कल आज और कल


आज हम यहां तीन पीढ़ियों की बात करेंगे। हमारा भारतीय संस्कृति सदैव से ही समृद्ध और वैभवशाली रहा है साथ ही लचीला भी।  इसमें परिवर्तन को सहजता से आत्मसात करने की अद्भुत क्षमता रही है।इसी लचीलेपन और उदार प्रवृति का परिणाम रहा कीसमय समय पर हम विदेशियों के हाथो गुलाम होते रहे हैं। कभी ईरानियो ,कभी मुगलों ,तो कभी अंग्रेजो के गुलामी को स्वीकारते रहे हैं। इन सबके बीच कभी स्वेच्छा से तो कभी दवाब से हमारा आपसी संस्कृति का आदान प्रदान भी होता रहा है जिसका प्रभाव हमारे आहर -विहार ,विचार  व्यवहार ,उद्योग -धंधे ,कृषि और शिक्षा पर विशेष रूप से पड़ा। 
आज का वैश्वीकरण कल आज और कल का कोलाज बन गया है। जहाँ कल तक हम आपस में मिल बैठकर समस्याओ का समाधन ढूंढा करते थे चाहे वह परिवार के स्तर पर हो या समाज ,जिला राज्य, देश या विदेश  के स्तर पर हो इसके अलग अलग माध्यम होते थे सभा ,मीटिंग ,सेमिनार, गोष्ठी, गेट टुगेदर पार्टियां वगैर वगैर।



आज का स्वरूप में काफी परिवर्तन आ गया  है। आज डिजिटल जमाने ने अपना वर्चस्व कायम कर चूका है। जैसा की प्रत्येक वस्तु या विषय की अपनी कुछ खूबियां और खामियां होती रही है। तो इसमें भी कई खूबियों के साथ कुछ खामिया भी है। इसके माध्यम से चीजें बहुत ही आसान हो गई है एक तरह से जीवन का मशीनीकरण हो  गया है। घर के काम काज से लेकर खेत -खलिहान ,ऑफिस ,बाजार, सुरक्षा सब के सब हमारेउंगुलियों और मुठियों में कैद सा हो गया है। इसका सकारात्मक प्रभाव ये है की कार्यों का सरलीकरण हो जाने से समय और श्रम की काफी हद तक बचत हो गई है ; काफी हद तक भ्र्ष्टाचार परभी अंकुश लगा है। जहाँ किसान, मजदूर ,बड़े -बड़े उद्योगपति ,राजनीतिज्ञ ,मिडिया ,खेल जगत से लेकर फिल्म  तक में यहां तक की भारत में प्रत्येक नागरिक का बैंक खता, आधार कार्ड ,वन नेशन वन कार्ड जैसी अवधारणासीधे तौर पर उत्पादन को उपभोगता से जोड़ता है इसमें अभी और सुधार की गुंजाइस है।

वर्तमान के इस वैश्विक महामारी में भी हम लगातार जीवन को आसान बनाने में लगे हुए है। मजवूरी में ही सही हम अपने अपने घरों में कैद सा हो गए है फिर भी ऑनलाइन की सारी सुविधाएं विचारों का आदान -प्रदान से लेकर सुरक्षा, सावधानी, सुझाव, और समाधान की नई -नई जानकारियां चंद मिनटों में आम आदमी तक पहुंचा रहे हैं। कारपोरेट जगत का तो जैसे सम्पूर्ण डिजिटाइजेशन हो गया है। इसमें एक नई परिपाटी का जन्म हुआ है work from home जिसका आने वाला कल को भी जारी रखने की बात जोरो से चल रही है।

अब  नकारात्मक पहलुओं पर भी विचार कर ले। मशीनीकरण के इस दौर में मानवता  कहीं खोती सी नजर आने लगी है। हम अपने -अपने डिवाइस में इतने मशगूल होते जा रहे है की देश -दुनिया का हाल तो जुवान पर होने लगा है। पर अपने आस पास परिवार के लोगों से शारीरिक दूरियां ने निरसता को जन्म दिया है। हम भीड़ में भी अकेलापन महसूस करने लगें है। जिसका प्रत्यक्ष परिणाम डिप्रेशन, चीडचीड़ापन ,नशाखोरी और अंततः आत्महत्या करने तक में न हिचकना चिंता का विषय बन गया है। मानवीय मूल्यों का तेजी से ह्रास होने लगा है। आज के परिप्रेक्ष्य में कल को देखते है तो हमे मायूसी ही मायूसी नजर आएगी वर्तमान के हालत पर नजर दौड़ाते है तो एक तरफ विज्ञान की तरक्की और उन्नति बुलंदियों के आसमान छूती  नजर आती है। वहीं दूसरी ओर किस तरह एक छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को तंगो तवाह करके रख दिया है ;दुनिया लाशों का ढेर बनकर रह गया है हम इस विनाश की सच्चाई को देखने से भी कतराने लगें हैं। माना की हम सभी इसके समाधन ढूंढने में लगातार लगे हुए है। माध्यम चाहे जो भी हो हम सभी (यूनानी,आयुर्वेद, होमियोपैथ,एलोपैथ) एक ही नतीजे पर पहुँचे है की शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को ही बढ़ाया जाय ;चाहे वह प्राणायाम, व्यायाम,से हो या आहार में विटामिन्स,मिनिरल का समावेश करके या उसे दवाइयां, टवलेट ,इंजेक्शन का ही रूप क्यों न हो।

उदाहरण के तौर पर अस्पताल जाने वाले कोरोना रोगियों के लिए अभी तक कोई प्रमाणित उपचार नहीं मिला है वहां भी इम्युनिटी वूस्टर का ही प्रयोग किया जा रहा है वावजूद इसके हालत अनियंत्रित हो चूका है ऐसे में उपचार की अन्य पद्धतियां भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को ही बढ़ाने की बात कर रही है.वो चाहे आयुष मंत्रालय द्वारा निर्देशित आयुर्वेदिक काढ़ा हो या पतंजलि द्वारा निर्मित कोरोनिल हो या यूनानी पद्धति का सिट्रिक जूस और नारियल पानी का प्रयोग हो या होमियोपैथ का आर्सेनिक और ब्रायोनिया का प्रयोग ही क्यों न हो।



उपर्युक्त उदाहरणार्थ प्रमाणिक रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता को ही बढ़ता है। जिसका समर्थन करते हुए वर्तमान  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी लोकल वनाम भोकल का आह्वान किया है।

सार यह है की निम् हकीम खतरे जान जैसे उलाहनाओं से उपेक्षित ें पद्धतियों का पुनरुद्धार का समय आ चूका है। अब वक्त आ गया है की हम अपनी समृद्ध संस्कृति और गौरवशाली परम्परा को विशेषकर शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में मिलकर काम करे यूनानी ,आयुर्वेद, होमियोपैथ, एलोपैथ चारों की विशेषताएं
जब एक साथ मिलकर काम करेगा तो निशिचत ही हम एक सुपर पावर के रूप में उभरकर विश्व विजेता बन सकते हैं। 

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