ART OF LIVING VS MANAGEMENT OF LIFEजीने की कला वनाम जीवन प्रबंधन

 



प्रबंधन व्यक्तिगत कुशलता का द्योतक है। चाहे वह गृह प्रबंधन ,समय प्रबंधन ,वित्त प्रबंधन ,या फिर जीवन का ही प्रबंधन क्यों न हो। प्रबंधन करना एक कला है जो सौंदर्य का प्रतीक भी है। यह संसाधनों की प्रचुरता से उतने प्रभावित नहीं होते जितने व्यक्तिगत विचारों और आदर्शों से। यह एक आंतरिक गुण है जो सभी व्यक्तियों में एक समान नहीं होता फिर भी इसमें शैक्षणिक ,पारिवारिक ,सामाजिक ,आर्थिक तथा आनुभविक गतिविधियो से उत्तरोत्तर क्रमिक निखार आता जाता है। 
जीवन जीने की कला से व्यक्तिगत सुख -दुःख प्रभावित होता है जवकि जीवन प्रबंधन हमारे आस -पास के वातावरण तथा परिवार ,समाज और अंततः राष्ट्र को प्रभावित करता है। प्रबंधन शब्द आते ही हमारे दिलो -दिमाग में एक व्यवस्थित परिदृश्य का काल्पनिक चित्र चित्रित हो जाता है। जीवन के प्रत्येक स्तर पर इसकी जरूरत रही है। जाने -अनजाने हम वाल्यकाल से ही अपने आस पास के चीजों को सहेजना सुव्यवस्थित तरिके से रखना अपने चाहने वालों के साथ चीजों को शेयर करना और अनचाहे लोगो से बचाने या छुपाने जैसी प्रवृति प्रबंधन का ही नींव है। घर के बढ़े -बुजुर्गो और शिक्षकों के मार्गदर्शन में हम यह भी सीखते है की किसी वस्तु का सर्वोत्तम उपयोग कैसे करे की हमारी इच्छाएं और उदेश्य दोनों की पूर्ति हो। 
उदाहरण के तौर पर यदि घर पर बच्चो के लिए छोटी -मोटी पार्टी का आयोजन करना है और उसी आस -पास उन बच्चों का परीक्षाएँ भी है। तो ऐसी परिस्थिति में हमारा विवेक का भी परीक्षा होता है की ऐसा क्या करें की बच्चों का उत्सव भी वाधित न हो और परीक्षा पर भी बुरा असर न हो। तो यहाँ एक कुशल प्रबंधक बगैर परेशान हुए बच्चों के साथ बात -चीत करता है और खेल -खेल में समाधान ढूंढता है बच्चों के खेलने के समय को आयोजन के लिए  चुनता है और विषयों से संबंधित कुछ खेल प्रतियोगिता का आयोजन करता है। इस तरह मनोरंजन भी हो गया और परीक्षा की तैयारी भी। 
जीवन प्रबंधन भी कुछ इसी तरह हमे सकारात्मक रहना सिखाता है अचानक से हमारे जीवन में कोई सुखद या दुखद घटना हो जाता है तो हम देखते है की एक ही परिस्थिति में कुछ लोग सहज रहते है और कुछ लोग काफी असहज हो जाते है। यहाँ पर चीजों को देखने व् समझने की नजरिया बदलना होता है। यदि कुछ बहुत बुरा हुआ है तो भी हमे ठहरकर सोचना चाहिए की इस परिस्थति को कैसे अवसर में बदला जाय। जिसका ताजा -तरीन उदाहरण है कोरोना काल। हमने देखा की परिस्थतियाँ काफी वद से वद्तर होने वाली है जिससे कोई एक देश या क्षेत्र नहीं बल्कि पूरा का पूरा विश्व प्रभावित होने वाला है। ऐसी परिस्थति में सर्व प्रथम संवेगात्मक रूप से चीजों को सहजता से स्वीकारना होता है।ततपश्चात समस्याओ के गहराई में जाकर समाधान ढूँढना होता है। जिसकी शुरुआत हमने ताली बजाकर थाली बजाकर दीपक जलाकर सम्पूर्ण भारत को एकजुट होकर आने वाली समस्याओ से जूझने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया। उसका ही परिणाम रहा की तुलनात्मक रूप से हमारा देश अन्य देशो की तुलना में ज्यादा सुरक्षित रह पाया है। इसके पीछे हमारी समृद्ध संस्कृति और जीवन दर्शन रहा है। जो सदियों से जीवन जीने की कला ही नहीं बल्कि जीवन प्रबंधन का श्रेष्ठ गुरुभी रहा है। और चुनौतियों को अवसर में बदलने की हमेशा से सिख देती रही है। अतः हम कह सकते है की जीवन जीने की कला और जीवन प्रबंधन दो अलग -अलग तत्व न होकर बल्कि कुशल जीवन प्रबंधन ही जीवन जीने की कला है। 



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