तितलियों का वसन्त
ऋतुराज वसंत का मादकता और संयम के साथ सुगंधित फूलों का रसपान करती तितलियाँ वसंत के आगमन का अनायास ही आभास करा जाती है। सम्पूर्ण वातावरण जन -जीवन से लेकर पेड़ -पौधे ,पशु -पक्षी तक को आह्लादित करती है। स्वतः ही रसों का संचार होने लगता है ;झूम उठता है समुचा वातावरण।
संतुलित पारिस्थितिक तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं रंग -विरंगी तितलियाँ। तितलियों में प्रकृति प्रदत विशेष गुण होता है जो सजावटी या हायब्रिड पौधों का स्वतः ही बहिष्कृत करते है और प्रकृतिक या जंगलो में पनपने वाले पौधों के फूल इन्हें अनायास ही आकर्षित करते हैं। क्षेत्र विशेष के स्वास्थ्य का आकलन तितलियों की संख्या पर विशेष रूप से आधारित होती है। इनकी अधिकता बाहुल क्षेत्र को स्वस्थ्य पारिस्थितिक तंत्र और कमी वाले क्षेत्र को खराब पारिस्थितिक तंत्र की श्रेणी में रखा जाता है।
हमारे देश में लगभग 1500 प्रजाति के तितलियाँ पाई जाती है। जो पिछले कई वर्षों से प्रदूषित वातावरण के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त सी हो गई थी। पर पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान कुम्भ्लाती प्रकृति ने जब राहत की साँस ली तब गुम होती कई प्रजातियाँ फिर से नजर आने लगी। जो तितली विशेषज्ञों को अनायास ही ध्यान आकर्षित कर उनके शांत मन को उद्वेलित कर गई। और यहीं से शुरू हुआ इन्हें भी राष्ट्रीय पहचान देने की।
राष्ट्रीय पशु ,पक्षी ,पुष्प और अब तितली भी। इस बार राष्ट्रीयता का चुनावमें सिर्फ विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि आम जनता को भी समान सहभागिता के साथ शामिल किया गया है ऑनलाइन वोटिंग के जरिये। मुख्य रूप से 7 प्रकार के तितलियों को इस रेश में शामिल किया गया है।
- कृष्णा पीकॉक
- कार्मन जेजबेल
- ऑरेंज ऑकलिफ
- फाइव बार स्वार्ड टेल
- कार्मन नवाब
- यलो गॉर्गन
- नार्दन जंगल क़्वीन
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