विकसित भारत के लक्ष्य प्राप्ति में शिक्षा, शिक्षक और पाठ्यक्रम के केन्द्र में सतत विकास I
अब उन पाठ्यक्रमों को विद्यार्थियों तक सरल, सुगम्य और रोचक तरीके से प्रेषित करना शिक्षकों के कुशलता पर काफी निर्भर करता है I इसके लिए बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी समय-समय पर उन्नत शिक्षण की जरूरत होती है I
शिक्षण कार्य का मुख्य उद्देश्य ही होता है ज्ञान और व्यवहार में परिवर्तन लाना I जिसमें बाह्य और आंतरिक अभिप्रेरणा का विशेष महत्व होता है I छोटे बच्चों के सफल शिक्षण में बाह्य अभिप्रेरणा अधिक प्रभावी होता है जबकि किशोर बच्चों में बाह्य और आंतरिक दोनों अभिप्रेरणा कार्य करती है I आंतरिक अभिप्रेरणा व्यवहार परिवर्तन का स्थाई स्वरूप होता है I जहाँ बाह्य प्रेरणा के रूप मे चित्र, कहानियाँ, गीत-संगीत, चुटकुले, लोकोक्ति, शैक्षणिक उपकरण, डिजिटल डिवाइस का स्थान है वही आंतरिक प्रेरणा में प्रशंसा, पुरस्कार, ग्रेड, आदर्श व्यक्तित्व के जीवनी आदि का है I
छात्र शिक्षक का माधुर्य पूर्ण समबन्ध छात्रों को कल्पनाशीलता, रचनात्मकता, उत्सुकता, जिज्ञासा को
स्वतंत्र विचार से रखने के लिये प्रेरित करता है I नजरें मिलाकर बात करने से आत्मबल समृद्ध होता है I प्रगतिशील शिक्षण के सम्प्रेषण की प्रक्रिया में विषय से सम्बन्धित घटनाक्रम को क्षेत्रीय भाषा मे उदाहरण देकर समझाना, हो सके तो उसे करके बताना और खुद से करने को प्रेरित करना जैसी क्रियायें जितनी सहज होगी बच्चों में रचनात्मकता और क्रियाशीलता उतनी ही मजबूत होगी I
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