करुणा के केंद्र में परिधि के 14 रत्न तिल्लियाँ।
करुणा के केंद्र में परिधि के 14 रत्न तिल्लियाँ।
सौजन्य :मुरारी बापू के कथा सागर का अमृत कलश से।
जीवन के व्याकरण में अपने लिए सत्य,दूसरों के लिए प्रेम और सबके लिए करुणापूर्ण व्यवहार ही साधना है।
- करुणा का पहला रत्न है सुख-समस्त प्राणियों के प्रति करुणापूर्ण व्यवहार से ही आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है।
- दूसरा रत्न है निष्कामता -जो सामर्थ होते हुए भी स्वविवेक से बुराइयों से बचना सिखाता है।
- तीसरा रत्न है अतिप्रियता -करुणा के आश्रय से ही व्यक्ति समाज में अतिप्रियता और पौरुषत्व को प्राप्त करता है।
- चौथा रत्न है निरंहकारिता -करुणा से ही व्यक्ति अहंकार से मुक्त रहकर सरल -सहज रह सकता है।
- पांचवा रत्न है सुजनता -हर वस्तु को ठीक से जानने वाला।
- छठा रत्न है शालीनता -जब व्यक्ति में करुणा होती है तो शब्दों में शालीनता आ ही जाती है।
- सातवां रत्न है दोषमुक्त -करुणा से व्यक्ति दोषमुक्त हो जाता है।
- आठवां रत्न हैकोमलता -करुणा से व्यक्ति का स्वभाव कोमल हो जाता है।
- नौवां रत्न है क्रोध मुक्त -करुणा से क्रोध पर भी काबू पाया जा सकता है।
- दसवां रत्न है धर्म की धुरी -करुणा के अनुभव से ही धर्म पालन का मार्ग प्रसस्त होता है अन्यथा धर्म हिंसा का भी रूप ले लेता है।
- ग्यारवां रत्न है सुंदरता -करुणा के आश्रय में ही सुंदरता पनपती है। कठोरता और आक्रामकता व्यक्ति को सुंदर नहीं रहने देती है।
- बारहवां रत्न है परपीड़ा को समझना -करुणा से ही व्यक्ति दूसरे के मन का पीड़ा समझ सकता है।
- तेरहवां रत्न है परम् विवेक -विवेक सतसंग से मिलती है पर परम् विवेक करुणा से ही मिलती है।
- चौदवां रत्न है निर्मल मन -निर्मल मन और निर्मल भक्ति से परमात्मा को भी प्राप्त किया जा सकता है।
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