Philosophy of Life



शरीर और प्राणवायु के संयोग को ही जीवन का नाम दिया गया है। या यों कहे की शरीर और जीवात्मा का संयोग ही जीवन है। इस धरा पर मानव जीवन प्रकृति का एक खुबसूरत  उपहार है। यह प्रकृति के पंचतत्वों (जल ,अग्नि ,वायु, आकाश, और धरती )से निर्मित तीन प्रकृति (रजस ,तमस, सत्त्व )स्तम्भों पर विराजमान है। 

जीवन का आगाज नर -नारी के मधुर मिलन के संयोगोपरांत पारितोषिक के रूप में मिला हुआ उपहार से होता है। सम्पूर्ण जीवन एक रंगमंच है और हम उसके कठपुतली। इंद्रधनुष के सात रंगो (लाल, नारंगी, पीला, हरा, ब्लू ,इंडिगो ,और बैंगनी )की तरह जीवन भी सप्तधातुओं (रस, रक्त, मांस, मेद ,अस्थि ,मज्जा ,और शुक्र  )से मिलकर बना हुआ सतरंगी विचाधाराओं को समेटे हुऐ  है। जो आहार -विहार ,आचार -विचार ,वातावरण ,शिक्षा ,समाज के सहयोग और विरोध के झंझावातो से गुजरकर आनंदपूर्ण जीवन का निर्माण करता है। 

जब कभी निराशाओ के घने वादल घेर लेते हैं तो मानव मन व्याकुल हो उठता है। मन भारी और बोझिल हो जाता है। इससे उबरने के लिए मनोरंजन के साधनो को ढूंढता है ,प्रकृति के सानिध्य मे होकर उसके बारीकियों पर विचार करता है। जैसे बादलों से भरी आकाश से जब वर्षा होने के बाद साफ स्वच्छ गगन में इंद्रधनुष के उभार का अवलोकन करता है तो नयनाभिरामिक दृश्य ठहर कर कुछ सोचने पर मजवूर करता है ;कितना मनोरम सजावट है कैसे इन  रंगों को एक के वाद एक क्रमवद्ध सजाया गया है। आश्चर्य चकित कर देने वाले उस चित्रकार की रचना क्या कुछ कहता है।इंद्रधनुष के रंगो का क्रम कुछ इस प्रकार है (लाल, नारंगी, पीला, हरा, ब्लू, नीला, और बैंगनी )इन सभी रंगो की अपनी -अपनी प्रकृति और स्वभाव है। 
  • लाल -यह उष्ण (गर्म )रंग होते हुए भी प्रफुल्ल्ता ,बड़प्पन और स्वागत योग्य गुणों से भरपूर है।  
  • नारंगी -यह उत्साह ,आशा ,और हिम्मत का प्रतीक है। 
  • पीला -यह हल्कापन के साथ ही आनंददायक और प्रगति का सूचक है। 
  • हरा -इसका स्वभाव शीतल ,आनंददायक और स्फूर्ति का द्योतक है। 
  • ब्लू -यह बड़प्पन और शिष्टाचारिता को प्रदर्शित करता है। 
  • इंडिगो -यह प्यार के भाव को प्रदर्शित करता है। 
  • बैंगनी -यह राजसी रंग है। 
कहने का तात्यपर्य  यह है की लाल से बैंगनी तक की जो सजावट है स्वभावतः हमारे जीवन चक्र को परिभाषित करती प्रतीत होती है। उत्साह से भरे सबसे ऊपर का रंग वचपन का प्रतिनिधित्व करते हुए आशा ,उत्साह,हिम्मत, हौसला ,शीतलता से गुजरते हुए शिष्टाचारिता के साथ राजसी पर अंत होता है। ठीक वही क्रम जीवन का भी है। वचपन तो निश्छल और निस्वार्थ होता ही है जैसे -जैसे जीवन रफ्तार पकड़ती है आवश्यकताएं बढ़ने लगती है और साथ हीं बढ़ने लगती है जिजीवसा भी।  वचपन का एक क्षण में रूठना और दूसरे ही क्षण मान जाना ,खुलकर हँसना और जोर -जोर से रोना ,वस्त्रों को गिला करना ,अपने खिलौनों के साथ छेड़छार करते हुए चीजों को बनाना और बिगाड़ना जैसी हरकतें धीरे -धीरे खोने लगती है और साथ ही खो जाती है वचपन भी। 

वचपन से जब किशोरावस्था में आते हैं  तो कल्पनाओ की उड़ान भरने लगते हैं। यही वह समय होता है जीवन को सही दिशा प्रदान करने की कुछ कर गुजरने की अदम्म्य साहस भी होता है। यही से हम आशा और सफलता की बुलंदियों को भी छू सकते हैं और हैवानियत की हद को भी पार कर सकते हैं । इस मोड़ पर जीवन दर्शन की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। सम्पूर्ण जीवन का सुपर पावर स्टेशन होता है युवावस्था। जीवन आगे बढ़ने का नाम है जीवन जीने की कला का निर्माण भी यही से होता है। हम उस चौराहे पर होते है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों और विचारधाराओं का संगम होता है। हमारी वुद्धि भी इतनी परिपक्क्व हो गई होती है की मोह ,आशा ,निराशा ,हर्ष और विशाद को अपनी -अपनी योग्यता और क्षमता से परिभाषित करने लगते है। अब तक सांसारिक जरूरतों से दूर स्वकेन्द्रित थी सोच मेरी स्वच्छंदता से दोस्तों के साथ घूमना मौज -मस्ती के साथ ही अपने -अपने रुचिपूर्ण या आवश्यकताओं की प्राथमिकताओं पर आधारित जीवन यापन के साधनो पर चर्चाओं भी होती। अभिभावक ,शिक्षक और अब तक के मिले दोस्तों  से हुए चर्चाओं के आधार पर स्वविवेक से जीवन को एक निश्चित दिशा देने की ओर अग्रसर होते है किसी को मनचाहा कार्यक्षेत्र मिल भी जाता है और किसी को मजबूरी में चुनना पड़ता है जैसे भी हो जीवन को एक दिशा भी मिल गई होती है। 

धीरे -धीरे संघर्षो का दौर जा रहा  होता है यों तो सम्पूर्ण जीवन ही संघर्ष ,समस्या और समाधान का मंच है फिर भी किसी न किसी विंदु पर ठहराव तो लाना ही होता है सो अब स्वकेन्द्रित विचारधारा परिवार केंद्रित होने लगता है। हम धीरे -धीरे युवास्था से प्रौढा की ओर बढ़ने लगते हैं जीवन का विस्तार होने लगता है। जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ने   लगता है। यह वह जगह होता है जहाँ हम वीते हुए कल और आने वाले कल को एक साथ जीते हैं। यहां पर खुशियों का अथाह सागर  भी होता है और उलझनों का जंजीर भी। यही पर अधिकार और कर्तव्य का सामंजस्य भी करना होता है।यहीं  पर कई दार्शनिक  विचारधाराओं का सहयोग भी लेना पड़ता है जीवन के उतर -चढ़ाव को संतुलित करने के लिए। अँधेरे के बाद उजाला का आना तय होता है ,सूर्योदय से पूर्व अँधेरा का गहरा जाना, कीचड़  सने जल में रहकर भी कमल का स्वच्छ और मुस्कुराते रहना ,पतझड़ के बाद वसंत का आना ,दिन के बाद  रात और रात के बाद दिन का चक्र निरंतर चलते रहना ,पूर्णिमा और अमावस्या का क्रमशः बढ़ना और घटना जैसे कई उदाहरणों को अपने जीवन में समाहित करना होता है। 


हम अपने आस -पास ऐसे उदाहरणों को ढूंढते नजर आते है जो विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे अपने  आप को संभाला और आगे बढ़ा इसके कई उदाहरण हैं। जैसे --अरुणिमा सिंह ,सुधाचन्द्रन ,दीपा मल्लिक ,स्टीफन हॉकिंस   इन सवों का कमोवेश एक जैसी ही स्थिति रही है। दुर्घटनायें ऐसी की सोचकर ही रूह काँप उठती है। ऐसे में इन लोगो ने अपने हिम्मत और हौसलों से चुनौतियों को स्वीकार किया और जीवन लक्ष्य पर विजय भी  हासिल की।इन लोगो ने यह सावित कर ही दिया की जिंदगी जिंदादिली का नाम है।

ऐसे ही लोगों में से एक शख्सियत ऐसे भी हैं  जो हर वर्ग और हर उम्र के लोगों के लिए आदर्श रहे हैं विशेषकर युवा वर्ग के लिए। वो नाम है भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जिन्होने न केवल सभी धर्मो का एक सामान आदर दिया बल्कि सभी धर्मों की अच्छाइयों को चुन - चुनकर अपने जीवन में आत्मसात भी किया। जीवन को एक मिशन की तरह जिया। उन्होंने आज्ञाकारी छात्र ,आदर्श शिक्षक और लोकप्रियता की ऊचाइयों  के साथ राष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण पदों को भी सुशोभित किया। इनकी जीवन तो अनुकरणीय है ही पर मरणोपरांत भी ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं की वसीयत के नाम पर कुछ कपड़े और किताबों के साथ ढेर  सारे पुरस्कारों और मेडलों से सुसज्जित कमरा छोड़ गए और छोड़ गए एक आदर्श जीवन दर्शन। 

जीवन कोई खेल तो नहीं है पर इसे खेल की भावनाओ के साथ जीने से जिंदगी आसान सी लगने लगती है। जैसे खेल में हारने वाले भी जितने वाले का स्वागत उसी  गर्म जोशी से करते है जैसे उनके प्रशंसक करते हैं। हारकर भी मुस्कुराने की कला का विकास  यही से होता है। और इसी क्रम में धीरे -धीरे आध्यात्म का विजारोपण भी होने  लगता है।  जीवन सम्पूर्णता की ओर अग्रसर हो चला होता है। हम अपने अगली की अगली पीढ़ी में अपना वचपन को फिर से तलाशने लगते है। उनके हास्य -व्यंगपूर्ण बातें ,बेतुके मागें ,साथ खेलना खेल में जानबूझकर हारना ,साथ ही कुछ अटपटी -चटपटी शरारतों में भी खुशियों का अपार भंडार ढूँढ ही लेते हैं। 

इस तरह हँसते -मुस्कुराते ,गुनगुनाते कुछ खट्टी -मिठ्ठी  यादों  के साथ चलते-चलते कब जिंदगी की शाम आ गई पता ही नहीं चला। एक शाम थम गई सांसे इस तरह पूर्ण हुआ जीवन चक्र। जीवन का सार  यही है की सकारात्मक सोच के साथ हँसते -मुस्कुराते रहें और जीवन पथ  बढ़ते रहें। 



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