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अप्रैल, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विश्व बंधुत्व की गुलदस्ता

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  22 अप्रैल 2023 का वो पवित्र  दिन जिसमे एक साथ शुभता की फूलों की खुशबु से दमकता हुआ फूलों की गुलदस्ता अक्षय तृतीया,परशुराम जयंती, ईद के साथ ही सम्पूर्ण मानव जीवन को जीवंतता प्रदान करने वाली हमारी धरती माँ के स्वास्थ्य, समृद्धि के लिए मनाए जाने वाले विश्व पृथ्वी दिवस जिसका इस वर्ष का थीम है " हमारे ग्रह मे निवेश करें " का   सुस्वागत सुस्वागत सुस्वागत ! जलवायु परिवर्तन के इस नाजुक दौर मे खुशियों के संगम का संयोग हमे इस बात के लिए प्रेरित करता है की समूचा पृथ्वी एक ही परिवार के विभिन्न रंगों से सुशोभित है। अतः इन रंगों की प्रमाणिकता यों ही बना रहे इसके लिए हमे अपने अधिकारों के साथ साथ अपने व्यवहारों, विचारोंऔर कर्तव्यों का विवेक पूर्ण निवेश करना चाहिए। जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए हम एक स्वस्थ्य व सुखद वातावरण छोड़कर जाने का मर्मस्पर्शी आनंद का अनुभव करें।  :---------------:

लोक आस्था का पर्व मेष संक्रांति ( सतुआन )14 अप्रैल

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आम जन तक सरल व सहज रूप से  पहुँचाने तथा उसे सरलता से अंगीकार करने मे भारतीय पर्व त्योहारों का विशेष भूमिका रही  है।प्राण और शरीर का एक साथ सक्रियता ही जीवन है। जिसके केंद्र मे  ऊर्जा का स्रोत सूर्य है । जहाँ से प्रकृति जगत के समस्त जीव जन्तु समस्त शक्तियाँ प्राप्त करती है। इसी से दिन, हपते, महीने और मौसम मे परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसी सूर्य की गति को परम्परा से जोड़कर हम पर्व त्योहार मनाते है। जैसे -सूर्य षष्ठी (छठ ), मकर संक्रांति, लोहड़ी, मेष संक्रांति, वैसाखी ,रोंगाली बिहू जिसका सीधा संबंध बदलते मौसम के आहार -विहार से है।  मेष संक्रांति (14 अप्रैल ) से सूर्य की गर्मी /तपिश क्रमशः बढ़ती जाती है जिसके प्रभाव से समस्त जीव जगत का रस सूखने लगता है। लू चलने लगती है। लू से बचने के लिए ही जौ चने की सतू और गुड़ जो की प्रकृति से शीतल होता है। विशेषकर सतू का घोल जिसे नमक,प्याज और आम, पुदीना की चटनी के साथ प्रयोग किया जाता है। जहाँ सतू लू से रक्षा करता है वहीं प्याज मे उपस्थित गंधक पाचन को सही रखता है। पुदीना से गैस संबंधित बीमारियाँ दूर रहती है। इनसे ...

लॉकडाउन और हमारा इंटरनेट

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  मार्च 2020 के लॉकडाउन से प्रारम्भ हुआ डिजिटल दुनिया का नया स्वरूप Work from home । कोरोना रूपी महामारी से बचने के लिए जब हम घर में बंद हुए तो इंटरनेट का कनेक्टिविटी हमे आपस में जोड़े रखा। जिसकी अब आदत सी पड़ गई है। अब यह हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है। कई चैनलों के माध्यम से जहाँ नई -नई जानकारियाँ सहजता से मिलने लगी जो की कई  लोगों का रोजगार बन गया। पर सुप्रभाव और दुष्प्रभाव तो हर नई चीज का होता ही है इसका भी हुआ। अफवाहों को फैलाने का एक विस्तृत मंच जो मिल गया सोने पे सुहाग अपनी बातों को कहने की स्वतंत्रता भी।  अभी -अभी अप्रैल 2023 के प्रथम सप्ताह बिहार के कुछ जिलों जिनमे हमारा नालंदा भी शामिल है। बिगड़ती विधि व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने के लिए लॉकडाउन जैसी स्थिति बन गई। ऐसा अनुभव हो रहा है की लॉकडाउन एक सामान्य सी परंपरा बन गई है। खैर एक दो दिनों के बाद आवश्यक सेवाएं तो कुछ समय सीमा के लिए बहाल हो गई। पर वर्तमान समय का जीवन रेखा कही जाने वाली इंटरनेट सेवा का सम्पूर्ण रूप से करीब आठ दिनों तक बंद रहना कहाँ तक उचित और अनुचित है। ये एक बड़ा प्रश्न हमारे सामने आ गया है। ...