हमारा रसोई हमारा अपना औषधालय
हर घर का रसोईघर वह महत्वपूर्ण स्थान होता है जहाँ घर के प्रत्येक सदस्य का न सिर्फ भूख मिटाने के लिए भोजन बनाने का काम होता है बल्कि हमारी सेहत का खजाना का राज भी छिपा रखा होता है। भोजन को स्वादिष्ट और सुपाच्चय बनाने में मसालो के योगदान को सहज ही भुलाया नहीं जा सकता।अब यहाँ रेखांकित करने योग्य बातें यह है की क्या मसाले सिर्फ भोजन को स्वादिष्ट और सुपाच्चय ही बनाने का काम करते है या उनमे हमारा सेहत का राज भी छिपा होता है।
यकीनन सदियों से चली आ रही हमारी वैदिक और आयुर्वेद के पुस्तकों में वर्णित ज्ञान से यह प्रमाणित होता है की हमारा रसोईघर का प्रत्येक खाद्य पदार्थ औषधिये गुणों से परिपूर्ण है। जिसका विवेकपूर्ण उपयोग करने से आहार औषध हो जाता है। इसकी चर्चा एक युनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स (460 ईसा पूर्व -370 ईसा पूर्व )ने भी सैद्धांतिक रूप से किया था। उन्होंने आहार चिकित्सा पर विशेष वल दिया जिसका अनुसरण आज भी बड़ी विश्वसनीयता के साथ किया जाता है।
यहाँ कुछ खाद्य वस्तुओं की चर्चा करेंगे जो हमारे दैनिक आहार का हिस्सा भी है और औषध भी। जैसे :-
- हल्दी :-इसका प्रयोग दैनिक आहार में मसाले के रूप में होते हुए भी यह एक बहुत अच्छी औषध भी है। सर्दी -खाँसी में कच्ची हल्दी को घी में भूनकर या दूध में उबालकर खाने से लाभ होता है। इसके आलावा इसमें रक्तशोधक का गुण होने से व्रण (घाव )को भी ठीक करता है। इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन और शुभ कार्यो में शगुन के तौर पर किया जाता है। सबसे बड़ी और अहम बात यह है की इसमें करक्यूमिन नाम का एक तैलीय पदार्थ होता है जो कोलेस्ट्रॉल को कम करता है।
- अदरख :-अदरख का रस और शहद सभी प्रकार के कफ रोगों में लाभदायक होता है। साथ ही भूख बढ़ाने के लिए भोजन से पूर्व सेंधानमक और आदि का प्रयोग कंठ और जिह्वा को शुद्धि कर भूख को बढ़ाता है औरभोजन में रूचि भी पैदा करता है। परन्तु इसके प्रयोग में सावधानियाँ भी रखनी पड़ती है पुराने हृदय रोग ,किडनी और ववासीर व् भगंदर के रोगियों को इसके सेवन से बचना चहिए।
- आवँला :-यह विटामिन सी का सबसे सस्ता और अच्छा स्रोत है। इसमें विटामिन सी तथा पैक्टिन बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसका प्रयोग विभिन्न रूपों में अचार ,जैम ,जैली ,मुरब्बा ,चटनी तथा सुखाकर पाउडर और स्वरस के रूप में दीर्घकाल तक किया जा सकता है। यह हमारे आहार और औषध का अनोखा सामंजस्य बनाता है।
- काली मरिच (गोलकी ):-गोलकी का प्रयोग अल्पमात्रा में भिन्न -भिन्न खाद्य पदार्थो के साथ करने से अनेक लाभ होते हैं। जैसे :--खांसी में मधु एवं घी के साथ ,पुराने जुकाम में गुड़ और दही का साथ ,यह आमाशयिक रस को वृद्धि कर पाचन क्रिया को सुधारती है विशेषकर घी के पाचन में विशेष उपयोगी है। इसकी मात्रा 1 से 2 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके आलावा इसका बहरी प्रयोग विषैले कीड़े के काटने पर सिरका के साथ पीसकर लेप लगाया जा सकता है। पक्षाघात ,गठिया आदि में तैल में मिलाकर भी लगाया जाता है।
- अजवायन :-इसमें सरसो और मिर्च का तीतापन ,चिरायता का कडुआपन एवं हींग का गुण तीनों एक साथ होता है। इसका प्रयोग हैजे में अर्क बनाकर ,अजीर्ण (अनपच )में सेंधानमक के साथ किया जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। सड़न को दूर करना इसी विशेषता के कारण इसका प्रयोग आंतरिक और बाह्य दोनों किया जाता है। यह पेट के कीड़ा (कृमिनाशक )में भी फायदा करता है। इसके आलावा यह शराबियों को मद्द के आदत छुड़ाने में बहुत ही उपयोगी है। इतने औषधीय गुणों के वावजूद इसे गर्भिणी और अपस्मार (मिर्गी )के रोगियों को देने से बचना चाहिए।
- जीरा :-यह सर्व प्रसिद्ध मसाले की वस्तु है इसका प्रयोग कच्चे बघार के लिए ,भूनकर पीसकर तथा स्वरस या काढ़े के रूप में किया जाता है। यह दाह शांति ,भूख बढ़ाने वाला तथा ज्वर (बुखार )की स्थिति में पाचन सुधारकर भूख बढाती है। इससे पेशाव भी साफ होता है। दुग्धस्रावी माताओं को जीरा और सौफ का पाउडर या काढ़े के रूप में देने से दूध की वृद्धि होती है।
- हींग :-हींग को किचनकिंग भी कहा जाता है। इसका प्रयोग अधिकांश व्यंजनों में किया जाता है। यह विशेषकर पाचनतंत्र को ठीक रखता है यहॉँ तक की इसे पानी में घोलकर नाभि पर लेप लगाने मात्र से पाचनक्रिया को ठीक करता है।
- अनार :-एक अनार सौ बीमार वाली कहावत तो हम सब ने सुना है। और यह अपने बहुगुणों से चरितार्थ भी करता है। रक्त को शुद्ध करना ,बढ़ाना तथा सहज सुपाच्य ,कृमिनाशक ,अतिसार आदि अनेक बीमारियों को ठीक करके शक्ति प्रदान करना इसका विशेष गुण है।
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