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उत्सवों का सावन

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सावन की सोमवारी ,नागपंचमी ,हरियाली तीज ,और परम्पराओ को जीवित रखता मिथिलांचल का मधु श्रावणी।  जो सावन कृष्ण पक्ष पंचमी से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया तक चलने वाली नवविवाहितों के लिए आनंद और खुशियों का पिटारा सँजोये यादगार लम्हों का खजाना लिए अरे हाँ पता ही नहीं चला की कब पूर्णिमा के साथ रक्षा बंधन का पावन पर्व भी आ गया।  इस रक्षा बंधन के पावन पर्व पर भाई -बहन के स्नेहिल प्यार के साथ सावन की विदाई।  पुरे महीने गुलजार होती बागों में फिर से एक खालीपन और भर्राये मन से विदा होती बेटियाँ इस वादे के साथ की अगले सावन फिर मिलूँगी। इन कंधों पर दोनों आँगन को गुलजार करने की जो ममतामयी व् स्नेहिल जिम्मेवारी है चलेअब पिया का घर। अरे हाँ तीज की तैयारी भी जो करनी है। तो फिर मिलते हैं अगले तीज -त्यौहार पर।                                                                        ...

जीवन का संघर्षकाल और भाषा की चुनौतियाँ

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                                                                                           मनुष्य एक  सामाजिक प्राणी  है ऐसा हम सभी जानते हैं। जितना सच मनुष्य का सामाजिक होना है उतना ही सच सामाजिक होने में भाषा का महत्वपूर्ण योगदान का भी है। अपने मनोभावों के अभिव्यक्ति के कई तरीके हैं जैसे --स्पर्श , बोल -चाल की भाषा , गीत -संगीत , नृत्य , चित्रकला , संकेत इत्यादि। इन सब में भाषा का माध्यम सबसे सरल और प्रभावी भी है। पर जब एक नवजात शिशु जो अभी बोलना भी नहीं सीखा है वह भी स्पर्श की भाषा को बड़ी ही सहजता से समझ भी लेता है और प्रतिक्रिया भी करता है। यहीं से व्यवहारिक संवाद का आरम्भ होता है जो धीरे- धीरे भाषा में परिवर्तित होकर संचार का माध्यम बनता है। कई शोध अध्ययनों का निष्कर्ष यह है की प्रारम्भ के 5 -6 वर्षों में मस्तिष्क का विकास बड़ी शीघ्रता से होत...