WORK FROM HOME CONCEPT AND EFFECT
अंतराष्ट्रीय आपदा की इस घड़ी में अनायास ही उपजी कोविद -19 नाम का बला व्यक्ति से लेकर वर्ग समाज राष्ट्र और विश्व या यो कह ले की सम्पूर्ण मानव जाती को खतरे में डाल रखा है। जीवन बचाने की जदोजहद में सर्वप्रथम सम्पूर्ण लॉकडाउन ही विकल्प के रूप में सामने आया सब अपने -अपने घरों की ओर जाने लगे। काफी मशक्त करनी पड़ी लोगों को भी और संबंधित राज्य सरकारों को भी। खैर काफी परेशानियों के उपरांत जब करीब -करीब सभी लोगों अपने घरों तक पहुँच गए परिणाम स्वरूप मानव संसाधन की कमी से सारे उद्योग -धंधे ठप पड़ गए। भुखमरी का सामना करना पड़ा। ऐसी विषम परिस्थिति में डिजिटल इंडिया की अवधरणा को विस्तार देने के लिए वर्क फ्रॉम होम की परिपाटी ने जन्म लिया ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
सबसे पहले कारपोरेट जगत ने तो सहज ही स्वीकार लिया पर छोटे -छोटे शहर ,व्यवसायी,सरकारी ऑफिस ,स्कूल ,महाविद्यालय जहाँ अभी भी अधिकांश काम मैन्युल ही होता आ रहा है के सामने डिजिटल knowledge की कमी एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभरी।
ऐसी परिस्थिति में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का समस्या को अवसर में बदलने का आह्वान पुरे देश में ऊर्जा का संचार कर दिया। साथ ही दो गज की दुरी मास्क है जरूरी का बुलंद नारा दिया। उन्होंने यहां तक कहा की जीना भी जरूरी है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना भी। यहीं से शुरू होता है अनलॉक की प्रक्रिया और साथ ही वर्क फ्रॉम होम की अवधरणा पर आगे की रणनीति। चर्चाओं में तो इसे आगे भी कमोवेश जारी रखने की बात चलने लगी। साथ ही विरोध और सहमति का विचार भी उभरने लगा।
अब इसके दोनों पहलुओं पर विचार करना होगा। एक तरफ जहां कंपनियों और उसके कर्मचारियों दोनों के लिए सुविधा जनक दीखता है लोग काम के लिए अपने -अपने घरों से लम्बे समय तक दूर रहते है कभी -कभी तो ऐसी परिस्थिति भी आ जाती है की बुजुर्ग माता पिता की देख -रेख भी मुश्किल हो जाता है बच्चों से अलग रहने पर अभिभावक भी परेशान रहते है। ऐसे में यदि बच्चे साथ में रहकर घर से काम करके सम्मानित जीवन जी सकते हैतो पलायन की समस्या का समाधान भी हो सकता है और क्षेत्रीय बाजार, पर्यटन स्थल का आवश्यकतानुसार विकास की संभावनाएं भी विस्तार ले सकती है।
परन्तु दूसरी तरफ बड़े -बड़े महानगरों की अर्थव्यवस्था ही इसी पर टिकी हुई है इससे संबंधित रेस्टूरेंट ,मकान ,जरूरत के सामानो का बाजार, ऑफिस के लिए सुविधाओं से परिपूर्ण बिल्डिंग्स ें सब पर बुरा असर पड़ेगा ,कंपनियों के शाखाएँ खोलनेकी प्रक्रिया में कमी आएगी। फिर भी बिच का रास्ता तो निकला जा ही सकता है।
विकास को अगर हम बड़े -बड़े महानगरों तक सीमित न रखकर इसे छोटे -छोटे शहरों और गावों की ओर ले चलें जहाँ असीम सम्भावनाये भी हैं। वस दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत है अब वक्त आ गया हैक्षेत्रीय आवश्यकताओ को चिन्हित कर उसके समाधान हेतु उद्योग -धंधों को विस्तार देने का।
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ऐसी परिस्थिति में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का समस्या को अवसर में बदलने का आह्वान पुरे देश में ऊर्जा का संचार कर दिया। साथ ही दो गज की दुरी मास्क है जरूरी का बुलंद नारा दिया। उन्होंने यहां तक कहा की जीना भी जरूरी है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना भी। यहीं से शुरू होता है अनलॉक की प्रक्रिया और साथ ही वर्क फ्रॉम होम की अवधरणा पर आगे की रणनीति। चर्चाओं में तो इसे आगे भी कमोवेश जारी रखने की बात चलने लगी। साथ ही विरोध और सहमति का विचार भी उभरने लगा।
अब इसके दोनों पहलुओं पर विचार करना होगा। एक तरफ जहां कंपनियों और उसके कर्मचारियों दोनों के लिए सुविधा जनक दीखता है लोग काम के लिए अपने -अपने घरों से लम्बे समय तक दूर रहते है कभी -कभी तो ऐसी परिस्थिति भी आ जाती है की बुजुर्ग माता पिता की देख -रेख भी मुश्किल हो जाता है बच्चों से अलग रहने पर अभिभावक भी परेशान रहते है। ऐसे में यदि बच्चे साथ में रहकर घर से काम करके सम्मानित जीवन जी सकते हैतो पलायन की समस्या का समाधान भी हो सकता है और क्षेत्रीय बाजार, पर्यटन स्थल का आवश्यकतानुसार विकास की संभावनाएं भी विस्तार ले सकती है।
परन्तु दूसरी तरफ बड़े -बड़े महानगरों की अर्थव्यवस्था ही इसी पर टिकी हुई है इससे संबंधित रेस्टूरेंट ,मकान ,जरूरत के सामानो का बाजार, ऑफिस के लिए सुविधाओं से परिपूर्ण बिल्डिंग्स ें सब पर बुरा असर पड़ेगा ,कंपनियों के शाखाएँ खोलनेकी प्रक्रिया में कमी आएगी। फिर भी बिच का रास्ता तो निकला जा ही सकता है।
विकास को अगर हम बड़े -बड़े महानगरों तक सीमित न रखकर इसे छोटे -छोटे शहरों और गावों की ओर ले चलें जहाँ असीम सम्भावनाये भी हैं। वस दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत है अब वक्त आ गया हैक्षेत्रीय आवश्यकताओ को चिन्हित कर उसके समाधान हेतु उद्योग -धंधों को विस्तार देने का।
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