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नये वर्ष का नया संकल्प 2020 -21

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कुछ खट्टी -मिठ्ठी यादों को छोडक़र जानेवाला है यह 2020 जैसा की खेलों में होता है 20 -20 का मतलब। कम ही समय में तेजी से भागते -दौड़ते अधिक से अधिक ऊचाइयों का लक्ष्य निर्धारित करना और उससे भी तेजी से पीछा करके उस लक्ष्य को भेदना। ठीक यही एहसास करा गया हमारा 2020 हमारे सामने जीवन को बचाये रखने का एक बड़ा सा लक्ष्य रख गया। उस लक्ष्य भेद के लए हमारी सारी  कोशिशे कमजोर पड़ रही थी परिस्थितियाँ इतनी तेजी से बदली की जब तक हम कुछ समझ पाते तब तक चक्रवाती तूफान से भी तेज गति से सम्पूर्ण विश्व को अपनी आगोश में समेटता चला गया।और उस तूफान में सम्पूर्ण मानव जाती असमंजस्य और असहाय पानी की बुलबुले की तरह बनते और मिटते चले गए।  इस विषम परिस्थिति में भी पेट की ज्वाला को बुझाने और बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ अति उत्साहित और विश्वासी लोग मानवता को बचाये रखने की जदोजहद में बढ़ -चढ़कर हिस्सा लिया बिना अपने और अपनों का परवाह किये वगैर। दिल की गहराइयों से नमन है उन वीर योद्धाओं का स्वाथ्य कर्मी ,सुरक्षा कर्मी ,सामाजिक कार्यकर्ता से लेकर सफाई कर्मचारी तक जिन्होंने इस मुश्किल की घड़ी में टूटते -विखर...

ART OF LIVING VS MANAGEMENT OF LIFEजीने की कला वनाम जीवन प्रबंधन

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  प्रबंधन व्यक्तिगत कुशलता का द्योतक है। चाहे वह गृह प्रबंधन ,समय प्रबंधन ,वित्त प्रबंधन ,या फिर जीवन का ही प्रबंधन क्यों न हो। प्रबंधन करना एक कला है जो सौंदर्य का प्रतीक भी है। यह संसाधनों की प्रचुरता से उतने प्रभावित नहीं होते जितने व्यक्तिगत विचारों और आदर्शों से। यह एक आंतरिक गुण है जो सभी व्यक्तियों में एक समान नहीं होता फिर भी इसमें शैक्षणिक ,पारिवारिक ,सामाजिक ,आर्थिक तथा आनुभविक गतिविधियो से उत्तरोत्तर क्रमिक निखार आता जाता है।  जीवन जीने की कला से व्यक्तिगत सुख -दुःख प्रभावित होता है जवकि जीवन प्रबंधन हमारे आस -पास के वातावरण तथा परिवार ,समाज और अंततः राष्ट्र को प्रभावित करता है। प्रबंधन शब्द आते ही हमारे दिलो -दिमाग में एक व्यवस्थित परिदृश्य का काल्पनिक चित्र चित्रित हो जाता है। जीवन के प्रत्येक स्तर पर इसकी जरूरत रही है। जाने -अनजाने हम वाल्यकाल से ही अपने आस पास के चीजों को सहेजना सुव्यवस्थित तरिके से रखना अपने चाहने वालों के साथ चीजों को शेयर करना और अनचाहे लोगो से बचाने या छुपाने जैसी प्रवृति प्रबंधन का ही नींव है। घर के बढ़े -बुजुर्गो और शिक्षकों के मा...

हमारा रसोई हमारा अपना औषधालय

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हर घर का रसोईघर वह महत्वपूर्ण स्थान होता है जहाँ घर के प्रत्येक सदस्य का न सिर्फ भूख मिटाने के लिए भोजन बनाने का काम होता है बल्कि हमारी सेहत का खजाना का राज भी छिपा रखा होता है। भोजन को स्वादिष्ट और सुपाच्चय बनाने में मसालो के योगदान को सहज ही भुलाया नहीं जा सकता।अब यहाँ रेखांकित करने योग्य बातें यह है की क्या मसाले सिर्फ भोजन को स्वादिष्ट और सुपाच्चय ही बनाने का काम करते है या उनमे हमारा सेहत का राज भी छिपा होता है। यकीनन सदियों से चली आ रही  हमारी वैदिक और आयुर्वेद के पुस्तकों में वर्णित ज्ञान से यह प्रमाणित होता है की हमारा रसोईघर का प्रत्येक  खाद्य पदार्थ औषधिये गुणों से परिपूर्ण है। जिसका विवेकपूर्ण उपयोग करने से आहार औषध हो जाता है।  इसकी चर्चा एक युनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स (460 ईसा पूर्व -370 ईसा पूर्व )ने भी सैद्धांतिक रूप से किया था। उन्होंने आहार चिकित्सा पर विशेष वल दिया जिसका अनुसरण आज भी बड़ी विश्वसनीयता के साथ किया जाता है।   यहाँ कुछ खाद्य वस्तुओं की चर्चा करेंगे जो हमारे दैनिक आहार का हिस्सा भी है और औषध भी। जैसे :- हल्दी :- इसक...

पाणिग्रहण

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हिंदु रीति -रिवाज से होने वाले शादी समारोह का एक विशेष महत्वपूर्ण रिवाज (परम्परा )है पाणिग्रहण। जिसमे कन्या के पिता अपनी कन्या का हाथ इस भरोसे के साथ कि अपने दिल के टुकड़े जिसे बड़े ही लाड़ -प्यार से पाला है। उसकी आवश्यक मांगों को माना  भी है और बचकाना हरकतों से रोका भी है। कुल मिलाकर संतुलित परवरिश दी है। आज से आगे इसकी सम्पूर्ण जिम्मेवारी आप कुशलता पूर्वक निभाओगे पुरे विश्वास के साथ दोनों परिवार और समाज को साक्षी मानकर वर के हाथों में विधि -विधान के साथ सौंपता है और उपहार स्वरूप कुछ सामान ,रूपये -पैसे ,आशीर्वाद के रूप में देने की पौराणिक प्रथा रही है।  जिसपर सिर्फ और सिर्फ कन्या का अधिकार होता है। ये कानून सम्मत भी है।  अभी -अभी नई नवेली दुल्हन बनी अर्पिता अपने ससुराल में अपनी ननद की शादी में आनंद और उत्साह से सरावोर हो रही थी घर के आँगन बारात जो आई थी। चारो तरफ शहनाइयों की गूंज ,लोगों का आना जाना सब एकदम से खुशनुमा माहौल बना रहा था। इसी बीच थकान के मारे थोड़ी सुस्ताने के ख्याल से अपने कमरे के विस्तर पर जैसे ही बैठी आँखें लग गई। आचानक घर के आँगन में परिवार के सदस्यों द...

सूर्योदय

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    सुबह के 4  बजे हैं। चारों तरफ घनघोर अँधेरा सनसनाती तेज हवायें  4 से 5 डिग्री तापमान ऐसा लगता है की अपने शरीर के साथ -साथ पूरा का पूरा वातावरण वर्फ की चादरों में लिपटी हुई है। इन सब के बीच उम्मीद की किरण लिए कहीं दूर एक हल्की सी आभा वर्फ की चादरों को चीरती हुई हमारी ओर शैनेः -शैनेः बढ़ती चली आ रही है।  पक्षियों की चहचहाट किसी के आने की आहट  दे रही है। अब वस पौ फटने ही वाली है। कितना सुखद एहसास है। मन और आत्मा को तृप्त कर देने वाली। हल्की गुनगुनी संतरी रंगों से सजी गुलदस्ता ऐसे लग रहा है जैसे तपती धरती पर वर्षा की पहली बूंद ,पतझड़ के बाद कोमलता से भरी पहली कली और भूख -प्यास से तड़पती आत्मा को तृप्त करने वाली मनभावन ,मनमोहक कोई वस्तु हो। निष्प्राण सा जीवों में शक्ति और ऊर्जा का अपार भंडार भरने वाली सुवह सूर्योदय के साथ एक नई दिन की शुरुआत। जो यह बताने और जताने के लिए काफी है की अँधेरे के बाद उजाले का आना शाश्वत सच है। हम इसका भरपूर आनंद उठायें और हर सुवह एक दिन नहीं एक जीवन की तरह जीयें। क्योकि जितना सच अँधेरे के बाद उजाले का आना है ठीक उतना ही सच उजाले ...

चुनाव की डुगडुगी और घोषणाओं का पिटारा

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सुगिया, बुद्धिया ,अक्लू ,शकलू सब के सब हैरान परेशान और अचम्भित होकर गल्ली -मुहल्लों में अचानक लंबी सन्नाटा को चीरते हुए होने वाले कोलाहल का आनंद लेते हुए कुछ समझने -बुझने की कोशिश कर ही रहा था की सामने से आते हुए झुमन चाचा की लच्छेदार बातों ने स्पष्ट करते हुए बताना शुरू किया। सुनो -सुनो गांव -मुहल्ला वासियों चुनावी उत्स्व का माहौल आ गया है तैयार हो जाओ अपनी-अपनी माँगों की लिस्ट के साथ। पिछले 5 सालों के बाद बरसाती मेढकों की टर्टराहट कितनी मधुर संगीत लेकर आया है।  कुछ आशा और उम्मीदों के साथ बच्चे - बूढ़े नौजवानों ,महिलाएं सब के सब अपनी -अपनी सहूलियत के हिसाब से पिछले चुनाव में मागी गई मांगों का हिसाब -किताब करने में जुट गए चर्चाओं का दौर शुरू हुआ। बच्चे आँगन के नल का जल में स्नान करके खुश हो रहें  हैं तो बुजुर्ग बिजली की रौशनी में अपने को निहाल मान रहे हैं। महिलाऍं घर में शौचालय और उज्ज्वला योजना से मिले गैस चूल्हों पर भविष्य की खिचड़ी पका रही है। वही छात्र -छात्राएँ स्कुल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई में मिले सुविधाओं को लेकर उत्साहित भी हो रहे है और हतोत्साह...

भारतीय कामकाजी महिलाओं का ड्रेस कोड

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  भारतीय महिलाओं का ख्याल मन में आते ही एक ऐसी छवि अंतर्मन के दृष्टिपटल पर उभर आता है ,चाहे वह कवि हो ,ड्रेस डिजाइनर हो ,सामाजिक कार्यकर्ता हो ,या फिर विदेश यात्रा पर भरतीय प्रतिनिधित्त्व की ही बात क्यों न हो।  जिस देश की राष्ट्रीय पोशाक साडी हो वहाँ के धारणकर्ती के वारे में भी तो उसी के वैविध्यपूर्ण रूपों का ही ख्याल आएगा। एक सुंदर सजीली मासूम सी साड़ियों में लिपटी हुई ,सिमटी सी जैसे बदली की रात में चाँद का लुक्का -छिपी हो, ये तो हुई नई नवेली दुल्हन का रूप। इससे आगे आते है तो माँ का रूप भी कुछ इस तरह का ही जो साड़ियों में लिपटी तो हो पर बड़ा सा आँचल जिसमे ममता का सागर उमड़ता -घुमड़ता और दृढ़ता व् साहस जो अपने बच्चों और मान मर्यादा की रक्षा के लिए सतत तैयार हो। इससे आगे दादी माँ का वह कुछ विचित्र सी अपनी  लडखड़ाती  हाथों  से संभालती आचंल ऐसा लगता है जैसे अपनी संस्कृति को बचाने की संघर्ष कर रही हो।  ये तब की बात थी जब हम घर के चारदीवारी के अंदर थे ,घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश ही हमारी पूरी जिम्मेदारी थी। जब आज की भौतिकवादी युग में हमारी जिम्म...