जल / Water
जल ही जीवन है। हमारे शरीर का एक अत्यावश्यक पोषक तत्व है जल। जीवित प्राणियों में ऑक्सीजन के बाद जल का ही महत्वपूर्ण स्थान है। जल का रासायनिक संरचना में 2 अणु हाइड्रोजन के तथा एक अणु ऑक्सीजन के होते हैं।(H2O) हमारे शरीर का लगभग 65 %भाग जल का ही बना होता है। एक 55 किलो वजन वाले व्यक्ति में जल का वजन करीब 36 किलो रहता है। कुल जल का 2 /3 भाग (24 kg )अंतः कोशिकाओं में तथा 1 /3 भाग (1 2 kg )बाह्य कोशिकाओं में रहता है। हमारे शरीर को जल 3 स्रोतों से प्राप्त होता है।
- पेय पदार्थ --सादा जल ,नींवू पानी ,चाय,कॉफ़ी , शर्वत ,सूप , दूध और अन्य पेय पदार्थ।
- भोज्य पदार्थ --अनाज ,सभी सरस् फल और हरी साग - सब्जियाँ में जल की मात्रा अलग -अलग होती है। जैसे -सलाद 95 %,तरबूजा 93 %,सेव 85 %,आलू 80 अधिकांश सब्जियाँ (लौकी ,पालक ,टमाटर ,निनुआ ,)में लगभग 70 %,मांस 55 %,मक्खन 16 %और अनाज 8 -20 % तक जल की मात्रा होती है।
- ऑक्सीकरण --हमारे शरीर में भोज्य पदार्थों के पोषक तत्वों की ऑक्सीकरण की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है इस प्रक्रिया के द्वारा जो जल की प्राप्ति होती है उसे चयापचय जल कहा जाता है। तत पश्चात पोषक तत्वों को कोषों तक पहुँचाने और अवशेषों को निष्कासित करने में जल का महत्वपूर्ण भमिका होती है।
- त्वचा के द्वारा
- फेफड़ा के द्वारा
- मूत्र के द्वारा
- मल के द्वारा
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जल ग्रहण |
समशीतोष्ण जलवायु (Ml ) |
उष्ण जलवायु (Ml ) |
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पेय पदार्थ |
1500 |
2000 -5000 |
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भोज्य पदार्थ |
1000 |
1000 -2000 |
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ऑक्सीकरण |
300 |
300 - 300 |
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कुल |
2800 |
3300 -7300 |
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जल निष्कासन |
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मूत्र |
1500 |
1000 -1500 |
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त्वचा |
800 |
1800 -5200 |
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फेफड़ा |
400 |
400 - 400 |
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मल |
100 |
100 - 100 |
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कुल |
2800 |
3300 -7300 |
जल संतुलन -
- स्थिर जल संतुलन --जब शरीर में ग्रहण किये गए जल की मात्रा तथा शरीर से विसर्जित किये गये जल की मात्रा समान होती है तो वह स्थिर जल संतुलन कहलाता है।
- ऋणात्मक जल संतुलन --जब शरीर में जल ग्रहण की तुलना में विसर्जन अधिक होता है जैसे -अधिक पसीना आना ,वमन ,दस्त की स्थिति में तो यह स्थिति ऋणात्मक जल संतुलन कहलाती है। कोषों का निर्जलीकरण शुरू हो जाता है यदि किसी व्यक्ति की जल हानि की मात्रा 5 से 10 लीटर तक पहुँच जाय तो इसे गंभीर रूप से अस्वस्थ्य समझना चाहिए और यदि इसकी मात्रा 15 लीटर तक पहुँच जाता है तो मृत्यु तक होने की संभावना हो जाती है। हर सम्भव ऐसी स्थीति आने से बचना चाहिए।
- धनात्मक संतुलन --कभी -कभी शरीर जितना जल ग्रहण करता है उतना विसर्जित नहीं कर पाता है तो यह स्थिति जल का धनात्मक संतुलन कहलाता है। इसका प्रभाव गुर्दे पर 15 से 30 मिनट के अंदर ही हो जाता है। आवश्यकता से अधिक जल गुर्दों द्वारा 3 घंटे के अंदर विसर्जित कर दिया जाता है। यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो यह अतिरिक्त जल ऊतकों में कोशिकाओं के इर्द -गिर्द भर जाता है इस स्थिति को एडिमा रोग कहा जाता है।
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