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यात्रा :राजगीर वन्यप्राणी सफारी

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  अंततः वो दिन( 27 /01 /2023 शुक्रवार )आ ही गया जिसका पिछले दो वर्षों से इंतजार था। लॉकडाउन के आँख मिचौली के बीच अब पूर्णतः इस सफारी का आम जनता के लिए खुलना वाकई उत्साह और रोमांच से भरपूर प्रकृति का सानिध्य एक अलग दुनिया के सैर का अनुभव कराता  है। सुबह नौ बजे से शाम के पाँच बजे (9 Am to 5 Pm )तक इसका दरवाजा खुला रहता है। इसमे प्रवेश के लिए online और ofline दोनों तरह का टिकट उपलब्ध है। पर अपने अनुभव से बताना चाहूँगी की online टिकट लेने से आपके समय का काफी सदुपयोग हो जाता है। साथ ही थोड़ी सी भी समय प्रबंधन कर लें (कब कहाँ किस क्रम मे जाना है)तो आप यात्रा का पूरा आनंद उठा सकते हैं। अन्यथा एक टिकट पर दिए गए 4 घंटे का समय पूरे सफारी घूमने के लिए कम पड़ जाएगा।  आइए करते हैं समय प्रबंधन। सबसे पहली और खास बात दरवाजे पर हल्का नाश्ता का प्रबंध होता है आप अपने स्वादानुसार उसका लुप्त उठाकर ही अंदर प्रवेश करें। प्रवेश द्वार से सटे ही म्यूजियम है उसे देखने से खुले मे वन्य प्राणियों (चीता, शेर, बाघ, भालू,अनेक प्रजाति के हिरण, बंदर )को घूमते देखने का उत्साह दोगुना हो जाएगा । अब आप जू सफारी...

पंचकर्म चिकित्सा

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  आयुर्वेद मे सम्पूर्ण शरीर को शुद्धिकरण करने का विशेष प्रक्रिया है पंचकर्म चिकित्सा। दूसरे शब्दों मे इसे संशोधन चिकित्सा भी कहते हैं। महर्षि चरक और वाग्भट्ट के मतों मे थोड़ी सी मतान्तर देखने  को मिलती है। महर्षि चरक के मतानुसार पंचकर्म के अंतर्गत वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन और शिरोविरेचन को स्थान दिया गया है। जबकि महर्षि वाग्भट्ट के मतानुसार पंचकर्म मे  वमन, विरेचन, नस्य,वस्ति और रक्तमोक्षण का उल्लेख मिलता है।  वमन और विरेचन को दोनों ने ही प्रधानता दी है।  वमन - वमन का प्रयोग आमाशय मे संचित कफ दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य द्रव्य होता है मधु।  विरेचन -  आमाशय और पक्वाशय  मे संचित पित दोषों को दूर करने के लिए विरेचन का प्रयोग किया जाता है। इसका मुख्य द्रव्य घी होता है।  वस्ति --  शब्दांतरण से वस्ति के अंतर्गत ही इन्हे दो उपवर्ग आस्थापन वस्ति और अनुवासन वस्ति का प्रयोग पक्वाशय मे संचित वातदोष   को दूर करने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य द्रव्य तैल होता है और रोगनुसार अन्य औषधियों का सहयोग लिया जाता है।...

वसंत के इस बदलते मौसम मे कैसा हो हमारा आहार- विहार

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ऋतु परिवर्तन के समय प्रकृति में परिवर्तन आने के साथ ही साथ हमारे शरीर मे भी परिवर्तन आना स्वभाविक प्रक्रिया है।हमारा शरीर कफ, पित और वात रूपी त्रिस्तम्भ के संतुलन पर विराजमान है। इनमे से किसी एक की न्यूनता या अधिकता सम्पूर्ण शारीरिक तंत्र की गतिविधियों को अनियंत्रित कर सकता है। जिससे हमारा स्वास्थ्य विशेष रूप से प्रभावित होता है। आयुर्वेद मे ऋतु विशेष मे किन दोषों का प्रकोप होता है उन्हें कैसे रोगोउत्पति से पहले शमन करना चाहिए इसकी विशेष चर्चा की गई है। जैसे -वर्षा ऋतु मे वायु का शरद ऋतु मे पित का और वसंत मे कफ का प्रकोप प्रधान रूप से होता है।  वर्तमान समय ठंढ का मौसम जाने वाला है और वसंत का आगमन होने वाला है या यू कहें की वसंत पंचमी (सरस्वती पूजा )से ही इसका प्रारम्भ हो जाता है। खान -पान से लेकर वस्त्र परिधान जो अब तक गर्म और भारी प्रकृति के हुआ करते थे अचानक से हल्के वस्त्र और कुछ हल्के आहार की चाहत कुलाचे भरने लगते हैं । इस पर नियंत्रण रखना अति आवश्यक हो जाता है । इसे क्रमशः धीरे -धीरे कम करने की जरूरत होती है। जहाँ सुबह- शाम और रातें ठंडी होती है वहीं दोपहर काफी गर्म होने लगता ...

हर-हर गंगे घर-घर गंगे

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  जब हम कभी कथानकों में कही -सुनी बातों को हकीकत में देखते हैं तो आश्चर्य से हमारी आँखें विस्मयादी बोधक भावों के साथ खुली की खुली रह जाती है। ऐसे ही अविस्मरणीय क्षण के हम बिहारवासी साक्षी बने। जब  27/11/2022 को गंगा की पहली नल -जल धारा गंगा से 100 -150 किलोमीटर दूर पाइप से होते हुए राजगीर, गया और बोधगया मे निर्मित जलाशयों मे संग्रहीत होकर राजगीर के घरों के नलों मे समाहित होकर नल -जल धारा के रूप मे प्रवाहित हुई । तत्पश्चात 28/11/2022 को बुद्ध की तपोभूमि गया और बोधगया के पवित्र धरा पर भी इस नल -जल का पदार्पण हुआ ।  भागीरथी प्रयास से धरती पर गंगा अवतरण की कहानी तो हम सबने पढ़ी -सुनी है । पर अभी -अभी जो हमने हर -हर गंगे से घर -घर गंगे की यात्रा पूरी की है यह हमारे वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी का दूरदर्शी दृष्टिकोण का फलीभूत परिणाम है । जिसकी कल्पना करना ही अपने आप मे अद्भूत है और उसका ससमय क्रियान्वित होना सच में किसी चमत्कार से कम नही है ।  यह परियोजना जल जीवन हरियाली का हिस्सा है । जिसकी लागत लगभग 4500 करोड़ तक की है । जल की महत्व को समझते हुए इसकी अनावश्यक खर...

नव वर्ष 2023

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  नये वर्ष की नई संकल्पना स्वस्थ्य व समृद्ध समाज एक भारत श्रेष्ठ भारत।  2022 -23 के इस संधि वेला में गीले -शिकवे ,उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ के गणितिए समीकरण से बाहर निकलकर सूर्योदय की पहली किरण की ऊर्जस्वित आशा और उम्मीदों से भरे अमृत कलश का सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वगतम! नव वर्ष मंगलमय हो |  :---------------------------------:   

एक ही मंच पर कला और विज्ञान /Arts &Science का अनोखा संगम

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कला  और विज्ञान लिखने -पढ़ने,देखने -सुनने में दो अलग -अलग लगने वाले शब्द जब एक साथ एक मंच को साझा करता है तब कुशल कौशल शब्द का जन्म होता है। वर्तमान समय तकनीकों का युग है। जब हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तथा कथित अपने आस -पास उपलब्ध सामग्री को दिमागी क्रियाशीलता का सहारा लेकर कुछ नया कर गुजरते हैं तो उसे जुगाड़ टेक्नोलॉजी का नाम मिल जाता है। यों तो हमारे आस -पास ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े मिलते हैं । पर जब कभी इन पर किसी बुद्धिजीवी उद्यमियों की नजर पड़ जाती है तो वो कंकड़ रूपी जुगाड़ तकनीक बड़े -बड़े उद्योग स्थापित करने की प्रेरणा बन जाती है । जिसे हम आज स्टार्टअप का नाम दे रखा है। वो चाहे एमबीए चाय वाला हो या छोले -भटूरे ,लिट्टी -चोखे की छोटी सी स्टाल से 5 स्टार होटल तक का सफर।  भोजन हमारी मूलभूत आवश्यकताओं का प्रथम स्तम्भ है। इसमे अपार संभावनाएं हैं। आहार प्रबंधन कला और विज्ञान एक साथ होने के साथ ही साथ आम से लेकर खास /विशेष लोगों का भोजन से प्रत्यक्ष संबंध होना इसमे हर रोज कुछ नया कर गुजरने की प्रेरणा से ओत -प्रोत है। यह विज्ञान इसलिए है की इसमे व्यक्ति की पौष्टिक आवश्यकताओं को ...

फैशन डिजाइनर /Fashion Designer

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  फैशन की राष्ट्रीय और वैश्विक राजधानी इटली के मिलान मे है। यहीं से फैशन की दिशा निर्धारित होती है। Fashion Designing  or Textile Designing  मे आधारभूत अंतर यह है की जहां टेक्सटाइल डिजाइन का संबंध कपड़ों से संबंधित (परिधान, घर की सजावट के लिए बुने हुए, विना बुने, रंगाई, छपाई )निर्माण से है। वहीं फैशन डिजाइन का संबंध परिधान उससे जुड़ी एक्सेसरीज और जीवनशैली की वस्तुओं के निर्माण से है। आज हम फैशन डिजाइन और डिजाइनर पर चर्चा करेंगें।  फैशन डिजाइन की शुरुआत 19 वीं शताब्दी मे हुआ ऐसा माना जाता है। इसका अर्थ ये कतयी नही हुआ की इससे पहले बेहतरीन डिजाइन के वस्त्र बने ही नही। बल्कि भारत को तो वस्त्रों के बारीकी और उस पर नायाब नमुने व कारीगरी के लिए विश्व प्रसिद्धि प्राप्त थी।परन्तु यह व्यक्तिगत न होकर सामुहिक रूप से जुलाहों और कारीगरों की पहचान तक ही सीमित थी।  ज्यादातर वस्त्रों का नामकरण बनने के स्थान, वस्त्रों के प्रकार, वनावट के स्वरूप तथा उसे विकसित और संरक्षण देने वाले बादशाहों और राजाओं के नाम पर किये जाते थे। जैसे -भागलपुरी सिल्क, बनारस की बनारसी, गुजरात का पटोला /ब...