अमृतरस की अमृतधारा
22/01/2024 दिन के 12 बजकर 29 मिनट से 80 सेकेंड तक का पुण्यतम वेला का वो अविस्मरणीय पल का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से साक्षी बनने का जो सुअवसर विश्व समुदाय को मिला है। उस भक्तिमय अविरल धारा में लोक जनसैलाब बहता ही चला जा रहा है। ऐसा हो भी क्यों न भारत की सनातनी संस्कृति के प्राण कहे जाने वाले वात्सल्य रस से लबरेज रामलला का बाल स्वरूप का भव्य राम मन्दिर में पुनर्स्थापित होना दिवास्वप्न कहे जाने वाले स्वप्न का साकार होना जो है। मानव में प्रकृत्ति प्रदत अंतर्निहित शक्तियाँ अधिकांशतः सुसुप्त अवस्था में होती है। इन्हीं शक्तियों को जगाये रखने के लिए भारत के पवित्र भूमि पर समय-समय पर दिव्य शक्तियों का मानव स्वरूप में अवतरित...