चुनाव की डुगडुगी और घोषणाओं का पिटारा
सुगिया, बुद्धिया ,अक्लू ,शकलू सब के सब हैरान परेशान और अचम्भित होकर गल्ली -मुहल्लों में अचानक लंबी सन्नाटा को चीरते हुए होने वाले कोलाहल का आनंद लेते हुए कुछ समझने -बुझने की कोशिश कर ही रहा था की सामने से आते हुए झुमन चाचा की लच्छेदार बातों ने स्पष्ट करते हुए बताना शुरू किया। सुनो -सुनो गांव -मुहल्ला वासियों चुनावी उत्स्व का माहौल आ गया है तैयार हो जाओ अपनी-अपनी माँगों की लिस्ट के साथ। पिछले 5 सालों के बाद बरसाती मेढकों की टर्टराहट कितनी मधुर संगीत लेकर आया है।
कुछ आशा और उम्मीदों के साथ बच्चे - बूढ़े नौजवानों ,महिलाएं सब के सब अपनी -अपनी सहूलियत के हिसाब से पिछले चुनाव में मागी गई मांगों का हिसाब -किताब करने में जुट गए चर्चाओं का दौर शुरू हुआ। बच्चे आँगन के नल का जल में स्नान करके खुश हो रहें हैं तो बुजुर्ग बिजली की रौशनी में अपने को निहाल मान रहे हैं। महिलाऍं घर में शौचालय और उज्ज्वला योजना से मिले गैस चूल्हों पर भविष्य की खिचड़ी पका रही है। वही छात्र -छात्राएँ स्कुल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई में मिले सुविधाओं को लेकर उत्साहित भी हो रहे है और हतोत्साहित भी इतना सब के वावजूद वेरोजगारी का दंश पलायन करने पर मजवूर जो कर रहा है।
हलाकि कभी पलायन शब्द से ही हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी को परेशानी होती थी ,परन्तु इसका सफेद सच अचानक हुए लॉकडाउन में बड़ी ही विकराल स्थिति में सामने आया। चलो जब जागो तभी सवेरा चुनावी आहट के बाद से ही घोषणाओं का सिलसिला शुरू हो गया। कई पुल -पुलिया ,स्कूल कॉलेज ,अस्पताल और आत्म -निर्भर भारत बनने की कड़ी में छोटे और मझोले किसानों व् कारोवारियों के हित में फैसले लिए जाने लगे। इस लोक -लुभावन घोषणाएं क्षणिक ही सही सुकून तो दे ही रहा है। अभी तक बड़े उद्योग -धंधों पर बात बनते -बनते बिगड़ ही जा रही है। इसकी सबसे बड़ी बाधा सुरक्षा पर अविश्वास। हलांकि इस क्षेत्र में भी बहुत सारे काम हुए हैं। पर अभी बहुत कुछ करना बाकि है।

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