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फ़रवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आहार आयोजन

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  आहार आयोजन एक कला भी है और विज्ञान भी। भोजन बनाना और उसे कलात्मक ढंग से परोसा जाना जहाँ एक कला है वहीं भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों को जानना उसका संतुलित मात्रा में प्रयोग कर गुणवत्ता को बनाये रखना एक विज्ञान है। कलात्मक ढंग से परोसा गया भोजन भुख भी बढ़ाता है और तृप्तिदायक भी होता है।  आहार आयोजन  एक सफल गृहिणी की सफलता को दर्शाता है। इससे गृहिणी का समय, श्रम, धन और ईंधन का भी बचत होता है। साथ ही इस भ्रम को भी दूर करता है की महंगा भोजन ही पौष्टिक और संतुलित होता है। सच्चाई तो यह है की आहार की गुणवत्ता सस्ते या महगें से उतने प्रभावित नहीं होते जितना की उसे बनाने व् परोसने के तरीके तथा आहार तालिका में समुचित और सुव्यवस्थित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करने या न करने से होता है। पारिवारिक सदस्यों को न्यूनतम पोषक तत्व प्राप्त हो यह सुनिश्चित करने के लिए पारिवारिक सदस्यों का आयु वर्ग, लिंग भेद, शारीरिक कार्य आर्थिक स्थितिऔर स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए आहार में ऊर्जा देने वाले (कार्वोहाइड्रेट, वसा ),शरीर निर्माण,वृद्धि व् विकास  करने वाले (प्रोटीन )...

प्राणवायु

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  हमारे शरीर में प्राणवायु का निरंतर संचार ही व्यक्ति को जीवित होने का प्रमाण है। शरीर के अलग -अलग स्थानों में इसके अलग -अलग नाम और काम हैं। आज हम उन्हीं के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। इसके मुख्यतः पॉँच  नाम हैं।  प्राणवायु - यह हमारी ज्ञाननेद्रियों को गतिमान रखने के साथ -साथ फेफडों, हृदय, अन्न नलिका एवं श्वसन तंत्र को क्रियाशीलता प्रदान करता है। श्वास -प्रश्वास की निरंतर चल रही दोनों प्रक्रियाएँ प्राण ही है। यह शरीर के ऊपरी प्रदेश में रहता है।  अपानवायु - अपान नामक प्राण शरीर में गुदा के आस -पास के प्रदेश में रहता है। यह शरीर में सफाइकर्मी की भूमिका का निर्वहन करता है।  समानवायु - हृदय से लेकर नाभि तक के क्षेत्र में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं के सुचारु संचालन को समान नामक प्राण सुनिश्चित करता है। इसका निवास नाभि के आस -पास का क्षेत्र है।  व्यानवायु- व्यान नामक वायु त्वक (त्वचा )आदि इंद्रियों के साथ समस्त शरीर में व्याप्त रहता है। यह तंत्रिकाओं द्वारा समस्त संवेदनाएं मन तक प्रेषित करता है। वहाँ से प्राप्त निर्देशों को ज्ञानेद्रियों और कर्मेन्द्र...

भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी को सादर श्रद्धांजलि

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28 सितंबर 1929 -6 फरवरी 2022   भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी को  सादर श्रद्धांजलि  सुर सागर की अविरल धारा का अचानक से रुक जाना एक इतिफाक कहें या प्रकृति का करिश्मा। वसंत पंचमी की उत्कर्ष वेला की पावनी सुबह जब हम सब माँ सरस्वती की विदाई की तैयारी में लगे थे। उसी वक्त सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त बल्कि यों कहें साक्षात् सरस्वती की प्रतिमूर्ति का इस मृत्युलोक से चले जाना महज इतिफाक नहीं हो सकता। ये अद्भुत,अनोखा प्रकृति का करिश्मा ही है। जिस तरह प्रतीकात्मक रूप से सरस्वती माँ की मूर्ति पूजन और विसर्जन जन मानस में एक ऊर्जा का संचार करता रहा है उसी तरह हमारी ममतामयी माँ स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर जी की मधुर गीतों की गूँज हमेशा -हमेशा के लिए प्रकृति के कण -कण में गुंजायमान रहेगा। हमारी आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी इस सुर सागर में डुबकिया लगाती रहेगी।    :------------------:

सोलह संस्कार

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हमारे हिन्दू सनातन परम्परा में मानव जीवन चक्र सोलह संस्कारों में पिरोये हुये लयबद्ध जीवन  पद्धति का उल्लेख मिलता है। जिसमे मानव जीवन चक्र का प्रारम्भ से लेकर अंत तक क्रमिक विकास और एक अवस्था से दूसरे अवस्था में पदार्पण (परिवर्तन )के समय उत्सव के रूप में मनाने की सीख भी। कालांतर में हम इसे भूलने लगें थे जिसे फिर से पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है।  तो आइये आज जानते हैं महर्षि वेदव्यास के कथनानुसार सोलह संस्कार कौन -कौन से हैं उसका क्या विधान और दर्शन रहा है। गर्भाधान   संस्कार - सुयोग्य और सुपात्र संतान उतपन्न करने की इच्छा से नव दंपति (पुरुष 25 वर्ष और स्त्री कम से कम 16 वर्ष वर्तमान में दोनों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है )के लिए शुभ मुहूर्त निकालकर दिन में यज्ञ करके रात्रि में गर्भाधान का प्रावधान रखा गया है।  पुंसवन संस्कार - गर्भ धारण करने के पश्चात दुसरे या तीसरे महीने में यह संस्कार किया जाता है। सुंदर ,स्वस्थ्य और सुयोग्य संतान प्राप्ति के लिए देवताओं से प्रार्थना की जाती है। साथ ही गर्भ को पुष्ट तथा सुरक्षित रखने के लिए विशिष्ट प्रकार...