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लोकतंत्र भारत के लोकतान्त्रिक शिक्षा प्रणाली नई शिक्षा नीति 2020 (NEP)

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नई शिक्षा नीति 2020 की सबसे बड़ी विशेषता है की यह जन भावनाओ ,विचारो,वर्तमान चुनौतियों और रोजगारपरक आवश्कताओ को पूरा करने वाली एक लोकतान्त्रिक नीति है। यह अचानक से रातो रात बदली गई या जोर -जवर्दस्ती से थोपने वाली नीति नहीं है बल्कि पिछले 2 -3 वर्षो के अथक प्रयास का परिणाम है। जिसमे देश के सभी वर्गों ,शिक्षाविदों, जनप्रतिनिधियों ,शिक्षक, अभिभावक ,विद्यार्थियों के साथ ही ग्रामपंचायतों तक के विचारों और सुझावों के समीक्षोंपरांत अंतिम रूप प्रदान की गई है।  अब यहॉँ आजादी के बाद बनाई गई शिक्षा नीतियों का एक झलक।  पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति  1968 -यह कोठारी आयोग (1964 -66 ) की सिफारिशों पर आधारित थी इसमें मुख्य रूप से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चो के लिए अनिवार्य शिक्षा के साथ ही शिक्षकों के बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता पर विशेष वल दिया गया था।  साथ ही माध्यमिक स्तर पर ही त्रिभाषा सूत्र को स्वीकार तो किया गया परन्तु लागू नहीं हो सका।   राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 - इस नीति को असमानताओं को दूर करने वाली नीति के रूप में जाना जाता है। इसमें महिला और ...

WORK FROM HOME CONCEPT AND EFFECT

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अंतराष्ट्रीय आपदा की इस घड़ी में अनायास ही उपजी कोविद -19 नाम का बला व्यक्ति से लेकर वर्ग समाज राष्ट्र और विश्व या यो कह ले की सम्पूर्ण मानव जाती को खतरे में डाल रखा है। जीवन बचाने की जदोजहद में सर्वप्रथम सम्पूर्ण  लॉकडाउन ही विकल्प के रूप में सामने आया सब अपने -अपने घरों की ओर जाने लगे। काफी मशक्त करनी पड़ी लोगों को भी और संबंधित राज्य सरकारों को भी। खैर काफी परेशानियों के उपरांत जब करीब -करीब सभी लोगों अपने घरों तक पहुँच गए परिणाम स्वरूप मानव संसाधन की कमी से सारे उद्योग -धंधे ठप पड़ गए। भुखमरी का सामना करना पड़ा। ऐसी विषम परिस्थिति में डिजिटल इंडिया की अवधरणा को विस्तार देने के लिए वर्क फ्रॉम होम की परिपाटी ने जन्म लिया ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके। सबसे पहले कारपोरेट जगत ने तो सहज ही स्वीकार लिया पर छोटे -छोटे शहर ,व्यवसायी,सरकारी ऑफिस ,स्कूल ,महाविद्यालय जहाँ अभी भी अधिकांश काम मैन्युल ही होता आ रहा है के सामने डिजिटल knowledge की कमी एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभरी। ऐसी परिस्थिति में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का समस्या को अवसर में...

मानव संसाधन और हमारा व्यवहारिक पक्ष

भारतीय संविधान का वह पहली पंक्ति "हम भारत के लोग "इसमें हम महज एक शब्द ही न होकर सम्पूर्ण भारत वर्ष की वैविध्यपूर्ण संस्कृति, समाज और व्यक्ति की व्यवहारिक और वैचारिक भिन्नताओं में भी समानता का उद्घोष है। जो यह दर्शाता है की भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति पहले भारतीय है उसके बाद अगला -पिछला ,उच्च -नीच, अमीर-गरीब ,अल्पसंख्यक -बहुसंख्यक जैसे वर्गो में विभक्त है। इन सब में जो एक महत्वपूर्ण विभाजन है वह है लिंगानुसार विभाजन स्त्री ,पुरुष और उभयलिङ्ग। संविधान निर्माताओं ने संविधान को इतना लचीला बनाया है की परिवर्तन और विकास की सतत प्रक्रियाओ के लिए समयानुसार किये गए संसोधन को सरलता से आत्मसात कर सके। अब तक संविधान में कई धाराओं और उप धाराओं को जोड़ा भी गया है और कई को अनुपयोगी समझते हुए हटाया भी गया है। जिसका ताजा -तरीन उदाहरण है धारा 370 का 05 /08 /2019 को विरोध और सहमति के बीच से सफलता पूर्वक हटाया जाना , नई शिक्षा नीति 2020 का लागू होना। नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य है नई पीढ़ी को वैश्विक मंच पर दढता के साथ सामना करना इसमें प्रयास यह किया गया है की कोई भी वर्ग जीवन ...