`दही के चमत्कारी गुण

एक सुप्रसिद्ध लोकोक्ति "दही विन गइ रसोई "भोजन में दही का महत्वपूर्ण  स्थान को दर्शाती है अब यहाँ ध्यान देने योग्य मह्त्वपूर्ण बातें यह है की  दही का प्रयोग कब कैसे और किसके साथ किया जाए की उसमे उपस्थित पोषकतत्वों की पोषक मूल्य (Nutritive value) का अधिक से अधिक उपयोग हो सके। 

तो सबसे पहले  ऋतु के अनुसार वसंत ,ग्रीष्म ,और शरद ऋतुओ में दही का सेवन से बचना चाहिए तथा वर्षा ,हेमंत और शिशिर ऋतु में सेवन करने की बात चरक संहिता के सूत्रस्थान सातवाँ अध्याय पेज 187में कहि गई है। इसके आलावा यात्रा काल में भी दही दर्शन को शुभ माना गया है।  

अब दही  कब और कैसे खाने से स्वास्थ्य के लिए हितकर और अहितकर हो जाता है इसकी चर्चा करेगें। 


  • रात्रि में दही खाने से बचना चाहिए यदि अति आवश्यक हो जाए तो उसमे शहद मिलाकर खाने से सुस्वादु के साथ दोष रहित भी हो जाता है। 
  • घी के साथ दही का सेवन वातनाशक और पित्तनाशक होने के साथ आहार का पाचक भी होता है परन्तु इसका कफवर्धक होने का गुण थोड़ा कफ को बढ़ा भी देता है। अर्थात सरल भाषा में कहें तो अगर सर्दी खाँसी न हो तो समान्यवस्था में घी और दही हितकारक होता है भूख जगाता है और पाचन शक्ति को भी मजबूत करता है। 
  • चीनी के साथ दही तृष्णा तथा दाह का शमन करता है अर्थात प्यास और गर्मी से राहत देता है। 
  • मूँग की दाल के साथ दही खाने से रक्त संबंधित दोषो को(फोड़ा  फुन्सी ,पिम्पल्स ,त्वचा संबंधी रोग )और वात विकारो को दूर करता है.
  • आवँला के साथ दही का सेवन शरीर में संचित दोषो को निकलकर बाहर कर देता है।अर्थात शरीर का पूर्ण शुद्धिकरण हो जाता है। 


अंत में सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक सावधानी ये है की तजी दही और गर्म करके दही खाना वर्जित है। हालाँकि सब्जी दाल के साथ इसका प्रयोग बड़ी सरलता से की जा सकती है। पर स्वतंत्र रूप से गर्म करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। 

                                                            :--:

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

टाइम वुमन ऑफ द ईयर 2025

नव वर्ष 2025 सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वागतम !

राखी से रक्षा