नई चुनौतियाँ।
नई चुनौतियाँ।
वेरोजगारी और बढ़ते रोजगार के दायरे के बीच में कसमसाती जीवन के अनछुए पहलू। अब इसे दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था कहूँ या कलुषित मानसिकता। मन की मनचाहा या योग्यता के अनुरूप काम मिलने या करने से तन और मन दोनों पुलकित होते है। पर इसका प्रतिशत नगण्य है। कभी कभी तो मनचाहा काम की तलाश में इतना देर हो जाता है की हमे पता भी नहीं चलता और हम वेरोजगारी के दवाब को झेलने में असमर्थ हो जाते है। इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे जो काम करने में हमे अच्छा लगता है या जो करना चाहते है वो हमारे परिवार,समाज,हैसियत, जगह ,लिंग ,मनगढ़ंत मन्यताओ के विपरीत होता है। ऐसे में जब परिवार के सदस्यों का निस्वार्थ साथ मिलता है तो मंजिल पाना जीतना आसान होता है। उतना ही मुश्किल होता है पारिवारिक और सामाजिक दवाब को झेलना। इस अनचाहे दवाब को झेलकर हम मानसिक संतुलन खो बैठते है हमारा मंजिल बहुत पीछे छूट जाता है। इसके परिणामस्वरूप हम आये दिन किसी न किसी शैक्षणिक संस्थानों से युवाओं का आत्महत्या जैसे जघन्य कृत्यों के साक्षी बनते रहते है।
हालाकिं इस दिशा में कई सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओ के द्वारा सुधारात्मक कदम उठाये जाते रहे हैं पर वो पर्याप्त नहीं है। इस दिशा में यथार्थ परक पहलुओं से अधीक से अधिक युवाओं को जोड़ना ही होगा। शिक्षा व्यवस्थ को रोजगारपरक बनाने पर जोर देना ही होगा। नई शिक्षा निति में इसका विशेष ध्यान रखा गया है। पर इसका सफल संचालन ही इसके गुणबत्ता का आधार होगा।
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