सूर्योदय
सुबह के 4 बजे हैं। चारों तरफ घनघोर अँधेरा सनसनाती तेज हवायें 4 से 5 डिग्री तापमान ऐसा लगता है की अपने शरीर के साथ -साथ पूरा का पूरा वातावरण वर्फ की चादरों में लिपटी हुई है। इन सब के बीच उम्मीद की किरण लिए कहीं दूर एक हल्की सी आभा वर्फ की चादरों को चीरती हुई हमारी ओर शैनेः -शैनेः बढ़ती चली आ रही है। पक्षियों की चहचहाट किसी के आने की आहट दे रही है। अब वस पौ फटने ही वाली है। कितना सुखद एहसास है। मन और आत्मा को तृप्त कर देने वाली। हल्की गुनगुनी संतरी रंगों से सजी गुलदस्ता ऐसे लग रहा है जैसे तपती धरती पर वर्षा की पहली बूंद ,पतझड़ के बाद कोमलता से भरी पहली कली और भूख -प्यास से तड़पती आत्मा को तृप्त करने वाली मनभावन ,मनमोहक कोई वस्तु हो। निष्प्राण सा जीवों में शक्ति और ऊर्जा का अपार भंडार भरने वाली सुवह सूर्योदय के साथ एक नई दिन की शुरुआत। जो यह बताने और जताने के लिए काफी है की अँधेरे के बाद उजाले का आना शाश्वत सच है। हम इसका भरपूर आनंद उठायें और हर सुवह एक दिन नहीं एक जीवन की तरह जीयें। क्योकि जितना सच अँधेरे के बाद उजाले का आना है ठीक उतना ही सच उजाले ...