सम्भव है समाधान संक्रामक रोग का भारतीय आहार विहार और जीवनशैली से

आज देश दुनिया गली मुहल्ले कस्वे से लेकर बड़े बड़े नगर महानगरों हर जगह दहशत का माहौल है हर जुवान पर एक ही चर्चा कोरोना (कोविद -१९ )इससे बचाव से लेकर रोकथाम और उचित इलाज का अनवरत प्रयास निश्चित ही किसी नतीजे पर पहुंचेगी। पर देखना ये होगा की अपने पीछे कितनी वेदर्दी से वर्वादी का अंजाम दे गया है। 
 अब प्रश्न यह उठता है की क्या यह कोई प्रकृति या दैवीय प्रकोप है या जान बूझकर किया गया या फिर अज्ञानता और लापरवाही का परिणाम है। यह एक समीक्षात्मक अध्ययन की अपेक्षा रखता है। 
अब तक के अध्ययनों के आधार पर इस नतीजे पर पहुंचा जा चूका है की यह एक संक्रामक रोग है (viral disease)और यह संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क मे आने से बड़ी तेजी से फैलता है आस पास के लोगो को बड़ी समुह को बहुत ही सरलता से अपने गिरफ्त मे ले लेती है। चुकी यह अपने आप मे एक नया वायरस है इसलिए इसका कोई निश्चित इलाज अभी सम्भव नहीं हुआ है प्रयास जारी है
इससे बचाव और रोकथाम के उपायों मे साफ सफाई और समाजिक दूरियों के साथ ही जिस पर सबसे ज्यादा जोर दी जा रही है वो है रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास। जिसका कोई एक दिन या महीनें में विकास  सम्भव नहीं है। यह एक सतत संयमित आहार विहार की अपेक्षा रखती है।इसी तरिके का महामारी पिछले ३-४ वर्षो से मुजफ्फरपुर (बिहार) में अप्रैल से जून तक कहर  बरपाते आ रही है। जिसे विशेषज्ञों ने चमकी बुखार का नाम दिया है इससे विशेषकर छोटे बच्चें ज्यादा प्रभावित होते है। अब तक के शोध और अध्ययनों से इस नतीजे पर पहुंचा जा चूका है की इसका मुख्य कारण कुपोषण है। अब यहाँ कुपोषण और low immunity दोनों ही आहार विहार कीअज्ञानता को भी दर्शाता है। हलाकि इसके कई कारण हो सकते है। जैसे --गरीबी ,अशिक्षा ,भौतिकता की अंधी दौड़ ,वैश्वीकरण से प्रभावित हमारी संस्कृति पर पड़ने वाले पश्चात् प्रभाव ,प्रकृति असंतुलन इत्यादि। जहाँ चमकी बुखार एकआयु व् क्षेत्र विशेष को प्रभावित किया है वही  दूसरी ओर कोरोना ने तो पुरे विश्व को ही अपने आगोश में समाहित कर लिया है यह वैश्विक महामारी का रूप धारण कर चूका है। क्या शिक्षित अशक्षित ,गरीब -आमिर ,विद्वान् व्यापारी सबको हैरान कर दिया है हलाकि इससे पहले भी कई संक्रामक बीमारियां जैसे -प्लेग से लेकर हैजा ,चेचक ,हैपेटाइटिस ,पोलियो ,एड्स यहाँ तक की फरवरी 2019में मैक्सिको से शुरुआत होकर पूरी दुनिया मे महामारी का रूप लेनेवाला वर्ड फ्लू जैसे अनेक संक्रामक विमारियों का समुचित इलाज ढूंढा जा चूका है। जिसमे प्रत्यक्ष या परोक्ष  रूप से हमारा आहार विहार का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
समाधान      
यहाँ मैं कुछ सहज प्राप्त औषधीय जड़ी -बूटी की चर्चा करना  चाहूँगी जो सदियो से चली आ रही है और आज भी प्रासंगिक है। जैसे -गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से लेकर अन्य कई विमारियों मे भी। इसकी विशेषता यह है की इसे रोगी और निरोग दोनों ले सकता हैऔर ये हर वर्ग के पहुंच के अंदर भी है। साथ ही इसे कई रूपों मै लिया जा सकता है। जैसे -काढ़ा ,सत्व ,वटी।
इसके आलावा गिलोय,अश्वगंधा ,सतावर ,सफेद मूसली इन सबका एक साथ काढ़ा बनाकर भी लिया जा सकता है। ये पतंजलि योगपीठ के अनुसंधान का परिणाम है इसका प्रयोग योग्य वैद्य के देखरेख मे होना चाहिए।
स्वाध्याय के अनुभवों के आधार पर आयुर्वेद सार संग्रहपेज145 में वर्णित जहरमोहरा  खताइपिष्टी जो स्वयं विषैली नहीं होते हुए  भी स्थावर और जंगम विष को दूर करने की अद्भुत क्षमता होने के साथ ही संक्रामक रोगों (प्लेग ,हैजा ,मलेरिया ,चेचक ) के फैलने के समय (संक्रमण काल ) इसके प्रयोग और देश विदेश के दूषित वातावरण से फैले हुए रोगों के लिए प्रभावशाली औषध के रूप मे प्रयोग होता आ रहा है।
इसके साथ ही यष्टिमधु जिसका वर्णन bhavapraksh nighantu page--66मे  है। व्रणरोपक और श्वसन तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण वर्तमान समय के कोविद-19 जैसे संक्रामक रोगों पर इसका अच्छा प्रभाव हो सकता है यदि शोध संगठनों व् शोधकर्ताओं का सहयोग मिले जहरमोहरा ,यष्टिमधु ,गिलोय सत्व इसकी मात्रा और खुराक प्रयोग के परिणामो केआधार पर की जानी चाहिए।

इसके आलावा भारतीय रसोईघर भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है। जैसे --रोजमर्रा के भोजन मे प्रयुक्त होने वाले मशाले लहसुन ,आदि , प्याज ,हल्दी ,अजवायन ,गरममशाला ,घी ,तेल ,दूध ,और फल व् फलो का जूस ये साधरण से दिखनेवाले हर वर्ग के पहुंच के अंदर आने वाले आहार है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के साथ ही सुपाच्चय ,पौष्टिक और रुचिकर भी होता है।
आज नितांत आवश्यकता है इन चीजों को औद्योगीक विस्तार का इसे विज्ञान से जोड़कर इसकी गुणवत्ता वढाने ,संग्रह क्षमता का विकास के साथ ही लोकप्रिय बनाने का


                                                                    धन्यवाद





















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