संदेश

TEXTILE

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  वस्त्र विज्ञान (Textile) के अंतर्गत हम रेशे से परिधान तक की यात्रा को विस्तार से जानते  हैं। आइये आज हम सबसे पहले  वस्त्र की सबसे सुक्ष्त्तम इकाई रेशा के बारे में जानते हैं। रेशे हमे कई स्रोतों से प्राप्त होते हैं। जिन्हें हम अध्ययन की सुविधा के अनुसार दो वर्गों में वर्गीकृत करते हैं।  प्राकृतिक रेशे  Natural fibres  कृत्रिम रेशे Artificial fibres 1.  प्राकृतिक रेशे  -   इसके अंतर्गत हम उन रेशों को रखते हैं जो प्रकृति   में उपस्थित किसी न किसी वस्तु से प्राप्त होते हैं। इसे भी हम तीन उपवर्गों में वर्गीकृत करते हैं।   वानस्पतिक रेशे   -  ये हमे पेड़ - पौधों से प्राप्त होते हैं। जैसे - कपास , लिनन , जूट , कापोक , हेम्प , नारियल , रेमी , सन , अबका , सीसल , पिना इत्यादि।   प्राणिज रेशे   -  यह हमे   जीव  - जंतु से प्राप्त होते हैं। जैसे - ऊन   जो अलग - अलग किस्म के भेड़ , बकरियों , खरगोश ,  के बाल से और रेशम  (...

शोध पत्र /Research Paper

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शोध पत्र क्या है और इसे कैसे लिखा जाता है आज हम इसे विस्तार से जानते है।  जिस विषय पर हमने शोध ग्रंथ /research thesis लिखा है उससे संबंधित क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए शोध पत्र लिखकर किसी प्रमाणिक जर्नल/ journal में प्रकाशित कराकर अपनी ज्ञानवर्धक सूचनाओं को पाठकों तक पहुंचाते हैं। जिसका आठ चरणों का एक व्यवस्थित प्रारूप /Format होता है। प्रत्येक चरण की अलग -अलग विशेषतायें और शब्द सीमाएं होती है। सम्पूर्ण शोध पत्र का 3000 -4000 तक की शब्द सीमायें होती है। Heading /Title and Affiliation -  शीर्षक हमेशा छोटा,आकर्षक और अर्थपूर्ण होना चाहिए। जिसकी शब्द सीमा 8 -15  हो। Affiliation में लेखक का नाम, पद और पता होता है। लेखक एक दो या तीन भी हो सकते हैं।परन्तु इसमें पहले लेखक को प्रधान और अन्य को सहायक लेखक की श्रेणी में रखा जाता है। जिसका weightage प्रधान लेखक को 70 %,दूसरे को 30 %और अन्य को 30 का 10 -10 % मिलता है।  Abstract &Key words -   की वर्ड शीर्षक में से ही 4 -8 शब्दों को इस तरह चुना जाता है की सम्पूर्ण पत्र का परिचय स्वतः ही मिल जाता ...

आहार आयोजन

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  आहार आयोजन एक कला भी है और विज्ञान भी। भोजन बनाना और उसे कलात्मक ढंग से परोसा जाना जहाँ एक कला है वहीं भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों को जानना उसका संतुलित मात्रा में प्रयोग कर गुणवत्ता को बनाये रखना एक विज्ञान है। कलात्मक ढंग से परोसा गया भोजन भुख भी बढ़ाता है और तृप्तिदायक भी होता है।  आहार आयोजन  एक सफल गृहिणी की सफलता को दर्शाता है। इससे गृहिणी का समय, श्रम, धन और ईंधन का भी बचत होता है। साथ ही इस भ्रम को भी दूर करता है की महंगा भोजन ही पौष्टिक और संतुलित होता है। सच्चाई तो यह है की आहार की गुणवत्ता सस्ते या महगें से उतने प्रभावित नहीं होते जितना की उसे बनाने व् परोसने के तरीके तथा आहार तालिका में समुचित और सुव्यवस्थित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करने या न करने से होता है। पारिवारिक सदस्यों को न्यूनतम पोषक तत्व प्राप्त हो यह सुनिश्चित करने के लिए पारिवारिक सदस्यों का आयु वर्ग, लिंग भेद, शारीरिक कार्य आर्थिक स्थितिऔर स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए आहार में ऊर्जा देने वाले (कार्वोहाइड्रेट, वसा ),शरीर निर्माण,वृद्धि व् विकास  करने वाले (प्रोटीन )...

प्राणवायु

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  हमारे शरीर में प्राणवायु का निरंतर संचार ही व्यक्ति को जीवित होने का प्रमाण है। शरीर के अलग -अलग स्थानों में इसके अलग -अलग नाम और काम हैं। आज हम उन्हीं के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। इसके मुख्यतः पॉँच  नाम हैं।  प्राणवायु - यह हमारी ज्ञाननेद्रियों को गतिमान रखने के साथ -साथ फेफडों, हृदय, अन्न नलिका एवं श्वसन तंत्र को क्रियाशीलता प्रदान करता है। श्वास -प्रश्वास की निरंतर चल रही दोनों प्रक्रियाएँ प्राण ही है। यह शरीर के ऊपरी प्रदेश में रहता है।  अपानवायु - अपान नामक प्राण शरीर में गुदा के आस -पास के प्रदेश में रहता है। यह शरीर में सफाइकर्मी की भूमिका का निर्वहन करता है।  समानवायु - हृदय से लेकर नाभि तक के क्षेत्र में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं के सुचारु संचालन को समान नामक प्राण सुनिश्चित करता है। इसका निवास नाभि के आस -पास का क्षेत्र है।  व्यानवायु- व्यान नामक वायु त्वक (त्वचा )आदि इंद्रियों के साथ समस्त शरीर में व्याप्त रहता है। यह तंत्रिकाओं द्वारा समस्त संवेदनाएं मन तक प्रेषित करता है। वहाँ से प्राप्त निर्देशों को ज्ञानेद्रियों और कर्मेन्द्र...

भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी को सादर श्रद्धांजलि

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28 सितंबर 1929 -6 फरवरी 2022   भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी को  सादर श्रद्धांजलि  सुर सागर की अविरल धारा का अचानक से रुक जाना एक इतिफाक कहें या प्रकृति का करिश्मा। वसंत पंचमी की उत्कर्ष वेला की पावनी सुबह जब हम सब माँ सरस्वती की विदाई की तैयारी में लगे थे। उसी वक्त सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त बल्कि यों कहें साक्षात् सरस्वती की प्रतिमूर्ति का इस मृत्युलोक से चले जाना महज इतिफाक नहीं हो सकता। ये अद्भुत,अनोखा प्रकृति का करिश्मा ही है। जिस तरह प्रतीकात्मक रूप से सरस्वती माँ की मूर्ति पूजन और विसर्जन जन मानस में एक ऊर्जा का संचार करता रहा है उसी तरह हमारी ममतामयी माँ स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर जी की मधुर गीतों की गूँज हमेशा -हमेशा के लिए प्रकृति के कण -कण में गुंजायमान रहेगा। हमारी आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी इस सुर सागर में डुबकिया लगाती रहेगी।    :------------------:

सोलह संस्कार

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हमारे हिन्दू सनातन परम्परा में मानव जीवन चक्र सोलह संस्कारों में पिरोये हुये लयबद्ध जीवन  पद्धति का उल्लेख मिलता है। जिसमे मानव जीवन चक्र का प्रारम्भ से लेकर अंत तक क्रमिक विकास और एक अवस्था से दूसरे अवस्था में पदार्पण (परिवर्तन )के समय उत्सव के रूप में मनाने की सीख भी। कालांतर में हम इसे भूलने लगें थे जिसे फिर से पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है।  तो आइये आज जानते हैं महर्षि वेदव्यास के कथनानुसार सोलह संस्कार कौन -कौन से हैं उसका क्या विधान और दर्शन रहा है। गर्भाधान   संस्कार - सुयोग्य और सुपात्र संतान उतपन्न करने की इच्छा से नव दंपति (पुरुष 25 वर्ष और स्त्री कम से कम 16 वर्ष वर्तमान में दोनों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है )के लिए शुभ मुहूर्त निकालकर दिन में यज्ञ करके रात्रि में गर्भाधान का प्रावधान रखा गया है।  पुंसवन संस्कार - गर्भ धारण करने के पश्चात दुसरे या तीसरे महीने में यह संस्कार किया जाता है। सुंदर ,स्वस्थ्य और सुयोग्य संतान प्राप्ति के लिए देवताओं से प्रार्थना की जाती है। साथ ही गर्भ को पुष्ट तथा सुरक्षित रखने के लिए विशिष्ट प्रकार...

Types of Menu

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  मकर संक्रांति के साथ ही हमारी सनातन परम्परा के अनुसार सूर्य का उत्तरायण होते ही महीने भर से लगे शुभ कार्यो पर का  प्रतिबंध खुल जाता है। और शुरू होता है शादी, दुरागमन, भूमि पूजन, गृह -प्रवेश, विद्यारम्भ, मुंडन संस्कार जैसे कई उत्सवों का मौसम। वर्तमान समय में इन उत्सवों का आयोजन एक व्यवसायिक उद्योग का रूप ले चुका है।जिसका आयोजन घर पर हो या बाहर बड़े छोटे होटलों और रेस्त्राओं में भोजन का प्रबंध अधिकांशतः व्यवसायिक संस्थानो या आयोजकों पर आधरित हो गया है। जिस पर सबकी निगाहें टिकी  होती है। कार्यक्रम के अंत में सामाजीक चर्चा का विषय होता है की किसके पार्टी में कैसा प्रबंध था।   आज हम जानते है की मेन्यू के कितने प्रकार होते हैं।और किन -किन संस्थानों में कौन -कौन से मेन्यू अपनाये जाते हैं।  Types of Menu :-- A la 'carta Menu -- इस प्रकार के मेन्यू में चीजों को आधा तैयार करके रखा जाता है और ग्राहक के द्वारा Order  करने पर Final Touch  देकर परोसा जाता है। सबसे पहले ग्राहक को एक मेन्यू चार्ट दिया जाता है। जिसमे व्यंजन का नाम ,त...