आयुर्वेद और हमारा जीवन चर्या।
शरीर और जीव का संबंध ही प्राणी का जीवन होता है और उस जीवनयुक समय का नाम ही आयु है। अपनी आयु को स्वस्थ्थ रखना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार भी है और कर्तव्य भी। इसकी कामना करने
वाले प्रत्येक व्यक्ति को उचित आहार विहार का ज्ञान होना और उसका सही उपयोग ही स्वस्थ्य दीर्घायु का कारक होता है।
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आयुर्वेद में हितभुक मितभुक और ऋतभुक की चर्चा की गई है।
- हितभुक -- अपने प्रकृति के अनुसार हितकारी भोजन।
- मितभुक --उचित मात्रा मे भोजन।
- ऋतभुक --ऋतु के अनुकूल भोजन करने वाला व्यक्ति सामान्यतः स्वस्थ्थ होता है।
शरीर मे इन धातुओ की साम्यावस्था स्वस्थ्य और विकृतावस्था रोग कहलाता है। अब यहाँ किन ऋतु मे कौन सा दोष का प्रकोप होता है और किसका शमन (शांति)की चर्चा करेंगे इसे हम एक तालिका के माध्यम से समझेंगे।
शरद
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शिशिर
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वसंत
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रोगउतपति के पहले ही दोषो का शमन करना चाहिए जैसा की तालिका से स्पस्ट है। वसंत मे कफ का शरद मे पित का और वर्षा मे वायु का प्रकोप प्रधान रूप से होता है। अतः इन इन ऋतुऔ मे इन इन दोषो का शमन करना चाहिए।
अभी ग्रीष्म ऋतू जाने वाला है और वर्षा ऋतू आने वाला है। इस वदलते मौसम मे दोषो का साम्यावस्था बनाये रखने के लिए अनुकूल आहार विहार कैसा हो इसकी चर्चा यहाँ करेंगे।
ग्रीष्म काल मे सूर्य की गर्मी अपने चरम पर होती है। जिससे शरीर का जलीय तत्व का तेजी से अवशोषण होता है इसकी पूर्ति हेतु आहार मे मौसमी फलो तथा फलो का जूस चने के सतू का घोल ,सलाद ह्ररी सब्जिया का सेवन अधिकता से करना चाहिए गर्म पदार्थ अधिक तेल मसालेयुक्त आहार से वचना चाहिए साथ ही हल्के व्यायाम और प्राणायाम भी नियमित रूप से करना चाहिए। यथा सम्भव दिन मे एक या दो घंटे का आराम जरूर करे।
चुकी ग्रीष्मकाल वात का संचयकाल है और जैसे ही मॉनसूनसक्रिय होकर वर्षा ऋतू का आरम्भ होता है तो उसमे वात का प्रकोप स्वभावतः वढ़ जाता है इस काल मे जलीय तत्व का अवशोषण होने से जठरागिन कमजोर हो जाता है जो वर्षा ऋतू मे वात के प्रकोप से पित और कफ को भी प्रभावित करते हुऐ और कमजोर कर देता है। यही कारण है की अन्य ऋतुओ की अपेक्षा वरसात मे व्यक्ति का स्वस्थ्थ्य अधिक अनियमित होता है।
इस ऋतू का आहार विहार से सम्वन्धित मुख्य बातें
अभी ग्रीष्म ऋतू जाने वाला है और वर्षा ऋतू आने वाला है। इस वदलते मौसम मे दोषो का साम्यावस्था बनाये रखने के लिए अनुकूल आहार विहार कैसा हो इसकी चर्चा यहाँ करेंगे।
ग्रीष्म काल मे सूर्य की गर्मी अपने चरम पर होती है। जिससे शरीर का जलीय तत्व का तेजी से अवशोषण होता है इसकी पूर्ति हेतु आहार मे मौसमी फलो तथा फलो का जूस चने के सतू का घोल ,सलाद ह्ररी सब्जिया का सेवन अधिकता से करना चाहिए गर्म पदार्थ अधिक तेल मसालेयुक्त आहार से वचना चाहिए साथ ही हल्के व्यायाम और प्राणायाम भी नियमित रूप से करना चाहिए। यथा सम्भव दिन मे एक या दो घंटे का आराम जरूर करे।
चुकी ग्रीष्मकाल वात का संचयकाल है और जैसे ही मॉनसूनसक्रिय होकर वर्षा ऋतू का आरम्भ होता है तो उसमे वात का प्रकोप स्वभावतः वढ़ जाता है इस काल मे जलीय तत्व का अवशोषण होने से जठरागिन कमजोर हो जाता है जो वर्षा ऋतू मे वात के प्रकोप से पित और कफ को भी प्रभावित करते हुऐ और कमजोर कर देता है। यही कारण है की अन्य ऋतुओ की अपेक्षा वरसात मे व्यक्ति का स्वस्थ्थ्य अधिक अनियमित होता है।
इस ऋतू का आहार विहार से सम्वन्धित मुख्य बातें
- प्रयोग की जाने वाली फलों व् सव्जियों को एक लीटर जल मे एक चुटकी नमक डालकर २५ -३० मिनट तक भिगोने के बाद अच्छी तरह से धोकर प्रयोग करें।
- भोजन हमेशा गर्म और ताजी का ही प्रयोग करे. भोजन के तुरंत वाद पानी पिने का गलती तो बिल्कुल ही न करें कम से कम आधे घंटे का अंतराल तो जरूर लें।
- सुवह एक गिलास गुनगुने जल का हमेशा प्रयोग करें।
- सुवह शाम चाय काफी की जगह हर्बल काढ़ा (गिलोय ८-१० इंच का २ टुकड़ा ,तुलसी पत्र ४-५ ,काली मिर्च २-३,हल्दी और आदि एक इंच का टुकड़ा आधा लीटर जल मे भिगोकर उबाल लें पानी जब एक चौथे बच जाय तो उसे छान कर प्रयोग करें ) .
- साथ ही जीवनीय औषध मे यष्टिमधु का सर्वोत्तम स्थान होने केकारण इस ऋतू मे इसका प्रयोग कर सकते हैइसके साथ अश्वगंधा का प्रयोग भी लाभदायक होता है।
- इस ऋतू में शहद का सेवन अत्यंत ही लाभदायक होताहै। शहद को गुनगुने जल में मिलाकार या दही के साथ भी ले सकते है दही के साथ लेने से भोजन सुस्वादु और त्रिदोषनाशक हो जाता है।
- मूँग की दाल के साथ दही वात विकारों का नाशक होता है चूकिं यह समय वात विकारो के प्रकोप का है अतः दाल और दही अर्थात दोपहर के भोजन के साथ दही का समावेश लाभदायक होता है।
- फ लो में विदाना पपीता और सेव का प्रयोग कर सकते हैं।
- दिन मे सोना
- धूप का सेवन
- शर्वत विशेषकर वेल का
- सत्तु का घोल
- अधिक मात्रा मे सरस फलों का प्रयोग
- पुरवा हवा का सेवन फ्रिज का पानी तथा
- वासी भोजन।
धन्यवाद

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