भारतीय कामकाजी महिलाओं का ड्रेस कोड
भारतीय महिलाओं का ख्याल मन में आते ही एक ऐसी छवि अंतर्मन के दृष्टिपटल पर उभर आता है ,चाहे वह कवि हो ,ड्रेस डिजाइनर हो ,सामाजिक कार्यकर्ता हो ,या फिर विदेश यात्रा पर भरतीय प्रतिनिधित्त्व की ही बात क्यों न हो।
जिस देश की राष्ट्रीय पोशाक साडी हो वहाँ के धारणकर्ती के वारे में भी तो उसी के वैविध्यपूर्ण रूपों का ही ख्याल आएगा। एक सुंदर सजीली मासूम सी साड़ियों में लिपटी हुई ,सिमटी सी जैसे बदली की रात में चाँद का लुक्का -छिपी हो, ये तो हुई नई नवेली दुल्हन का रूप। इससे आगे आते है तो माँ का रूप भी कुछ इस तरह का ही जो साड़ियों में लिपटी तो हो पर बड़ा सा आँचल जिसमे ममता का सागर उमड़ता -घुमड़ता और दृढ़ता व् साहस जो अपने बच्चों और मान मर्यादा की रक्षा के लिए सतत तैयार हो। इससे आगे दादी माँ का वह कुछ विचित्र सी अपनी लडखड़ाती हाथों से संभालती आचंल ऐसा लगता है जैसे अपनी संस्कृति को बचाने की संघर्ष कर रही हो।
ये तब की बात थी जब हम घर के चारदीवारी के अंदर थे ,घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश ही हमारी पूरी जिम्मेदारी थी। जब आज की भौतिकवादी युग में हमारी जिम्मेदारियों का क्षेत्र विस्तार हुआ है तो इसमें बदलाव भी स्वभाविक है।
भारतीय महिलाओ के साथ जब कामकाजी शब्द जुड़ती है तो इसका क्षेत्र विस्तार खेत की पगडंडियों से शुरू होकर गाँव की कच्ची गलियों से होते हुए शहर की पक्की सडको को पार करते हुए ऑफिस से लेकर समुद्र की गहराइयों और आकाश की ऊचाइयों तक विस्तृत होती है। ऐसे में किसी एक ड्रेस या ड्रेस कोड की बात जरा बेईमानी सी लगती है। इसका मतलब ये भी नहीं होनी चहिए की हम अपनी संस्कृति को बिलकुल ही नकार दे ,जो जी में आए पहन ले।
यहाँ कहने का तात्यर्य यह है की आज के संघर्षमय जीवन में परिधान संबंधी शिष्टाचार में सुधार की गुंजाइस हो न की सख्त और निरंकुश आदेश। परिधान ऐसा हो जिससे कार्यक्षमता प्रभावित न हो ,कार्यानुकूल वस्त्र से कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जब कार्यक्षेत्र बदला है तो परम्पराएँ भी बदलेगी। बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में यूरोपीय देशो (इंग्लैंड ,फ़्रांस ,अमेरिका )में भी महिलाओं के वस्त्र भडकीले और आरामतलवी धनी वर्ग के द्योतक होते थे। परन्तु फ़्रांस की क्रांति के बाद कपड़ो की सादगी पर अधिक बल दिया जाने लगा ,जहां वस्त्रो में आकर्षक लुक की प्रधानता होती थी, वहाँ सुविधा और आराम को प्राथमिकता दी जाने लगी। इसबदलाव से हमभी अछूते नहीं रहे। वर्तमान में परिधान संबंधी मान्यताएँ में काफी बदलाव आया है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव आम लोगों पर भी पड़ा है।इस बदलाव को संतुलित संचालन हेतु कार्यानुरूप ड्रेस कोड को नकारा नहीं जा सकता ,बल्कि सर्वसम्मति से ही इसकी परिसीमन की जानी चाहिए। यहाँ पर कार्य विशेष के अनुरूप वस्त्रो के प्रकार का उल्लेख उचित होगा।
यहाँ कहने का तात्यर्य यह है की आज के संघर्षमय जीवन में परिधान संबंधी शिष्टाचार में सुधार की गुंजाइस हो न की सख्त और निरंकुश आदेश। परिधान ऐसा हो जिससे कार्यक्षमता प्रभावित न हो ,कार्यानुकूल वस्त्र से कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जब कार्यक्षेत्र बदला है तो परम्पराएँ भी बदलेगी। बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में यूरोपीय देशो (इंग्लैंड ,फ़्रांस ,अमेरिका )में भी महिलाओं के वस्त्र भडकीले और आरामतलवी धनी वर्ग के द्योतक होते थे। परन्तु फ़्रांस की क्रांति के बाद कपड़ो की सादगी पर अधिक बल दिया जाने लगा ,जहां वस्त्रो में आकर्षक लुक की प्रधानता होती थी, वहाँ सुविधा और आराम को प्राथमिकता दी जाने लगी। इसबदलाव से हमभी अछूते नहीं रहे। वर्तमान में परिधान संबंधी मान्यताएँ में काफी बदलाव आया है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव आम लोगों पर भी पड़ा है।इस बदलाव को संतुलित संचालन हेतु कार्यानुरूप ड्रेस कोड को नकारा नहीं जा सकता ,बल्कि सर्वसम्मति से ही इसकी परिसीमन की जानी चाहिए। यहाँ पर कार्य विशेष के अनुरूप वस्त्रो के प्रकार का उल्लेख उचित होगा।
- ऑफिस में काम करने वाले को शरीर के उद्भासन और प्रदर्शन करने बाले वस्त्रो से परहेज करना चाहिए। अपनी सुविधा अनुसार साडी या सलवार कमीज पहना जा सकता है ,परन्तु स्लीवलेस,वैकलेस, गहरे गले का प्रयोग कदापि उचित नहीं होगा।
- यदि आप शिक्षिका है आपका पद गरिमापूर्ण और गंभीर व्यक्तित्व का है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश के कर्णधार पर पड़ता है अतः आपका परिधान सह अलंकरण से परे सादा व् सौम्य होनी चाहिए जो स्थानीय संस्कृति से मिलती -जुलती हो ताकि आप बच्चों के बीच अजनबी न लगें बल्कि सहज व् अपनापन का भाव प्रदर्शित हो।
- सामाजिक कार्यकर्ता को भी शिक्षिकाके सदृश्य ही परिधान धारण करने चाहिए क्योंकी उनका भी कुछ इसी तरह का काम है। उनका काम होता है निम्न जीवन स्तर कोऊपर उठाने हेतु सहज व् सरलता से विकास की गतिविधियों को उन तक पहुंचना जिसकी सफलता आपकी परिधान से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुइ होती है।
- पुलिस अफसर तीनो सेनाओ (जल, थल, वायु )के किसी भी क्षेत्र में हो तो यकीनन आपका वस्त्र चुस्त -दुरुस्त होनी ही चाहिए जो चुनौतीपूर्ण कार्य के अनुरूप हो।
- मॉडलिंग ,एयर होस्टेस, सेल्समैन जैसे कार्यक्षेत्रों के लिए थोड़े आकर्षक लुक और प्रभावशाली पोशाकें होनी चाहिए साथ में थोड़ी बहुत सह अलंकरण भी जो आपके कार्यक्षेत्र का माँग भी है।
- यदि आप खिलाड़ी है तो यकीननआपका वस्त्र चुस्त व् शरीरकारिक होंगे ताकि अंग संचालन में बाधक न हो और बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
संसार के सभी भागों में परिधान संबंधी मान्यताये एक जैसी नहीं है। परन्तु वैश्वीकरण के इस दौर में ये दूरिया जरूरत के मुताबिक बदली है अब जरूरत है हमारी मॉँग -पूर्ति और परम्पराओ में सामंजस्य बिठाकर कामयाबी की उड़ान भरने की।


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