किराये का घर


 बुनियादी जरूरतों का तीसरा स्तम्भ है घर। पैतृक घर और किराये का घर बड़े -बड़े विशेषज्ञों ने घर और मकान के अंतर् को बड़ी ही खुबसुरती से परिभाषित किया है। चार दीवारों के सहारे खड़े छत को मकान और उसमे सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहने वाले परिवारों के मिलन से मकान को घर बना दिया। मकान को घर बनाने के लिए तो पहले मकान का भी होना उतना ही जरूरी है जितना घर को घर बनाने के लिए परिवार का। 

जब परिवार की बुनियाद दाम्पत्य जीवन की शुरुआत होती है तो चाहे -अनचाहे रोजी -रोजगार के लिए एक नई दुनिया वसाने की शुरुआत होती है। जहां नव -दम्पत्ति (विशेषकर मध्यम और निम्न वर्ग के )दोनों अपने -अपने पैतृक आवास से दूर एक नया घर के निर्माण में लग जाता है। जिसकी अधिकांश शुरुआत किराये के मकान से होता है। वहाँ की खट्टी -मिठ्ठी अनुभूतियों से एक अपना घर बनाने की जीजीवषा का जन्म होता है। इनमे कई घर तो बनते हैं और कई जिम्मेदारियों के बोझ तले दम तोड़ देते हैं। इसी दर्द के बोझ को कम करने में प्रधान मंत्री आवास योजना मरहम का काम किया जो की एक निश्चित आय वर्ग तक ही सीमित है। जब एक मध्यम वर्गीय प्रोढ़ा किराये का घर ढूंढता है तो उसके आत्म सम्मान को ठेस पहुँचता है। तब जाकर ये एहसास होता है की कच्चा -पक्का जैसा भी हो विना मकान का घर नहीं बन सकता है। तब तक बहुत देर हो चुका होता है। अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत वाली कहावत चरितार्थ होता नजर आने लगता है। 

यूँ ही पेट में अन्न तन पर वस्त्र और सर पर छत को बुनियादी आवश्यकता नहीं कही गई है। इसके पीछे व्यक्ति का गहरा अनुभव रहा होगा। 


:---------------------------:











टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

टाइम वुमन ऑफ द ईयर 2025

नव वर्ष 2025 सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वागतम !

राखी से रक्षा