लॉक अनलॉक

जब 24 /03 /2020 की रात से अचानक सम्पूर्ण भारत लॉकडाउन हो गया तो देश का बच्चा -बच्चा लॉकडाउन को जानने और समझने की उत्सुकता से विकसित संचार केमाध्यमों(Mobile, facebook,whatsApp,twitter)का अपने -अपने तरीके से उपयोग करने लगे। परिणामस्वरूप डिजिटल दुनिया में बाढ़ सी आ गई।
अघोषित लॉकडाउन जैसा रहने वाला गावँ की गलियों में हलचल बढ़ सी गई। अभी -अभी रंगों का पर्व होली अपने पूरे उत्साह पर थी ,छुट्टियों में परदेशी वावुओं से घर- आँगन गुलजार हो रहा था और अपने -अपने काम पर लौटने की तैयारियाँ जोरों पर थी। अमूमन मार्च से जुलाई तक शुभ मुहूर्त में शादी,मुंडन ,गृह -प्रवेश जैसे कई समारोहों का आयोजन होता रहा है सो अचानक हुए लॉकडाउन में शहनाईओ और उत्सवी माहौल की जगह सन्नाटा ने ले लिया। कुछ दिनों तक आज्ञाकारी बच्चा की तरह हम सबने जल्द ही स्थिति ठीक होने की उम्मीद से अपने -अपने घरों में रहना मुनासिब समझा। परन्तु कुछ ही दिनों में लॉकडाउन -2 की घोषणा होते ही सब्र टूटने लगा ,रोजी -रोजगार ,भूख और बीमारी की भयावता अपना रंग दिखाने लगा। जैसे -तैसे लोग घरों की ओर भागने लगे शहरों की सड़कें विरान होने लगे।

परन्तु इसी बीच पिछले कुछ दशकों से गाँवो का देश कहलाने वाला भारत की गाँवों की गलियों में अघोषित लॉकडाउन की तरह सन्नाटा और वीरान होती कच्ची -पक्की सड़कें ,खेतों की पगडंडियों भी कौतुहल और कोलाहल से भरने लगा ,गाँवो में चौपाल सजने लगा। इसी बीच कुछ अच्छे -वुरे अनुभवों के साथ धीरे -धीरे ही सही देश अनलॉक होने लगा। तब आत्मनिर्भर भारत की याद आई वर्षो से बंद पड़े छोटे -छोटे उद्योग -धंधे खोलने पर अपनी -अपनी राज्य सरकारें विचार करने लगी। संघर्ष में सम्भावना तलाशने की विचारधारा करवटें बदलने लगी ,घुटन से भरी हमारा पर्यावरण भी लॉकडाउन में थोड़ी राहत की सासें लेने लगी। हवायें शुद्ध होने लगी,समुद्र ,नदियों ,सरोवरों का जल और जलीय जिव -जंतु कुलाचें भरने लगे।

अब वक्त आ गया है की प्रकृति की इस मार से सबक लेना ही होगा जब हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तब ही हम सुरक्षित रहेगें। जल ,जीवन ,हरियाली को कर्तव्य बोध के साथ बढ़ावा देना होगा। गिरती अर्थ व्यवस्था को सँभालने में विकसित शहरी इलाकों के साथ -साथ फिर से गुलजार होते गाँवों को भी साथ लेकर चलना होगा। कौशल और कुशलता वहॉँ भी कम नहीं है वस जरूरत है ईमानदारी से उसे तरासने की। और प्रकृति व् कृत्रिम लॉक अनलॉक की प्रवृति को धीरे -धीरे सावधानी और सुरक्षा मानको के साथ सम्पूर्ण अनलॉक के तरफ कदम बढ़ाने की।

परन्तु इसी बीच पिछले कुछ दशकों से गाँवो का देश कहलाने वाला भारत की गाँवों की गलियों में अघोषित लॉकडाउन की तरह सन्नाटा और वीरान होती कच्ची -पक्की सड़कें ,खेतों की पगडंडियों भी कौतुहल और कोलाहल से भरने लगा ,गाँवो में चौपाल सजने लगा। इसी बीच कुछ अच्छे -वुरे अनुभवों के साथ धीरे -धीरे ही सही देश अनलॉक होने लगा। तब आत्मनिर्भर भारत की याद आई वर्षो से बंद पड़े छोटे -छोटे उद्योग -धंधे खोलने पर अपनी -अपनी राज्य सरकारें विचार करने लगी। संघर्ष में सम्भावना तलाशने की विचारधारा करवटें बदलने लगी ,घुटन से भरी हमारा पर्यावरण भी लॉकडाउन में थोड़ी राहत की सासें लेने लगी। हवायें शुद्ध होने लगी,समुद्र ,नदियों ,सरोवरों का जल और जलीय जिव -जंतु कुलाचें भरने लगे।

अब वक्त आ गया है की प्रकृति की इस मार से सबक लेना ही होगा जब हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तब ही हम सुरक्षित रहेगें। जल ,जीवन ,हरियाली को कर्तव्य बोध के साथ बढ़ावा देना होगा। गिरती अर्थ व्यवस्था को सँभालने में विकसित शहरी इलाकों के साथ -साथ फिर से गुलजार होते गाँवों को भी साथ लेकर चलना होगा। कौशल और कुशलता वहॉँ भी कम नहीं है वस जरूरत है ईमानदारी से उसे तरासने की। और प्रकृति व् कृत्रिम लॉक अनलॉक की प्रवृति को धीरे -धीरे सावधानी और सुरक्षा मानको के साथ सम्पूर्ण अनलॉक के तरफ कदम बढ़ाने की।
वस स्वस्थ्य रहें ,सुरक्षित रहें
जय हिन्द।
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