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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छुट्टी की छुट्टी

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है न एक अजीब सी पहेली छुट्टी की छुट्टी।  पूरे दिन सप्ताह और महीने भर की शरीर और मन को थका देने वाली कार्यशैली से थोड़ी राहत लेकर फिर से ऊर्जस्वित होने के लिए बड़ी ही उम्मीद से छुट्टी की अर्जी दी और मंजूर भी हो गया। फटाफट हमने मंजूरी मैसेज को घर भी फॉरवर्ड  कर दी। घर के बच्चे ,बुजुर्ग ,हमसफ़र ,और अन्य सदस्य सबने अपने - अपने तरीके से तैयारियां भी शुरू कर दी समय साथ बिताने की लिस्ट भी बननी शुरू हो गए। प्रत्येक दीन की मनपसंद मेन्यू  ,घूमने का स्थान ,साथ मिलबैठकर खाना और ढेर सारी  बातें करने के सपने उड़ान भरने लगे। जैसे -तैसे वो दिन भी आ गए धडक़ने तेज हो चली और फिर अचानक से किसी आकस्मिक घटनाओ का हवाला देकर सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद होने की घोषणा होती है और जो छुट्टी पर हैं भी उनकी भी छुट्टी तत्काल प्रभाव से रद की जाती है।  वाकई लगता है की इंतजार भरी खुशियों पर तुषारापात हो गया हो !सारी की सारी योजनाएँ धरी की धरी रह जाती है। इन परिस्थितियों में भी आत्मसंतोष का बोध से सब कुछ सामान्य सी बात लगने लगती है जब यह गौरव् की बात लगने लगती है की मुझे किसी विशेष परिस्थिति के ...

हमारा अपना बिहार

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आज (22 . 03 . 2021 )हम पूरे 109 वर्ष के हो गए हैं। कहने का तो हम 109 वर्ष के हो चुके हैं परन्तु हमारा गौरवशाली यात्रा हजारों वर्षों पूर्व से ही समृद्धशाली नेतृत्व का साक्षी रहा है। चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा और बिक्रमशिला विश्वविद्ध्यालय की विश्व पटल पर अपनी पहचान हो या धर्म के क्षेत्र में महात्मा बुद्ध ,महावीर जैसे महान आत्मा का जन्म ,कर्म व् निर्वाण स्थल बिहार की धरती से ही विश्व को शांति संदेश का नेतृत्व करना। साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य ,सम्राट अशोक जैसे परम् प्रतापी राजा के नेतृत्व में वैभवशाली साम्राज्य के साथ सफलता पूर्वक सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरोना। इतना ही नहीं आचार्य चाणक्य और गणितज्ञ आर्यभट्ट की पावन भूमि रहा है हमारा गौरवशाली बिहार।  इन सब के बावजूद जब एक 22 वर्षीय (1871-93 )युवा मन को प्रश्नबोधक प्रसंगों से रु व् रु होना पड़ा। बात उन दिनों की है जब 1893 ई o  में डॉ सच्चिदानंद सिन्हा इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस वतन लौट रहे थे। तब एक सहयात्री अंग्रेज वकील ने उनसे परिचय पूछा ,उन्होंने बड़ी ही सहजता से अपने आप को एक बिहारी बताते हुए नाम ...