सपनें ...


आज मैं एक आजाद पंक्षी की तरह खुले आसमान में अविरल गति से दिलों दिमाग को झंकृत करने वाली तरंगों के साथ अठखेलियाँ करती भविष्य के ताने -वाने बुन रही हूँ। वचपन से ही अपने दोस्तों और बड़े -बुजुर्गों को कई ड्रिमों के बारे में बातें करते देखा और सुना है। ड्रीम गर्ल ,ड्रीम प्रिंस ,ड्रीम प्रिंसेस, ड्रीम जॉव ,ड्रीम हाउस बगैर -बगैर। ये कौन सी बला का नाम है ड्रीम। दिलों दिमाग को सुकून देने वाली चाहतों का पूरा होना ,डायरी के पन्नों से निकलकर जिंदगी की हकीकत बनने तक की यात्रा या लोरियों के थपकियों में अधखुली आँखों से देखे गए सपनें। 
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए. पी. जे. अब्दूल कलाम का वो कथन 
"सपने वो नहीं जो सोते हुए देखे जाऐ बल्कि सपने वो हैं जो हमें सोने ही न दे। "
मन की गति से भी तेज चलने वाली तरंगें हमें एक ही पल में तीनों लोको (आकाश ,पाताल और भूलोक )का सैर करा देती है। उस यात्रा से चुन -चुनकर लाई गई वेशकीमती मोतियों से बनते इमारत में जब जागते हुए देखे गए सपनों का पंख लगता है तो दुनिया को अचम्भित कर देने वाले रौशनी का आगाज होता है। विज्ञान की खोज इन्हीं सिद्धन्तों पर आधारित होता है। हमेशा से कुछ नया करने ,होने या अनायास ही हो जाने का अनुभव हमें अपने आस -पास नित्य -प्रतिदिन देखने को मिलता है। इन्हीं ख्वाबों में हमारे जीवन के समस्याओ का समाधान भी छिपा होता है। जब हमारा शरीर सो रहा होता है तब भी मन की तरंगें शांत जलाशयों में तरंगित होता रहता है। इसके वारे में कई विचारकों ,दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने प्रतीकात्मक परिणामों का संग्रह को पुस्तकों ,उपन्यासों ,पत्रिकाओं में कविताओं और कहानियो के रूप में बड़ी ही खूबसरती से पिरोया है। उसका भी अपना एक दर्शन है जिसे जाने -अनजाने हम सब मानते हैं। 
जैसा की हम सब जानते हैं परिवर्तन जीवन का अभिन्न अंग है। आज हम पंचतंत्र की कहानियों ,कॉमिक्स ,दादी नानी से सुनी गई परियों की कहानियों से बहुत आगे निकल गए है ऐसा सोचने लगें है। डिजिटल दुनिया का आगाज चुटकियों में समाधान खोजने  का एक माध्यम जरूर बन गया है। जीवन को सरल व् सहज भी बना दिया है। पर सोचने की क्षमता वाली दिमाग वही मानव मन ही है जिसमे संवेदनाओं की तरंगें हिलोरें मारते रहते है ,जो हमे सपनों की दुनिया का सैर कराती रही है। परियों की कहानियों ,कवियों व् लेखकों की कल्पनाओं में काल्पनिक पात्रों के माध्यम से जब बुने गए ख्वाबों का हकीकत से सामना होता है तो कई सपने साकार भी होते हैं और कई टूटते और विखरते भी हैं। टूटे -विखरे सपनों को जब हम फिर से एकत्रित कर जोड़ने का प्रयास करते है फिर से कुछ बनते और बिगड़ते भी हैं इस बनने और बिगड़ने की सतत प्रक्रिया ही व्यक्ति और व्यक्तित्व निर्माण का आधार होता है। सोचने और करने के बीच जो हल्की और भारी दीवारें होती है वही हमारे भविष्य निर्माण की नींव भी होती है। यहाँ कुछ शख्सियतों की चर्चा करना प्रसांगिक होगा। 
जब पहली बार मानव चाँद की यात्रा से सफलता पूर्वक लौटा तो वर्षों से देखी और सोची गई चाँद की कल्पनाओं में परिवर्तन आना स्वभाविक हो गया। वहाँ के सतहों पर पाए गए तत्वों अध्ययन का एक विषय हो सकता है पर जब कल्पना चावला अपनी अनुभव का वर्णन प्रिंट मिडिया ,इलेक्ट्रॉनिक मिडिया के माध्यम से कर रहीं थी तो बच्चे ,बूढ़े ,युवाओं ,पढ़े लिखे लोगों से लेकर गाँव परिवार की महिलाएँ उतनी ही उत्सुकता से उन्हें सुन रहे थे जितनी हम कहानियों की कल्पनाओं में सुनते आ रहे थे। आज हमारा विज्ञान एक -एक करके कल्पनाओं की परतों को सुलझाने में क्रमिक प्रगति कर रहा है। 
अरुणिमा सिन्हा की बहादुरी के किस्से तो हम सबने सुनी है और कइयों की प्रेरणा भी रहीं हैं। जब दुर्घटना में अपना एक पैर खो चुकी थीं उनका शरीर भी शिथिल पड़ रहा था डॉक्टरों का नकारात्मक आवाजें उनकी कानों तक पहुँच रही थी तब भी कुछ बोल नहीं पा रही थी पर मन की तरंगें उस सबसे ऊचें शिखर पर परचम लहरा रही थी जिसकी उन्होंने सपने देखीं थीं। उस सन्नाटे के बीच में जो सपने बुने जा रहे थे वही है Real Behind the selince जो हमारा थीम को भी चरितार्थ करता है। जब धीरे -धीरे स्थितियां सुधरने लगी तो उन्होंने अपना विचार रखीं तो विस्मयादि बोधक भावों से सबों ने उनके हौसलों को अफजाई किया जिसका परिणाम हम सबके सामने है। 
जब हमारा देश गुलाम था हमारे वीर जवानों ,अनुभवी विचारकों और विद्वानों ने भी सम्मलित रूप से आजादी के सपने संजोये फिर से वही खुली आँखों के सपने पूरे भारत को  उत्साहित और तरंगित कर दिया हम सबने एक ही दिशा में सोचना शुरू किया और सिर्फ और सिर्फ एक ही सपने देखने लगे इतने सारे सकारात्मक तरंगें जब एक ही दिशा में तरंगित होने लगी तो ऊर्जा का अपार संचार एक होकर सिर्फ आजादी आजादी और आजादी लेकर ही शांत हुआ। सपनों की तरंगें दोनों दिशाओं में काम करती है जैसे की पिंड से लेकर ब्रह्माण्ड में विखरी पड़ी है सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा। जब नकारात्मक ऊर्जा का संयोग सपनों की तरंगों से होती है तो चारों तरफ विनाश ही विनाश होता है तब जलियावाला बाग कांड ,आंतकी हमले से लेकर घर परिवार और समाज में प्रताड़ना के परिणाम स्वरूप संग्राम का आगाज होता है।सपने ये नही होने चाहिए। सपने वो होने चाहिए जो हमे सफलता की ऊचाइयों तक ले जाने में सहयोग करे हार को जीत में बदलने का अदम्य साहस भर दे हममे।
 जैसा की जब डॉ. कलाम की एरोनॉटिकल इंजीनियर बनने के सपने टूटे तो टूटते -बिखरते सपनों को समेटकर जब आगे बढ़ने की कोशिश की तो जागती आँखों से देखी गई सपनों ने एक नहीं कई मिसाइलों का सफल परीक्षण उन्हें मिसाइल मैन बना दिया। योग गुरु बाबा रामदेव जिन्होनें एक स्वस्थ्य और समृद्ध भारत का सपना देखा जिसे बिना किसी पक्षपात के सभी धर्मों को समान रूप से समाहित करके विश्व पटल पर योग से स्वास्थ्य की परिकल्पना को साकार किया। हमारे आस-पास ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं जिन्होंने सपनों को हकीकत में बदला है। 
बस सपने यही हैं यही हैं और यही हैं। 




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