मिलन &जुदाई
मिलन और जुदाई शब्दों के हेर -फेर मे प्रकृति की अद्भुत सौन्दर्य छुपा हुआ है। प्रकृति की नियमित गतिशीलता प्रतिदिन सुबह से शाम ;शाम से सुबह के चक्रिये परिधि मे इस तरह पिरोया हुआ है की न तो सुबह का उजाला हमे सीमाओं से पार इतराने देता है और न ही ढलती शाम के आगे आने वाले निश्चित अंधेरा हमे डरने देता है। क्योंकि हर शाम की शाम एक उम्मीद की किरणें अपने आप मे समेटे जाती है की मै फिर अपने निर्धारित समय पर एक नई उम्मीद व उत्साह की किरणों के साथ आने के लिए विश्रामवस्था को प्राप्त कर रही हूँ। इस तरह दिन हफ्ते, हफ्ते महीने, महीने साल मे क्रमशः बदलते रहते हैं जिसमे मौसम परिवर्तन हमें मानवीय रिश्तों की तरह मिलन व जुदाई का अनोखा अनुभव कराता रहता है। इसकी झलक हम जीवन के प्रारम्भ से अंत तक मे देखते हैं जिसे अपनी भावनाओं पर विजय पाने मे उदाहरण स्वरूप अपनाते रहते हैं। जीवन के प्रारम्भ मे असहनीय पीड़ा सहकर भी उसके उपहार मे मिले नन्हीं जीवन की पहली क्रंदन सारे दर्द भूलने के लिए काफी होता है। यहाँ से उस नन्हीं सी जान की सुखद जीवन यात्रा का सपना ही नही संयोगा जाता बल्कि उसे पूरा करने का अ...