शिक्षक दिवस 2020


Mother and Daughter Bonding

यों तो हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण जी के जन्मदिन को (5 सितम्बर ) शिक्षक दिवस के रूप में मनाते आ रहें है। उन्होंने लगभग 40 वर्षो तक समर्पित भावों से कुशलता पूर्वक शिक्षण का कार्य किया और आगे चलकर कुशल राजनीतिज्ञ की भूमिका निभाते हुए स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति पद को सुशोभित किए। इस दिन गुरु शिष्य परम्परा को कायम रखने का संकल्प दिवस भी होता है।

Teacher Talking to the Class 

आज मैं यहॉँ वर्तमान हालत को मद्देनजर रखते हुए अनायास ही उपजी वैश्विक महामारी के परिणामस्वरूप बदली हुई परिस्थितियों में ज्ञान का बदला हुआ स्वरूप पर प्रकाश डालना चाहूँगी। जब अचानक से पूरा देश लॉकडाउन हो गया तो सारा व्यवस्था स्वभाविक जीवनयापन से लेकर भौतिक सुख -सुविधा तथा रोजगार -व्यापर से लेकर शिक्षा जगत तक में उथल -पुथल मच गया। अब तक गुरु शिष्य परम्परा के माध्यम से जो ज्ञान का आदान -प्रदान होता आ रहा था नई तकनीक ने सब कुछ बदलकर रख दिया। माना की आईटी क्षेत्र में पहले से ही डिजिटल काम -काज हो रहा था सो वहाँ के कर्मचारी इस कार्य में निपुण हैं परन्तु विशेषकर स्कूल -कॉलेज ,सरकारी दफ्तर और न्यायिक क्षेत्र के अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक के सामने जो सबसे बड़ी बाधा उभरकर सामने आई  वो है कम्प्यूटर ज्ञान की अज्ञानता।

आज हर जगह नई पीढ़ी चाहे वह अपने -अपने बच्चे हो या कोई संस्था के माध्यम से सीखाने का कार्य कर रहे हों आज शिष्य गुरु है और गुरु शिष्य। इसमें कहीं -कहीं बच्चो का कौतुहल भी देखने को मील रही है। जहाँ कल तक हम उन्हें बता रहे थे ये करो वो करो आज वो बता रहे हैं की -बोर्ड की जादुई करिश्मा। कौतुहल वश बच्चे अपने  सुविधानुसार सेटिंग भी कर ले रहे हैं। पढ़ाई  के समय को छुट्टी में बदल लेना ,कठिन लगने वाले विषय को रुचिपूर्ण विषयो का सेटिंग की -बोर्ड में करना जैसी चंचलता आये दिन देखने और सुनने को मिल रहे हैं।


Photo of Woman and Boy Looking at Imac


वावजूद इसके सिखने -सीखाने के क्रम में बच्चे कहीं ज्यादा ही उत्सुकता से सीखा पा रहे हैं। अब बारी हम गुरुओ की है कि अपने अर्जित ज्ञान और अनुभव को उतना ही उत्सुकता से सीखना होगा। हमारी नई शिक्षा नीति में भी इसकी व्यवस्था कि गई  है की एक वार शिक्षक बन जाने के बाद आगे सिर्फ पढ़ाना ही है की मानसिकता से उबरना होगा। हमें भी नई -नई जानकारियों से रु -ब -रु होते रहना होगा। सिर्फ पढ़ाना ही नहीं पढ़ते भी रहना होगा तभी हम आने वाली पीढ़ी का सही मार्गदर्शन कर पायेंगे और गुरु शिष्य परम्परा को सम्मानित स्थान दे पायेगें।




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