समाजिक समरसता का अद्भूत नजारा छठ महापर्व

समाजिक समरसता का अद्भूत नजारा 

छठ महापर्व 






अपने बिहार में विशेष रूप से मनाया जाने वाला छठ महापर्व एक विशिष्ट स्थान रखता है। प्रत्येक प्राणी के जीवन में सूर्य की अहमियत को दर्शाता सूर्य उपासना की महानता इस बात से स्प्ष्ट परिलक्षित होती है की इसमें स्व -विवेक से बिना किसी दवाब या भेद -भाव के समाज के प्रत्येक वर्ग की निःस्वार्थ भाव से सहभागिता होती है। 

गंगा तट के नाविकों से लेकर सफाई कर्मचारी ,सब्जीवाले ,फल -फूल वाले ,दूधवाले ,कुम्भकार ,सूप बनाने वाले कारीगर से लेकर घाटों के व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने वाले अधिकरियों तक के ईमानदारी का चर्मोंतकर्ष का दिव्य दर्शन होता है। सूर्योपासक (छठव्रती )को सूर्य के प्रतिनिधित्व के रूप में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। चाहे वह किसी भी वर्ग से हों स्त्री हो या पुरुष उन चार दिनों जिसमे कठिन नियमों को सहजता से पालन करने वाले प्रत्येक व्रती को भगबान भास्कर का प्रतिरूप के रूप में पूजा जाता है। इसका अद्भूत नजारा छठ घाटों पर देखने को मिलता है। 

इसकी एक और विशिष्ट परम्परा यह है की जहाँ सम्पूर्ण विश्व उगते सूर्य को नमस्कार करता है वही हम अस्त और उदय होते दोनों सूर्य को उपवास करके जल बीच खड़े होकर अपने परिवार ,समाज और राष्ट्र की सुख -समृद्धि की कामना करते हुए अर्घ प्रदान करते हैं। सामाजिक समरसता का अद्भूत नजारा कहीं और दुर्लभ है। 

आओ जाने इस व्रत के बारे में क्या -क्या विधि -व्यवस्था है। चार दिवसीय इस महापर्व की शुरुआत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से  शुरू होकर सप्तमी को समाप्त हो जाता है। 

  1. चतुर्थी तिथि को व्रती गंगा स्नान कर विशेषरूप से अरवा चावल ,चने की दाल ,कद्दू की सब्जी ,ओल की सब्जी और साथ ही यथा सम्भव मौसमी सब्जियों को पकाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस दिन को नहाय -खाय के नाम से जानते हैं। 
  2. पंचमी तिथि को नव हंडिका (लोहंडा)या खरना के नाम से जानते हैं। इसमें मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी के वर्त्तन या संशोधित रूप में पीतल के वर्त्तन में अरवा चावल ,चने की दाल जिसमे सिर्फ सेंधा नमक का प्रयोग करते हुए ,रोटी, पिठ्ठा ,रसिया या ईख का गुड़ का प्रयोग होता है। व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और संध्या वेला में नव वस्त्र और श्रृंगार धारण करके सूर्य की उपासना ,हवन करने के बाद प्रसाद के रूप में उन भोजन को ग्रहण करते हैं। यहीं से 36 घंटे का उपवास प्रारम्भ होता है। 
  3. षष्टी तिथि को पूरे साफ -सफाई और विधि -विधान से गेहूँ के आटे का ठेकुआ ,चावल के आटे का लड़ुआ ,साथ ही नारियल ,केले और सारे मौसमी फल को सादे सूप  या पीतल के सूप  में भरकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ दिया जाता है। 
  4. सप्तमी तिथि को भी षष्ठी की प्रक्रिया को दुहराते हुए उगते हुए सूर्य का आह्वान करते हुए सूर्योदय से पूर्व ही व्रती जल बीच खड़े होकर प्रार्थना के साथ सूर्योदय होने का इंतजार करते हैं। सूर्य की पहली किरण को ऊर्जा स्रोत का साक्षी मानकर अर्घ दिया जाता है। इस तरह सपरिवार कुशल मंगल की कामना के साथ ही छठ महापर्व का समापन इस वादे  के साथ करते हैं  की अगले वर्ष हम सब इसी उत्साह के साथ इसे मनायेगें। 

जय छठी मायी की 
जय हो जय हो 
जय हो। 

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