -सहमी कदमों से बाहर होने का प्रयास अनवरत जारी है। कोविड -19 की रोकथाम के लिए वैक्सीन बनाने का जो राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जा रहे थे उसमे कामयाबी के साथ आम जनों तक की पहुँच एक नई ऊर्जा का संचार कर रहा हैं।  वैक्सीन की आपूर्ति को चरणबद्ध तरीके से सफलता पूर्वक वितरण किया जा सके इसका विशेष ख्याल रखा गया है। प्रथम चरण में 60 वर्ष से ऊपर वाले लोगों ,प्रशासन ,स्वास्थ्यकर्मी और सफाइकर्मी को रखा गया है। जैसे -जैसे वैक्सीन की उपलव्धता बढ़ती गई वैसे -वैसे द्वितीय चरण में 45 वर्ष से ऊपर वाले और तृतीये चरण में 18 वर्ष से ऊपर वाले लोगों को मुफ्त में वैक्सीन देने का एलान हो गया जिसकी तारीख 1 /5 /2021 तय की गई। कुछ -कुछ राज्यों में इसकी शुरुआत भी हो गई परन्तु हमारा बिहार फिर से एक वार इंतेजार की श्रेणी में आ खड़ा  हुआ। पर्याप्त डोज नहीं मिलने के कारण...

पारम्परिक वस्त्रों का बदलता स्वरूप

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  भारत सदा से ही सामासिक संस्कृति को सरलता से आत्मसात करती रही है। हमारी संस्कृति कई साम्राज्यों के उत्थान और पतन का प्रत्यक्ष गवाह रहा है। यहाँ अनेक कलाओं जैसे :-चित्रकला, हस्तकला ,वास्तुकला ,संगीत ,और वस्त्र निर्माणकला सदैव से फलती -फूलती रही है। बल्कि यों कहें की अंतराष्ट्रीय बाजार में आकर्षण का केंद्र रहा है।  परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है उसमे कुछ खोने -पाने की अद्भूत तारतम्य होता है। ठीक वैसे ही जैसे वसंत में पत्तों का गिरना और उसपर कोपलों का निकलना सदा से ही निर्माण और निर्वाण का संयुक्त उदाहरण रहा है। अभी -अभी विवाह और शुभ मुहूर्त में शुभ कर्मो जैसे -मुंडन, गृह -प्रवेश ,पारम्परिक पर्व -त्योहारों नवरात्री ,छठ पर्व ,रामनवमी ,रमजान सब मिलाकर उतसवी माहौल बना रहा है। ऊपर से लॉकडाउन का खतरा भी मंडरा रहा है ऐसे में सुरक्षा ,संरक्षण के साथ ही परम्पराओं का निर्वाह एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाता है।  ऐसे अवसरों पर पहने जाने वाले कुछ विशेष वस्त्रो जैसे -रेशमी कुर्ता -पायजामा या धोती,बनारसी ,सिल्क साडी ,कांजीवरम ,चंदेरी ,पटोला ,बांधनी सदा से लोकप्रिय रहा है। कुछ दशकों पूर्व तक...

छुट्टी की छुट्टी

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है न एक अजीब सी पहेली छुट्टी की छुट्टी।  पूरे दिन सप्ताह और महीने भर की शरीर और मन को थका देने वाली कार्यशैली से थोड़ी राहत लेकर फिर से ऊर्जस्वित होने के लिए बड़ी ही उम्मीद से छुट्टी की अर्जी दी और मंजूर भी हो गया। फटाफट हमने मंजूरी मैसेज को घर भी फॉरवर्ड  कर दी। घर के बच्चे ,बुजुर्ग ,हमसफ़र ,और अन्य सदस्य सबने अपने - अपने तरीके से तैयारियां भी शुरू कर दी समय साथ बिताने की लिस्ट भी बननी शुरू हो गए। प्रत्येक दीन की मनपसंद मेन्यू  ,घूमने का स्थान ,साथ मिलबैठकर खाना और ढेर सारी  बातें करने के सपने उड़ान भरने लगे। जैसे -तैसे वो दिन भी आ गए धडक़ने तेज हो चली और फिर अचानक से किसी आकस्मिक घटनाओ का हवाला देकर सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद होने की घोषणा होती है और जो छुट्टी पर हैं भी उनकी भी छुट्टी तत्काल प्रभाव से रद की जाती है।  वाकई लगता है की इंतजार भरी खुशियों पर तुषारापात हो गया हो !सारी की सारी योजनाएँ धरी की धरी रह जाती है। इन परिस्थितियों में भी आत्मसंतोष का बोध से सब कुछ सामान्य सी बात लगने लगती है जब यह गौरव् की बात लगने लगती है की मुझे किसी विशेष परिस्थिति के ...

हमारा अपना बिहार

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आज (22 . 03 . 2021 )हम पूरे 109 वर्ष के हो गए हैं। कहने का तो हम 109 वर्ष के हो चुके हैं परन्तु हमारा गौरवशाली यात्रा हजारों वर्षों पूर्व से ही समृद्धशाली नेतृत्व का साक्षी रहा है। चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा और बिक्रमशिला विश्वविद्ध्यालय की विश्व पटल पर अपनी पहचान हो या धर्म के क्षेत्र में महात्मा बुद्ध ,महावीर जैसे महान आत्मा का जन्म ,कर्म व् निर्वाण स्थल बिहार की धरती से ही विश्व को शांति संदेश का नेतृत्व करना। साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य ,सम्राट अशोक जैसे परम् प्रतापी राजा के नेतृत्व में वैभवशाली साम्राज्य के साथ सफलता पूर्वक सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरोना। इतना ही नहीं आचार्य चाणक्य और गणितज्ञ आर्यभट्ट की पावन भूमि रहा है हमारा गौरवशाली बिहार।  इन सब के बावजूद जब एक 22 वर्षीय (1871-93 )युवा मन को प्रश्नबोधक प्रसंगों से रु व् रु होना पड़ा। बात उन दिनों की है जब 1893 ई o  में डॉ सच्चिदानंद सिन्हा इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस वतन लौट रहे थे। तब एक सहयात्री अंग्रेज वकील ने उनसे परिचय पूछा ,उन्होंने बड़ी ही सहजता से अपने आप को एक बिहारी बताते हुए नाम ...

तितलियों का वसन्त

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ऋतुराज वसंत का मादकता और संयम के साथ सुगंधित फूलों का रसपान करती तितलियाँ वसंत के आगमन का अनायास ही आभास करा जाती है। सम्पूर्ण वातावरण जन -जीवन से लेकर पेड़ -पौधे ,पशु -पक्षी तक को आह्लादित करती है। स्वतः ही रसों का संचार होने लगता है ;झूम उठता है समुचा वातावरण।  संतुलित पारिस्थितिक तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं रंग -विरंगी तितलियाँ। तितलियों में प्रकृति प्रदत विशेष गुण होता है जो सजावटी या हायब्रिड पौधों का स्वतः ही बहिष्कृत करते है और प्रकृतिक या जंगलो में पनपने वाले पौधों के फूल इन्हें अनायास ही आकर्षित करते हैं। क्षेत्र विशेष के स्वास्थ्य का आकलन तितलियों की संख्या पर विशेष रूप से आधारित होती है। इनकी अधिकता बाहुल क्षेत्र को स्वस्थ्य पारिस्थितिक तंत्र और कमी वाले क्षेत्र को खराब पारिस्थितिक तंत्र की श्रेणी में रखा जाता है।  हमारे देश में लगभग 1500 प्रजाति के तितलियाँ पाई जाती है। जो पिछले कई वर्षों से प्रदूषित वातावरण के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त सी हो गई थी। पर पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान कुम्भ्लाती प्रकृति ने जब राहत की साँस ली तब गुम होती कई प्रजातियाँ फ...

बजट 2021 -22

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                                                              UNION BUDGET 2021-2022 1 फरवरी 2021  दिन के 11 बजे हैं । भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ते हुए डिजिटल भारत की ओर एक और कदम बढ़ता हुआ। जब हमारे माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जिन्होंने लाल और सफेद रंग की साडी पहन रखी थीं कम्प्लीट पेपरलेस देशी टैबलेट लाल रंग के अशोक की शील वाले पिटारे से अपेक्षाओं और उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करतीं एक के बाद एक घोषणायें करने लगीं। तो थोड़ी बहुत विरोध के बीच डेस्क पर थपथपाहट से विकास की आहट लगातार गूंजती रही।  इस बार का हमारा बजट सबका साथ सबका विकास के नारे को चरितार्थ करता सरकार से तीन प्रमुख अपेक्षायें  कोरोना के कोप से बाहर निकलना। मानव पूंजी में निवेश बढ़ाना  बुनियादी ढाचें को उन्नत बनाकर रोजगार सृजन और आर्थिक काया कल्प के लिए बढ़ावा देना। पर खरा उतरता 6 स्तंम्भों  स्वास्थ्य और कल्याण।...

Philosophy of Life

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शरीर और प्राणवायु के संयोग को ही जीवन का नाम दिया गया है। या यों कहे की शरीर और जीवात्मा का संयोग ही जीवन है। इस धरा पर मानव जीवन प्रकृति का एक खुबसूरत  उपहार है। यह प्रकृति के पंचतत्वों (जल ,अग्नि ,वायु, आकाश, और धरती )से निर्मित तीन प्रकृति (रजस ,तमस, सत्त्व )स्तम्भों पर विराजमान है।  जीवन का आगाज नर -नारी के मधुर मिलन के संयोगोपरांत पारितोषिक के रूप में मिला हुआ उपहार से होता है। सम्पूर्ण जीवन एक रंगमंच है और हम उसके कठपुतली। इंद्रधनुष के सात रंगो (लाल, नारंगी, पीला, हरा, ब्लू ,इंडिगो ,और बैंगनी )की तरह जीवन भी सप्तधातुओं (रस, रक्त, मांस, मेद ,अस्थि ,मज्जा ,और शुक्र  )से मिलकर बना हुआ सतरंगी विचाधाराओं को समेटे हुऐ  है। जो आहार -विहार ,आचार -विचार ,वातावरण ,शिक्षा ,समाज के सहयोग और विरोध के झंझावातो से गुजरकर आनंदपूर्ण जीवन का निर्माण करता है।  जब कभी निराशाओ के घने वादल घेर लेते हैं तो मानव मन व्याकुल हो उठता है। मन भारी और बोझिल हो जाता है। इससे उबरने के लिए मनोरंजन के साधनो को ढूंढता है ,प्रकृति के सानिध्य मे होकर उसके बारीकियों पर विचार करता है।...