लोक आस्था का पर्व मेष संक्रांति ( सतुआन )14 अप्रैल





वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आम जन तक सरल व सहज रूप से  पहुँचाने तथा उसे सरलता से अंगीकार करने मे भारतीय पर्व त्योहारों का विशेष भूमिका रही  है।प्राण और शरीर का एक साथ सक्रियता ही जीवन है। जिसके केंद्र मे  ऊर्जा का स्रोत सूर्य है । जहाँ से प्रकृति जगत के समस्त जीव जन्तु समस्त शक्तियाँ प्राप्त करती है। इसी से दिन, हपते, महीने और मौसम मे परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसी सूर्य की गति को परम्परा से जोड़कर हम पर्व त्योहार मनाते है। जैसे -सूर्य षष्ठी (छठ ), मकर संक्रांति, लोहड़ी, मेष संक्रांति, वैसाखी ,रोंगाली बिहू जिसका सीधा संबंध बदलते मौसम के आहार -विहार से है। 

मेष संक्रांति (14 अप्रैल ) से सूर्य की गर्मी /तपिश क्रमशः बढ़ती जाती है जिसके प्रभाव से समस्त जीव जगत का रस सूखने लगता है। लू चलने लगती है। लू से बचने के लिए ही जौ चने की सतू और गुड़ जो की प्रकृति से शीतल होता है। विशेषकर सतू का घोल जिसे नमक,प्याज और आम, पुदीना की चटनी के साथ प्रयोग किया जाता है। जहाँ सतू लू से रक्षा करता है वहीं प्याज मे उपस्थित गंधक पाचन को सही रखता है। पुदीना से गैस संबंधित बीमारियाँ दूर रहती है। इनसे अतिसार व डायरिया से भी बचाव होता है। सतू खाने या पीने से स्वभाविक रूप से पानी की जरूरत अधिक महसूस होती है जो हमे डिहाइड्रेशन से भी स्वभाविक रूप से बचाती है।इसे देश के अलग -अलग कोने मे अलग- अलग नाम से मनाते है। जैसे -मेष संक्रांति, सतुआने, वैसाखी, रोंगाली बिहू पर उदेश्य सबका एक ही होता है बदलते मौसम के अनुकूल ख़ान -पान जिसमे वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाहित हो। 


:----------------------: 

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

टाइम वुमन ऑफ द ईयर 2025

नव वर्ष 2025 सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वागतम !

राखी से रक्षा